एस्टरॉयड (Asteroid) लगातार पृथ्वी के नजदीक से गुजरते रहते है और पृथ्वी लगातार इन एस्टरॉयड (Asteroid) का सामना करती रहती है।
29 और 30 जुलाई को लगातार दो एस्टरॉयड पृथ्वी के करीब से गुजरे, जिनका साइज मल्टीस्टोरी बिल्डिंग जितना था। इसके अलावा 4 अगस्त को एक और एस्टरॉयड पृथ्वी के नजदीक से होकर गया। इसमें एक हजार परमाणु बमों जितनी ताकत थी।
जब भी कोई एस्टरॉयड पृथ्वी के करीब से गुजरता है, तो दुनियाभर की स्पेस एजेंसियां उसे मॉनिटर करती हैं, क्योंकि अंतरिक्ष में तैरती ये चट्टानें पृथ्वी को भारी नुकसान पहुंचा सकती हैं, आखिर डायनासोर भी तो एस्टरॉयड के पृथ्वी पर टकराने से ही खत्म हुए थे।

क्या होते हैं एस्टरॉयड (Asteroids) ?
एस्टेरॉयड (Asteroids) को हिन्दी में उल्कापिंड या क्षुद्रग्रह भी कहते हैं। इसे मीटीऑराइट ( meteorite ) भी कहते हैं। एस्टेरॉयड को किसी ग्रह या तारे का टूटा हुआ टुकड़ा माना जाता है। ये पत्थर या धातु के टूकड़े होते हैं जो एक छोटे पत्थर से लेकर एक मील बड़ी चट्टान तक और कभी-कभी तो एवरेस्ट के बराबर तक हो सकते हैं। आकाश में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर अत्यंत वेग से जाते हुए अथवा पृथ्वी पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं उन्हें उल्का और साधारण बोलचाल में ‘टूटते हुए तारे‘ अथवा ‘लूका‘ कहते हैं।
नासा के अनुसार, इन्हें लघु ग्रह भी कहा जाता है। जैसे हमारे सौर मंडल के सभी ग्रह सूर्य का चक्कर लगाते हैं, उसी तरह एस्टरॉयड भी सूर्य की परिक्रमा करते हैं। लगभग 4.6 अरब साल पहले हमारे सौर मंडल के शुरुआती गठन से बचे हुए चट्टानी अवशेष एस्टरॉयड हैं । वैज्ञानिक अभी तक 11 लाख 13 हजार 527 एस्टरॉयड का पता लगा चुके हैं। हमारे सौर मंडल में करीब 20 लाख एस्ट्रेरॉयड घूम रहे हैं। NASA के पास पृथ्वी के आसपास 140 मीटर या उससे बड़े करीब 90 प्रतिशत एस्टेरॉयड को ट्रैक की क्षमता है।

अतीत में इन उल्कापिंडों से कई बार जीवन लगभग समाप्त हो चुका है। एक बार फिर मंडरा रहा है डायनासोर के जमाने का खतरा। अंतरिक्ष में भटक रहा सबसे बड़ा उल्का पिंड ‘2005 वाय-यू 55’ है लेकिन फिलहाल खतरा एस्टेरॉयड एपोफिस से है।
इस तरह का सबसे पिछला प्रलयंकारी पिंड साढ़े छह करोड़ साल पहले टकराया था। उसने न जाने कितने जीव-जंतुओं की प्रजातियों का पृथ्वी पर से अंत कर दिया। डायनासॉर इस टक्कर से लुप्त होने वाली सबसे प्रसिद्ध प्रजाति हैं। समस्या यह है कि हम नहीं जानते कि कब फिर ऐसा ही हो सकता है।’ वह लघु ग्रह सेनफ्रांसिस्को की खाड़ी जितना बड़ा था और आज के मेक्सिको में गिरा था। इस टक्कर से जो विस्फोट हुआ, वह दस करोड़ मेगाटन टीएनटी के बराबर था। पृथ्वी पर वर्षों तक अंधेरा छाया रहा।
1994 में एक ऐसी ही घटना घटी थी। पृथ्वी के बराबर के 10-12 उल्का पिंड बृहस्पति ग्रह से टकरा गए थे जहां का नजारा महाप्रलय से कम नहीं था। आज तक उस ग्रह पर उनकी आग और तबाही शांत नहीं हुई है।
वैज्ञानिक मानते हैं कि यदि बृहस्पति ग्रह के साथ जो हुआ वह भविष्य में कभी पृथ्वी के साथ हुआ तो तबाही तय हैं, लेकिन यह सिर्फ आशंका है। आज वैज्ञानिकों के पास इतने तकनीकी साधन हैं कि इस तरह की किसी भी उल्का पिंड की मिसाइल द्वारा दिशा बदल दी जाएगी। इसके बावजूद फिर भी जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग तबाही का एक कारण बने हुए हैं।
मंगल और बृहस्पति के बीच घूमते हैं ज्यादातर एस्टरॉयड
ज्यादातर एस्टरॉयड एक मुख्य एस्टरॉयड बेल्ट में पाए जाते हैं, जो मंगल और बृहस्पति ग्रह के बीच है। इनका साइज 10 मीटर से 530 किलोमीटर तक हो सकता है। अबतक खोजे गए सभी एस्टरॉयड का कुल द्रव्यमान पृथ्वी के चंद्रमा से कम है।
ज्यादातर एस्टरॉयड का आकार अनियमित होता है। कुछ लगभग गोलाकार होते हैं, तो कई अंडाकार दिखाई देते हैं। कुछ एस्टरॉयड तो ऐसे भी हैं, जिनका अपना चंद्रमा है। कई के दो चंद्रमा भी हैं। वैज्ञानिकों ने डबल और ट्रिपल एस्टरॉयड सिस्टम की खोज भी की है, जिनमें ये चट्टानों एक-दूसरे के चारों ओर घूमती रहती हैं।
एस्टरॉयड को तीन वर्गों- सी, एस और एम टाइप में बांटा गया है। सी–टाइप (चोंड्राइट Chondrite) एस्टरॉयड सबसे आम हैं। ये संभवतः मिट्टी और सिलिकेट चट्टानों से बने होते हैं और दिखने में गहरे रंग के होते हैं। ये सौर मंडल की सबसे पुरानी चीजों में एक हैं। एस–टाइप के एस्टरॉयड सिलिकेट मटेरियल और निकल–लौह से बने होते हैं। वहीं M-Type (एम टाइप) एस्टरॉयड मैटलिक (निकल–लौह) हैं। इनकी संरचना सूर्य से दूरी पर निर्भर करती है।
आज वैज्ञानिकों के पास इतने तकनीकी साधन हैं कि इस तरह की किसी भी उल्का पिंड की मिसाइल द्वारा दिशा बदल दी जाएगी। इसके बावजूद फिर भी जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग तबाही का एक कारण बने हुए हैं |