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गुणसूत्र की खोज, संरचना, आकार, आकृति, रासायनिक संगठन, प्रकार एवं कार्य (Chromosome in Hindi सम्पूर्ण जानकारी)

in बायोलॉजी
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इस आर्टिकल में हम गुणसूत्र यानी क्रोमोसोम के बारे में विस्तृत में बतायेगे | गुणसूत्र क्या होते है ? गुणसूत्र की खोज कितने की ?, गुणसूत्रों की सरंचना कैसी होती है ? क्रोमोसोम का आकर कैसा होता है; गुणसूत्र किस आकृति में पाए जाते है ; गुणसूत्रों का रासायनिक संगठन क्या है ? गुणसूत्र कितने प्रकार के होते है ? और सबसे प्रमुख गुणसूत्रों के कार्य क्या होते है ? प्रमुख जीवों में गुणसूत्र की संख्या कितनी होती है ? जीन क्या होते है ? जीनोम क्या होते है और कैसे ये गुणसूत्रों से संबध रखते है ? आदि | साथ ही हम बात करेगे की कैसे स्तनधारी जीवों में एक्स (X) गुण सूत्र और वाई (Y) गुणसूत्र की भूमिका महत्वपूर्ण होती है |

गुणसूत्र (Chromosome) क्रोमोसोम क्या होते है ?

गुणसूत्र या क्रोमोसोम (Chromosome) सभी वनस्पतियों व जीवों की कोशिकाओं में पाये जाने वाले तंतु रूपी पिंड होते हैं, जो आनुवांशिक गुणों को निर्धारित व संचारित करने के लिए जाने जाते हैं। गुणसूत्र कोशिका के केन्द्रक (Nucleus) में सूक्ष्म सूत्र जैसा भाग है जो वंशागति के लिए आवश्यक है। क्रोमैटिन कोशिका विभाजन के समय सिकुड़कर छोटे और मोटे धागों का रुप ले लेते हैं। इन्हीं धागों को ही गुणसूत्र या क्रोमोसोम कहा जाता है, जिसमें कोशिका विभाजन नहीं होता है उसमें यह क्रोमैटिन पदार्थ के रूप में विद्यमान रहता है। गुणसूत्र (क्रोमोसोम) में आनुवंशिक गुण होते हैं, जो माता-पिता से DNA अणु के रूप में अगली सन्तति में जाते हैं। DNA अणु में कोशिका के निर्माण और संगठन की सभी आवश्यक सूचनाएँ होती हैं। गुणसूत्रों को ही अनुवांशिक लक्षणों का वाहक कहा जाता है।

“कोशिका के मध्य में गोलाकार या अण्डाकार रचना होती है, जिसे केन्द्रक कहा जाता है। कोशिका का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग, जो कोशिका के प्रबन्धक के रूप में भूमिका निभाता है। केन्द्रक के चार भाग होते हैं – केन्द्रक कला, केन्द्रक द्रव्य, केन्द्रिका तथा क्रोमैटिन। केन्द्रकद्रव्य में धागेनुमा पदार्थ जाल के समान होती है, जो क्रोमैटिन कहलाता है। यह DNA, हिस्टोन प्रोटीन तथा नॉन-हिस्टोन प्रोटीन का बना होता है।“

गुणसूत्र की खोज किसने की

स्ट्रासबर्गर ने 1875 ई मे गुणसूत्र की खोज किया। सर्वप्रथम क्रोमोसोम ( रंगीन काय ) शब्द का प्रयोग वाल्डेयर ने 1889 में किया।

गुणसूत्र (Chromosome) की सरंचना

प्रत्येक गुणसूत्र में जेली के समान एक गाढ़ा द्रव होता है, जिसे मैट्रिक्स कहा जाता है। इसी मैट्रिक्स में दो परस्पर लिपटे महीन एवं कुण्डलित सूत्र, जिसे क्रोमैनिमेटा (Chromonemata) कहा जाता है। प्रत्येक क्रोमैनिमेटा एक अर्द्ध-गुणसूत्र (Chromatid) कहलाता है। ये दोनों क्रोमैटिड गुणसूत्रबिंदु (सेन्ट्रोमीयर) नामक स्थान पर एक-दूसरे से जुड़े होते हैं |

गुणसूत्र की संरचना में निम्न भाग पाए जाते है :

अर्धगुणसूत्र या क्रोमेटिड (Chromatid)

कोशिका विभाजन की मेटाफेज (Metaphase) में गुण सूत्र के दो लंबवत भाग एक ही गुणसूत्रबिंदु से जुड़े हुए दिखाई देते हैं। इनको अर्धगुणसूत्र या क्रोमेटिड कहते है। ऐनाफेज अवस्था के दौरान गुणसूत्रबिंदु का विभाजन होने से यह दोनों क्रोमेटिड पृथक हो जाते हैं, और पुत्रीगुणसूत्र (Daughter Chromosome) बनाते हैं।

क्रोमोनिमेटा (Chromonemata)

इंटरफ़ेज (Interphase) में गुण सूत्र अत्यधिक कुंडली अवस्था में दिखाई देता है, इन्हें वर्ण-गुणसूत्र या क्रोमोनिमेटा (Chromonemata) कहते है ।

क्रोमोमियर (Chromomere)

क्रोमोनिमेटा पर बिंदु के जैसी अत्यधिक कुंडली (Coiled) संरचनाएं दिखाई देती है, जिन्हें क्रोमोमियर (Chromomere) कहा जाता है।

गुणसूत्रबिंदु (Centromere)

क्रोमोसोम की लंबाई में एक स्थान पर यह थोड़ा संकरा होता है, इस भाग को प्राथमिक संकीर्णन (Primary Constriction) या गुणसूत्रबिंदु (Centromere)  कहा जाता हैं। गूणसूत्र बिन्दु (Centromere) की स्थिति के आधार पर गुणसूत्र अकेन्द्री (अर्थात् सेन्ट्रोमीयर रहित), अन्त:केन्द्री (सेन्ट्रोमीयर एक किनारे पर), अग्रकेन्द्री (सेन्टीमीटर किनारे के समीप) मध्यकेन्द्री (सेन्ट्रोमीयर मध्य में) तथा उपमध्यकेन्द्री (अर्थात् सेन्ट्रोमीयर मध्य भाग से थोड़ा दूर) होते हैं।

काइनेटोकोर (Kinetochore)

गुणसूत्रबिंदु पर पाई जाने वाला प्रोटीन काइनेटोकोर (Kinetochore) कहलाता है । कोशिका विभाजन के दौरान तर्कू तंतु (Spindal Fibers) काइनेटोकोर से ही जुड़ते हैं ।

द्वितीयक संकीर्णन (Secondary Constriction)

कुछ गुणसूत्रों में प्राथमिक संकीर्णन (Primary Constriction) के अलावा एक अन्य संकरा भाग भी पाया जाता है, जिसे द्वितीयक संकीर्णन कहते हैं।

अनुषंघी सैटेलाइट क्रोमोसोम (Satellite Chromosome)

ऐसे गुण सूत्र जिनमें द्वितीयक संकीर्णन (Secondary Constriction) पाया जाता है, उनके द्वितीयक संकीर्णन के ऊपर की एक छोटी भुजा सेटेलाइट (Satellite) कहलाती है और इन्हें ही सैटेलाइट गुणसूत्र (Satellite Chromosome) कहा जाता हैं।

टिलोमीयर (Telomere)

गुणसूत्रों का आखरी छोर (End tip) टिलोमीयर कहलाता है।

गुणसूत्र का रासायनिक संगठन

गुणसूत्र में डीएनए (DNA) और प्रोटीन पाए जाते हैं।

यह प्रोटीन दो प्रकार के होते हैं-

हिस्टोन प्रोटीन  (Histon Protein)

नॉन हिस्टोन प्रोटीन ((Non Histon Protein)

हिस्टोन प्रोटीन (Histon Protein)

यह क्षारीय प्रोटीन (Alkali Protein) होते हैं जिनमे लाइसिन और आर्जिनिन (Lysine and Arginine) अमीनो अम्ल की मात्रा अधिक होती है। हिस्टोन डीएनए को उलझने से रोकते हैं और डीएनए को होने वाले नुकसान से बचाते हैं। इसके अलावा, हिस्टोन जीन विनियमन और डीएनए प्रतिकृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हिस्टोन के बिना, गुणसूत्रों में अवांछित डीएनए बहुत लंबा होगा।

हिस्टोन प्रोटीन पांच प्रकार के होते हैं जिनका नाम निम्न है

  • H1
  • H2A
  • H2B
  • H3
  • H4

इनमें से H2A, H2B H3, H4 के दो-दो इकाई जुड़कर हिस्टोन अष्टक (Histon Octamere) का निर्माण करते हैं। इनको कॉड कण (Core Partical) भी कहा जाता है।

न्यूक्लियोसोम

हिस्टोन अष्टक के साथ डीएनए की लगभग दो कुंडली तथा H1 हिस्टोन जुड़कर एक संरचना बनाती है, जिसे न्यूक्लियोसोम (Nucleosome) कहा जाता है।

एक न्यूक्लियोसोम यूकेरियोट्स (eukaryotes) में डीएनए पैकेजिंग की बुनियादी संरचनात्मक इकाई है | कोशिका केन्द्रक के भीतर फिट होने के लिए डीएनए का न्यूक्लियोसोम में संघनित होना जरुरी होता है |

लगभग 6 न्यूक्लियोसोम (Nucleosome) आपस में जुड़ कर सोलेनोइड (Solenoid) नामक संरचना का निर्माण करते हैं। सोलेनोइड की अवधारणा आउडेट के द्वारा दी गई तथा न्यूक्लियोसोम प्रतिरूप कोर्नबर्ग (Roger David Kornberg) तथा थॉमस के द्वारा दिया गया।

गुणसूत्रों की आकृति

गुणसूत्रबिन्दु की स्थिति और गुणसूत्रभुजा (Chromosomal arm) की लंबाई के आधार पर, गुणसूत्रों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जाता है :

  1. अग्र केन्द्रकी (Telocentric)
  2. अग्रबिंदु या उप-अन्तकेन्द्रकी (Acrocentric)
  3. उप-मध्यकेन्द्रकी (Submetacentric)
  4. मध्यकेन्द्रकी (Metacentric)

अग्र केन्द्रकी गुणसूत्र (Telocentric chromosome)

टेलोसेंट्रिक गुणसूत्रों में, गुणसूत्रबिन्दु (Centromere)  गुणसूत्र के अंतिम सिरे (टिप) पर स्थित होता है। इस प्रकार के गुणसूत्र कोशिका विभाजन की एनाफेज (Anaphase) अवस्था में ’i’ आकार की संरचना के रूप में दिखाई देते हैं। इन गुणसूत्रों में केवल एक गुणसूत्रभुजा (Chromosomal arm) होता है। इस प्रकार के chromosome में बहुत दुर्लभ होते हैं और इन्हें केवल बहुत कम प्रजातियों में देखा गया है।

अग्रबिंदु या उप–अन्तकेन्द्रकी गुणसूत्र (Acrocentric chromosome )

गुणसूत्रबिन्दु (Centromere) क्रोमोसोम के एक छोर पर इस तरह से स्थित होते है कि इनकी एक बहुत ही छोटी भुजा (P arm) और एक असाधारण लंबी भुजा (Q arm) होती है। कोशिका विभाजन की  मेटाफ़ेज़ अवस्था (Metaphase) में ये ‘J ‘आकार की संरचनाओं के रूप में दिखाई देते हैं।

टिड्डियों के कुल Acrididae में ऐसे गुण सुत्रों को देखा गया जिससे इनका नाम Acrocentric क्रोमोसोम रखा गया है।

सभी एक्रोकेंट्रिक क्रोमोसोम SAT-गुणसुत्र होते है।

SAT-गुणसुत्र  ऐसे गुणसूत्र होते है जिनमें प्राथमिक संकीर्णन के अलावा एक अन्य द्वितीयक संकीर्णन (Secondary Constriction) भी पाया जाता है जिससे गुणसूत्र के एक छोर पर एक घुंडी जैसी संरचना दिखती जिसे सेटेलाइट कहते है और ऐसे गुणसूत्र SAT-गुणसुत्र कहलाते है ।
मानव में, गुणसूत्र संख्या 13, 15, 21 और 22  ऐसे ही गुण सूत्र होते हैं।

उप-मध्यकेन्द्रकी गुणसूत्र (Submetacentric chromosome)

सेंट्रोमियर क्रोमोसोम के केंद्र या मध्य से थोडा दूर स्थित होता है। इसमें दो असमान भुजा (Chromosome arm) होती है एक भुजा छोटी और एक बड़ी भुजा होती है। सबमेटासेंट्रिक गुणसूत्र कोशिका विभाजन के ऐनाफेज (Anaphase) अवस्था में L आकार की संरचनाओं के रूप में दिखाई देते हैं। मानव गुणसूत्रों के अधिकांश submetacentric chromosome होते हैं।

मध्यकेन्द्रकी गुणसूत्र (Metacentric chromosome)

गुणसूत्रबिन्दु (centromere) क्रोमोसोम के बिल्कुल केंद्र में स्थित होता है। इस प्रकार गुणसूत्रों के दो बराबर आकार की भुजाएँ होती है।

मेटासेंट्रिक गुणसूत्र कोशिका विभाजन के एनाफेज (Anaphase) में V आकार की संरचनाओं के रूप में दिखाई देंगे।

इन गुणसूत्रों को एक आदिम प्रकार (Primitive) का गुणसूत्र माना गया है। जो प्रोकैरियोट में पाया जाया है |

उभयचर में एवं मानव के गुणसूत्र संख्या 1 और 3 मध्यकेन्द्रकी गुणसूत्र होते हैं।

गुणसूत्रों के प्रकार ( Type of Chromosomes)

गुणसूत्र चार प्रकार के होते हैं-

अलिंग गुणसूत्र (Autosomal Chromosome)

यह लिंग से संबंधित लक्षणों को छोड़कर सभी प्रकार के कायिक लक्षणों (Somatic symptoms) का निर्धारण करते हैं। इनकी संख्या मानव में 44 होती है।

लिंग गुणसूत्र (Sex Chromosome)

यह लिंग का निर्धारण (Sex determination) करते है इनकी संख्या में दो होती है। पुरुष में XY तथा मादा में XX।

सहायक गुणसूत्र (Acessory Chromosome)

यह गुणसूत्रों के छोटे-छोटे टुकड़े होते हैं, जिनमें गुणसूत्रबिंदु नहीं पाया जाता। सहायक गुणसूत्र अर्धसूत्री विभाजन (Meiosis) में भाग नहीं लेते। अनुवांशिक रूप से निष्क्रिय होते हैं। इनकी खोज विल्सन द्वारा की गई। मनुष्यों में, प्रत्येक 1500 में लगभग एक व्यक्ति में एक सहायक गुणसूत्र होता है, और इनमें से कुछ मानसिक या शारीरिक असामान्यताओं (mental or physical abnormalities) से जुड़े होते हैं

विशालकाय गुणसूत्र (Giant  chromoses)

पॉलीटीन गुणसूत्र (Polytene Chromosome)

इसकी खोज ई.जी. बालबियानी (E.G. balbiani) ने डायप्टेरा (diapteron) कीटों के लार्वा की लार ग्रंथि में की। पॉलीटीन गुणसूत्र कोल्लर (koller) द्वारा दिया गया। इसमें कई क्रोमोनिमा (chromonema) होते हैं, इसलिए इसे पॉलीटीन गुणसूत्र कहा जाता है।

इनके कई क्रोमोनिमा क्रोमोमियर से जुड़े रहते हैं। प्रत्येक क्रोमोनिमा में पफ क्षेत्र और गैर-पफ (पफ विहीन) क्षेत्र (puffed region & non-puffed regions) होते हैं। पफ क्षेत्र में बालबियानी छल्ले (Balabiani rings) होते हैं जो डीएनए, आरएनए और प्रोटीन से बने होते हैं।

ड्रोसोफिला मेलेनोगैस्टर में इनकी आमाप 2000 um होती है। इन गुणसूत्रों में गहरी व हल्की अनुप्रस्थ पट्टियों का विशिष्ट अनुक्रम होता है। गहरी पट्टियाँ यूक्रोमेटिन तथा हल्की पट्टियाँ हेटेरोक्रोमेटिन कहलाती है। इन गुणसूत्रों में गहरी पट्टियों पर लूपनुमा पफ बन जाते हैं। इन विशिष्ट लूपों को बालबियनी लूप कहते हैं। इन लूपों में mRNA का संश्लेषण होता है। गैर-पफ क्षेत्र छल्ले के होते हैं लेकिन वे बैंड (पट्टी) और इंटरबैंड से बने होते हैं। ये क्रोमोसोम एंडोमाइटोसिस (endomostosi) द्वारा बनते हैं। ये कीटों के लार्वा में कायान्तरण (मेटामॉर्फोसिस – metamorphosis) को बढ़ावा देते हैं।

लैंपब्रश गुणसूत्र (Lampbrush Chromosomes)

कशेरुकियों के परिवर्धनशील अण्डाणु के गुणसूत्रों का आकार लैम्प साफ करने वाले ब्रश जैसा हो जाता है। लैम्प (Lamp) की सफाई करने वाले ब्रश की तरह दिखाई देने के कारण इनको लैंप ब्रश गुणसूत्र (Lampbrush Chromosome) नाम दिया गया। इन गुणसूत्रों का मुख्य केन्द्रीय कुछ DNA का तथा लूप DNA व RNA के बने होते हैं। इनकी खोज रुकर्ट ने की। लैम्पब्रश गुणसूत्र स्तनधारियों को छोड़कर अधिकांश जानवरों के बढ़ते oocytes (अपरिपक्व अंडे) में पाए जाने वाले गुणसूत्र का एक विशेष रूप है | ये शार्क, उभयचर, सरीसृप और पक्षियों के प्राथमिक अण्डक (oocytes) में अर्द्धसूत्री विभाजन के प्रोफेज-I की डिप्लोटिन अवस्था में पाये जाते है। वे अण्डों योक के संश्लेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसमें एक मुख्य अक्ष होता है जिसमें डीएनए और प्रोटीन से बने दो क्रोमोनिमा (chromonema) होते हैं।

जीन (Gene)

‘जीन‘ शब्द को जोहन्सन ने दिया था। आधुनिक शोधों के अनुसार, एक जीन, DNA के एक ऐसा खण्ड है, जो किसी एक विशिष्ट प्रकार की प्रोटीन (एन्जाइम) के संश्लेषण का नियमन करता है। इस भाग को सिस्ट्रॉन कहते हैं।

इन्हीं जीनों के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में आनुवंशिक लक्षण हस्तान्तरित होते हैं। अतः जीन ही आनुवंशिक गुणों हेतु उत्तरदायी हैं।

जीनोम (Genome)

जीनोम (Genome) एक अगुणित गुणसूत्रों के समुच्चय को जीनोम कहते हैं; जैसे-एक युग्मक में उपस्थित कुल गुणसूत्र।

कैरियोटाइप किसी जाति के कुल गुणसूत्रों की आकारिकी को कैरियोटाइप कहा जाता है।

इसके अन्तर्गत निम्न लक्षण निहित हैं:

(i) गुणसूत्रों की संख्या (ii) गुणसूत्रों की कुल लम्बाई (iii) प्रत्येक गुणसूत्र की लम्बाई तथा व्यास (iv) लघु व वृहत् भुजा का अनुपात।

इडिओग्राम (Idiograms )

जब किसी जाति के कैरियोटाइप को विशिष्ट चित्रों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है, तो इन चित्रों को इडिओग्राम कहते हैं।

कुछ प्रमुख जीवों में गुणसूत्रों की संख्या

किसी भी जाति में सभी जीवो में गुणसूत्रों की संख्या एक समान होती है। भिन्न-भिन्न यानि अलग जातियों के जीवो में इनकी संख्या अलग-अलग होती है। कुछ जीवों उपस्थित गुणसूत्रों की संख्या निम्न होता है।

जीवसंख्याजीवसंख्या
ऐस्कैरिस मैगासिफेलस190मानव46
अमीबा250गोरिल्ला48
मटर14चिम्पैन्जी48
मक्का20चूहा40
गेहूँ42घोड़ा64
आलू48कुत्ता78
मेंढक26घरेलू मक्खी12
बिल्ली38

गुणसूत्रों के कार्य – Works of Chromosome

जीवों में गुणसूत्रों का प्रमुख कार्य निम्न है :

अनुवांशिकता में प्रमुख भूमिका

गुणसूत्र अनुवांशिकता का वाहक है जिसमें विभिन्न प्रकार की प्रकार की क्रियाओं के लिए संदेश निहित होते हैं। यह प्रोटीन की बहुत से जटिल अणुओं के द्वारा बनते हैं

जनन की इकाई के रूप में

गुणसूत्रों के प्रतिलिपिकरण द्वारा संतति गुणसूत्र बन जाते हैं, जो उत्पन्न संतति कोशिकाओं में पहुंचते हैं।

एक्स (X) गुण सूत्र और वाई (Y) गुणसूत्र की भूमिका

स्तनधारी जीवों, जिसमें मनुष्य भी शामिल हैं, में लिंग निर्धारण करने वाले दो गुणसूत्रों – एक्स (X) गुण सूत्र और वाई (Y) गुणसूत्र की भूमिका होती है। पुरुषों में एक Y और एक X गुण सूत्र होता है, जबकि महिलाओं में दो X गुणसूत्र होते हैं। किसी पिता का Y गुणसूत्र बिना किसी बदलाव के उसके पुत्रों में जाता है। इसलिए, Y गुणसूत्र के अध्ययन से किसी भी पुरुष के पितृवंश समूह का पता लगाया जा सकता है। Y गुणसूत्र को पुरुष निर्धारण गुणसूत्र के रूप में जाना जाता है। यह अपने साथी X की तुलना में एक छोटा गुणसूत्र है।

मनुष्य – 46 (23 जोडें) गुणसूत्र

एक नये अध्ययन में, भारतीय वैज्ञानिकों ने Y क्रोमोसोम के बारे में चौंकाने वाला खुलासा किया है, जो बताता है कि लिंग निर्धारण के अलावा कुछ अन्य प्रक्रियाओं में भी Y क्रोमोसोम की भूमिका हो सकती है। इस अध्ययन में, वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि वाई गुणसूत्र पुरुष प्रजनन में शामिल अन्य गुणसूत्रों पर जीन को नियंत्रित करता है।

Y गुणसूत्र पर डीएनए अनुक्रम कई प्रतियों में मौजूद होते हैं और उनमें से बहुत कम प्रोटीन के लिए कोडिंग का काम करते हैं। अब तक यह समझा जाता था कि वे Y गुणसूत्रों पर कुछ प्रोटीन कोडिंग जीन्स के लिए पैकिंग सामग्री के रूप में कार्य करते हैं। कोई स्पष्ट कार्य नहीं होने के कारण, Y गुणसूत्र के डीएनए के अधिकांश भाग को व्यर्थ माना जाता था। सीएसआईआर-कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केन्द्र (सीसीएमबी) के वैज्ञानिक प्रोफेसर राशेल जेसुदासन के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में Yगुणसूत्र डीएनए के आश्चर्यजनक अभिनव नियामक कार्यों के बारे खुलासा किया गया है।

चूहों के Y क्रोमोसम पर किए गए इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया है कि डीएनए के एक गुच्छे का चूहे के वाई गुणसूत्र पर दोहराव होता है, जो वृषण या शुक्र-गन्थि में, विशेष रूप से प्रजनन के लिए आवश्यक अन्य गुणसूत्रों से व्यक्त जीन को नियंत्रित करता है। उन्होंने यह भी दिखाया है कि ये दोहराव प्रजाति-विशिष्ट हैं, यानी वे अन्य प्रजातियों में मौजूद नहीं हैं। शोधकर्ताओं का कहना यह भी है कि ये दोहराव छोटे आरएनए (RNA) के एक वर्ग को जन्म देते हैं, जिन्हें पीआईआरएनए (piRNA) कहा जाता है।

प्रोफेसर जेसुदासन कहते हैं – “मानव Y गुणसूत्र पर हमारे पहले के अध्ययनों में देखा गया है कि Y गुणसूत्र पर लिंग और प्रजाति-विशिष्ट दोहराव प्रजनन के लिए महत्वपूर्ण गुणसूत्र संख्या-1 से संचरित प्रोटीन-कोडिंग RNA को नियंत्रित करता है। इस अध्ययन में, Y गुणसूत्र और अन्य गुणसूत्रों के बीच परस्पर क्रिया की यह पहली रिपोर्ट है। इस प्रकार, दो अध्ययनों को समेकित करते हुए, हम Y गुणसूत्र द्वारा प्रजनन से जुड़े जीनों का अधिक व्यापक विनियमन देख सकते हैं।”

वे कहते हैं – “जैसे-जैसे प्रजातियां विकसित होती हैं, ये दोहराव भी साथ-साथ विकसित होते रहते हैं, और धीरे-धीरे प्रजातियों के प्रजनन को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं रहते हैं। इस प्रकार, ऐसा प्रतीत होता है कि ये दोहराव प्रजातियों की पहचान और विकास-क्रम का आधार हैं।”

स्त्रोत : विज्ञान प्रसार

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Comments 3

  1. Mansee says:
    1 year ago

    Super notes

    Reply
  2. Amit Kumar says:
    7 months ago

    10 class NCERT Book all subjects in hindi pdfy

    Reply
  3. Bankaram says:
    4 months ago

    B.sc b.ed nots sahie

    Reply

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