इस आर्टिकल में हम प्रजनन तंत्र के बारे में जानेगे | प्रजनन तंत्र (Reproductive System) क्या है, मानव प्रजनन तंत्र | Human Reproductive System क्या है, अलैगिक जनन (Asexual Reproduction) और लैंगिक जनन (Sexual Reproduction) क्या है, नर प्रजनन तंत्र (Male reproductive system) और उसके मुख्य अंग कोनसे है, मादा जनन तंत्र (Female reproductive system) और उसके मुख्य अंग कोनसे है, मानव प्रजनन की क्रियाविधि (Mechanism of human reproduction) कोन कोनसी है, आदि |
प्रजनन तंत्र (Reproductive System)
प्रजनन तन्त्र (Reproductive System) वह प्रक्रिया, जिसके द्वारा जीवधारी अपने जैसा जीव उत्पन्न करता है, जनन या प्रजनन (reproduction) कहलाता है। इस प्रक्रम द्वारा जीव अपनी संख्या में वृद्धि करते हैं | प्रजनन वह प्रक्रम है जिसके द्वारा जीव अपनी ही जैसी अन्य उर्वर सन्तानों की उत्पत्ति करता है और इस प्रकार अपनी संख्या में वृद्धि कर अपनी जाति के अस्तित्व को बराबर बनाए रखकर उसे विलुप्त होने से बचाता है। जीवों के प्रजनन में भाग लेने वाले अंगों को प्रजनन अंग (Reproductive organs) और एक जीव के सभी प्रजनन अंगों को सम्मिलित रूप से प्रजनन तंत्र (Reproductive system) कहते हैं।
प्राणियों में जनन के प्रकार
प्राणियों में जनन के निम्न प्रकार है :
अलैगिक जनन (Asexual Reproduction)
जनक की इस विधि में जीव की कायिक कोशिकाओं में कई बार विभाजन होता है, जिससे समान रूप के दो अथवा अधिक नए जीव बनते हैं। अलैगिक जनन निम्न विधियों द्वारा होता है
(i) द्विविखण्डन (Binary fission) – एककोशिकीय जीव; जैसे अमीबा, पैरामीशियम।
(ii) बहुविखण्डन (Multiple fission) – एक कोशिका से अनेक कोशिकाओं अर्थात् जीवों की उत्पत्ति होती है; जैसे- मलेरिया परजीवी प्लाज्मोडियम में
(iii) मुकुलन (Budding) – इस विधि में शरीर में एक उभार बन जाता है। इस पार्श्व उभार को मुकुल (bud) कहते हैं। जनक शरीर के ऊपर मुकुल धीरे-धीरे बड़ा होकर एक नए जीव बन जाते हैं। हाइड्रा एवं यीस्ट कोशिकाओं में होता है।
(iv) पुनरुद्भवन (Regeneration) खण्डित शारीरिक भागों को पुनः प्राप्त करने की जीव की क्षमता पुनर्जनन या पुनरुद्भवन है। हाइड्रा, प्लेनेरिया तथा स्पंजों में यह क्रिया होती है। हाइड्रा को यदि टुकड़ों में काटा जाए, तो इसका प्रत्येक टुकड़ा एक नया हाइड्रा होगा।
लैंगिक जनन (Sexual Reproduction)
लैंगिक जनन के लिए दो लिंगों, नर और मादा का होना आवश्यक है। अधिकतर प्राणियों में मनुष्यों की भाँति नर तथा मादा जनन अंग अलग-अलग जीव में होते हैं ऐसे जीव एकलिंगी (unisexual) कहलाते हैं। पौधों तथा कुछ प्राणियों में जैसे फीताकृमि, केंचुआ, तारामीन आदि में नर तथा मादा लैंगिक अंग एक ही जीव में पाए जाते हैं। ऐसे जीवों को द्विलिंगी या उभयलिंगी (hermaphrodite) कहते हैं।
लैंगिक जनन (Sexual Reproduction) से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य
1. जनद प्राथमिक लैंगिक अंग होते हैं, जो अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा युग्मक बनाते हैं। वृषण नर जनद होता है, जो शुक्राणुओं को उत्पन्न करता है तथा अण्डाशय मादा जनद है, जो अण्डाणुओं को उत्पन्न करता है।
2. लैंगिक जनन का प्रारम्भ दो विभिन्न युग्मकों के सम्मिलन (fusion) से होता है, जिसे निषेचन (fertilization) कहते हैं। निषेचन के बाद एक युग्मनज (zygote) बनता है, जो नए जीव में विकसित होता है।
3. मछलियों एवं उभयचरों में निषेचन सामान्यतया शरीर के बाहर होता है। इसे बाह्य निषेचन (जो सदैव जलीय माध्यम में होता है), कहते हैं, जबकि आन्तरिक निषेचन सरीसृपों, पक्षियों तथा स्तनधारियों में होता है।
4. लैंगिक जनन एक उच्च विकसित प्रक्रिया है तथा अलैंगिक जनन की तुलना में इसके बहुत लाभ हैं। लैंगिक जनन संततियों में गुणों की विभिन्नताओं को बढ़ावा देता है क्योंकि इसमें दो विभिन्न तथा लैंगिक असमानता वाले जीवों से आए युग्मकों का संलयन होता है।
मानव प्रजनन तन्त्र (Human Reproductive System)
मानव एकलिंगी (Unisexual) प्राणी है, अर्थात् नर और मादा लिंग अलग-अलग जीवों में पाये जाते हैं। जो जीव केवल शुक्राणु उत्पन्न करते हैं उसे नर कहते हैं। जिन जीवों से केवल अण्डाणु की उत्पत्ति होती है, उन्हें मादा कहते हैं। शुक्राणु तथा अंडाणु के निषेचन ( Fer tilization ) से युग्मनज ( Zygote ) का निर्माण होता है जो आगे चल कर नए जीव का निर्माण करता है ।
मानव में प्रजनन तंत्र अन्य जन्तुओं की अपेक्षा बहुत अधिक विकसित और जटिल होता है। मानव में अंडे का निषेचन (Fertilization) फैलोपियन नलिका (Fallopian tube) तथा भ्रूणीय तथा (Embryonic development) गर्भाशय (Uterus) में होता है।
मानव जरायुज (viviparous) होते हैं अर्थात् ये सीधे शिशु को जन्म देते हैं। मानव में जनन अंग मादा में 12 से 13 वर्ष की उम्र में तथा नर में 15 से 18 वर्ष की उम्र में प्रायः क्रियाशील हो जाते हैं। प्रजनन अंग भी कुछ हार्मोन (Hormone) का स्राव (secretion) करते हैं जो शरीर में अनेक प्रकार के परिवर्तन लाते हैं। ऐसे परिवर्तन मादा में प्रायः वक्ष तथा जनन अंगों पर बाल उगने तथा नर में दाढ़ी एवं मूंछ आने से परिलक्षित होता है। मानव में नर तथा मादा प्रजनन अंग पूर्णतया अलग अलग होते हैं।
लैंगिक जनन हेतु इस के लिए उत्तरदायी जनन कोशिकाओं का विकास एक विशेष अवधि जिसे यौवनांरभ (Puberty) कहा जाता है में होता है । इस अवस्था में लैगिंक विकास दृष्टिगोचर होने लगता है तथा जनन परिपक्वता आती है ।
मनुष्य में लैगिंक परिपक्वता 18 – 19 वर्ष की उम्र में पूर्ण हो जाती है । इस अवधि में मनुष्यों की संवेदनाओं तथा उसके बौद्धिक व मानसिक स्तर में परिवर्तन आता है । यौवनांरभ से लैगिंक परिपक्वता तक आए परिवर्तनों के मूल में विभिन्न हार्मोनो का स्त्रावंण है | मानव नर में टेस्टोस्टेरोन Testosterone ) तथा स्त्रियों में एस्ट्रोजन (Estrogen) तथा प्रोजेस्टेरोन (Progesterone) प्रमुख लिंग हार्मोन हैं ।
लड़को में यौवनांरभ के लक्षण – आवाज का भारी होना , दाढ़ी मूंछ आना , काँख एंव जननांग क्षेत्र में बालों का आना , त्वचा तैलीय होना आदि ।
लड़कियों में यौवनांरभ के लक्षण – लड़कियों में में स्तन का बनाना तथा आकार में वृद्धि , त्वचा का तैलीय होना, जननांग क्षेत्र में बालों का आना, रजोधर्म (Menstrual cycle) का शूरू होना, आदि यौवनांरभ के लक्षण हैं।
नर जनन अंग – वृषण , वृषणकोष , शुक्रवाहिनी , शुक्राशय , प्रोस्टेट ग्रन्थि, मूत्र मार्ग तथा शिश्न ।
मादा जनन अंग – अण्डाशय , अण्डवाहिनी , गर्भाशय तथा योनि ।
नर प्रजनन तंत्र (Male reproductive system)
जनन कोशिका उत्पादित करने वाले अंग एवं जनन कोशिकाओं को निषेचन के स्थान तक पहुँचाने वाले अंग संयुक्त रूप से नर प्रजनन तंत्र कहलाते हैं।
मानव के नर प्रजनन तंत्र में निम्नलिखित लैंगिक अंग (Sex Organs) एवं उनसे सम्बद्ध अन्य रचनाएँ पायी जाती हैं –
वृषण एवं वृषण कोष (Scrotum), 2. अधिवृषण (Epididymis) 3. शुक्रवाहिका, 4. शुक्राशय (Seminal vesicles), 5. मूत्र मार्ग (Urethera), 6. शिश्न (Penis), 7. पुरःस्थ या प्रोस्टेट ग्रन्थि (Prostate Gland)

जनद अंग (Gonads)
ये वे अंग छोटे होते हैं जो या तो लैंगिलैं क कोशिकाओं या युग्मकों (Sex cells तथा Gametes) का निर्माण करते हैं । साथ ही ये कुछ हार्मोन का स्त्राव भी करते है । ये अंग जनद (Gonads) कहलाते हैं । नर में जनद वृषण (Testis) कहलाते है तथा नर जनन कोशिका – शुक्राणु का निर्माण करने के लिए उत्तरदायी होते हैं । यह उदर गुहा के बाहर वृषण कोष (Scrotum) में उपस्थित होता है । वृषण के दो भाग होते है | प्रथम जो शुक्राणु निर्माण करता है तथा द्वितीय अंतः स्त्रावी ग्रन्थि के तौर पर टेस्टोस्टेरान हार्मोन का स्त्राव करता है ।
वृषण एवं वृषण कोष (Testes and scrotal sac)
मानव प्रजनन अंगों में वृषण मुख्य तथा अन्य सहायक अंग हैं। इसमें शुक्राणुओं का निर्माण होता है तथा इससे पुरुष हॉमोन टेस्टोस्टेरॉन का अन्तःस्राव होता है। वृषण नर में पाया जाने वाला प्राथमिक जनन अंग है। ये नर जनन ग्रन्थियाँ हैं जो अण्डाकार होती हैं। इनकी संख्या दो होती है। वृषण त्वचा की बनी एक थैली जैसी रचना में स्थित रहते हैं जो शरीर के बाहर लटकती रहती है। इसे वृषण कोष (Scrotal Sae )कहते हैं। वृषण की कोशिकाओं द्वारा नर युग्मक अर्थात् शुक्राणुओं का निर्माण होता है।
शुक्राणु (sperm) उत्पादन के लिए आवश्यक ताप शरीर के ताप से कम होता है। यही कारण है कि वृषण उदर गुहा के बाहर वृषण कोष में स्थित होते हैं। एक औसत स्खलन में लगभग एक चम्मच शुक्र स्राव होता है। इसमें शुक्राणुओं की संख्या 20 से 20 लाख तक होती है।
शुक्राणु की लम्बाई 5 माइक्रॉन होती है। यह तीन भाग में विभाजित रहता है- सिर, ग्रीवा और पुच्छ। शुक्राणु शरीर में 30 दिन तक जीवित रहते हैं जबकि मैथून के पश्चात स्त्रियों में केवल 72 घण्टे तक ये जीवित रहते हैं। वृषण में एक प्रकार का द्रव भरा रहता है जिसे वृषण द्रव (seminal fluid) कहते हैं। वृषण का प्रत्येक खण्ड शुक्रजनन नलिकाओं (seminiferous tubules) से भरा रहता है। ये नलिकाएँ छल्लेदार होती है।
शुक्रजनन नलिकाओं के बीच अंतराली कोशिकाओं (Interstitial cells) के समूह पाये जाते हैं जो नर जनन हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन (Testosterone) का स्राव करती है। यह हार्मोन गौण लैंगिक लक्षणों (secondary sexual characters) के विकास और नियंत्रण में सहायक होता है। सभी शुक्रजनन नलिकाएँ आपस में मिलकर शुक्र अपवाहिका (vas efferentia) बनाती है। शुक्र-अपवाहिकाएँ मिलकर अन्त में अधिवृषण-वाहिनी (Epididymis duct) बनाती है।
वृषण में ही शुक्रजनन नलिकाओं द्वारा शुक्राणु कोशिकाओं की उत्पत्ति होती है। वृषण से शुक्राणु कोशिकाएँ अधिवृषण (Epididyonis) में चली जाती हैं जहाँ वे संचित रहती हैं। वृषण का प्रमुख कार्य शुक्राणुओं का निर्माण करना और नर हार्मोन टेस्टोस्टेरान की उत्पत्ति करना है।
अधिवृषण (Epididymis)
यह एक 6 मीटर लम्बी कुण्डलित नलिका होती है जो प्रत्येक वृषण के पीछे स्थित होती है। यह वृषण से अच्छी तरह जुड़ी रहती है। इसका एक छोर वृषण से जुड़ा रहता है तथा दूसरा छोर अधिवृषण से आगे बढ़कर शुक्रवाहिका (vas deferens) बनाता है। अधिवृषण शुक्राणुओं के प्रमुख संग्रह स्थान का कार्य करता है। इसके अतिरिक्त अधिवृषण में शुक्राणुओं का परिपक्वन (Maturation) भी होता है। शुक्राणु यहीं सक्रियता प्राप्त करते हैं।
शुक्रवाहिका (Vas deferens)
यह एक पतली नलिका होती है जिसकी भित्तियाँ मांसपेशियों की बनी होती है। अधिवृषण से शुक्राणु शुक्रवाहिका में पहुँचते हैं। शुक्रवाहिका अधिवृषण को शुक्राशय (seminal vesicle) से जोड़ती है। ये शुक्राणुओं को आगे की ओर बढ़ाने का काम करती हैं।
शुक्राशय (vas vesicles)
यह एक जोड़ी पतली पेशीयुक्त भितियोंवाली रचना होती है। ये पालियुक्त (Lobed) रचनाएँ होती हैं। यह प्रोस्टेट ग्रन्थियों (Prostate glands) के ऊपर स्थित रहता है। दोनों ओर के शुक्राशय मिलकर स्खलनीय वाहिनी (Ejaculatory duct) का निर्माण करते हैं। शुक्राशय से एक प्रकार का चिपचिपा पदार्थ स्रावित होता है।
पुरःस्थ या प्रोस्टेट ग्रन्थि (Prostate Gland)
यह मूत्र मार्ग (Urethra) से मूत्राशय (Urinary bladder) तक सम्बद्ध रहता है। इसका आकार गोल सुपारी जैसा होता है। दोनों पुरःस्थ (Prostate) ग्रन्थियाँ संयुक्त होकर एक सामान्य पुरःस्थ ग्रन्थि का निर्माण करती है। इसमें लगभग दो दर्जन नलिकाएँ होती हैं जो मूत्रमार्ग (Urethra) में खुलती है। पुरःस्थ से एक प्रकार का द्रव स्रावित होता है जिसे पुरःस्थ द्रव (Prostate fluid) कहते हैं। यह द्रव शुक्र (semen) को विशिष्ट गंध (smell) प्रदान करता है। पुरःस्थ द्रव शुक्राशय द्रव के साथ मिलकर मूत्रमार्ग (Urethra) में पहुँचते हैं।
शिश्न (Penis)
शिश्न पुरुषों का संभोग करने वाला अंग होता है। शिश्न के माध्यम से ही शुक्राणु मादा के प्रजनन तंत्र में पहुँचते हैं। मूत्र मार्ग (Urethra) मूत्राशय से प्रारम्भ होकर शिश्न से गुजरकर उसके (शिश्न के) ऊपरी भाग में खुलता है। शिश्न में अत्यधिक रक्त की आपूर्ति होती है। साथ-ही-साथ इसकी पेशियाँ भी विशिष्ट प्रकार की होती है। जो इसे कड़ापन प्रदान करती है। शिश्न शुक्र (semen) को शरीर से बाहर निकालकर मादा की योनि (vagina) के भीतर तक पहुँचाता है।

मादा जनन तंत्र (Female reproductive system)
मादा जनन तंत्र में निम्नलिखित जनन अंग होते हैं- 1. अण्डाशय, 2. अण्डवाहिनियाँ, 3. गर्भाशय, 4. योनि।

अण्डाशय (Ovaries)
प्रत्येक मादा में एक जोड़ा अंडाशय होता है। ये उदर के निचले भाग में श्रोणिगुहा (Pelvie cavity) में दोनों ओर दाएँ और बाएँ एक-एक स्थित होते हैं। प्रत्येक अंडाशय एक अंडाकार (Oval) रचना होती है। प्रत्येक अंडाशय लगभग 4 सेमी लम्बा, 2.5 सेमी चौड़ा और 1.5 सेमी मोटा होता है। अंडाशय पेरिटोनियम (Peritoneurn) झिल्ली द्वारा उदर (Abdomen) से सटा रहता है। अंडाशय के भीतर अंडाणुओं का अंडजनन द्वारा निर्माण होता है। अंडाशय का बाह्य स्तर एपिथीलियम का बना होता है जिसे जनन एपिथीलियम (Germinal epithelium) कहते हैं।
अंडाशय का आन्तरिक भाग तंतुओं एवं संयोजी ऊतक (Connective tissue) का बना होता है, जिसे स्टोमा (stroma) कहते हैं। अंडाशय का मुख्य कार्य अंडाणु (Ovum) पैदा करना है। अंडाशय से दो हार्मोन आस्ट्रोजन (Oestrogen) तथा प्रोजेस्टेरान (Progesterone) का स्राव (Secretion) होता है, जो ऋतुस्राव (Menstruation) को नियंत्रित करते हैं।
अण्डवाहिनियाँ (Fallopian tube)
अण्डवाहिनी या फैलोपियन नलिका की संख्या दो होती है, जो गर्भाशय के ऊपरी भाग के दोनों बगल लगी रहती है। प्रत्येक फेलोपियन नलिका लगभग 10 सेमी लम्बी होती है। इस नलिका का एक सिरा गर्भाशय से सम्बद्ध रहता है और दूसरा सिरा अण्डाशय की ओर अंगुलियों के समान झालर बनाता है। इस रचना को फिम्ब्री (Fimbri) कहते हैं।
अण्डाणु जब अण्डाशय से बाहर निकलता है तब वह फिम्ब्री द्वारा पकड़ लिया जाता है। इसके बाद अण्डाणु फेलोपियन नलिका की गुहा में पहुँच जाता है। फेलोपियन नलिका से अण्डाणु गर्भाशय में पहुँचता है। फेलोपियन नलिका का प्रमुख कार्य फिम्ब्री द्वारा अण्डाणु को पकड़ना और गर्भाशय में पहुँचाना है।
गर्भाशय (Uterus)
यह एक नाशपाती के समान रचना होती है जो श्रोणिगुहा (Pelvie Cavity) में स्थित होती है। यह सामान्यतः 7.5 सेमी लम्बा, 5 सेमी चौड़ा तथा 3.5 सेमी मोटा होता है। इससे ऊपर की तरफ दोनों ओर अर्थात् दाएँ और बाएँ कोण पर अण्डवाहिनी खुलती है। इसका निचला भाग सँकरा होता है जिसे ग्रीवा (Cervix) कहते हैं। ग्रीवा आगे की ओर योनि में परिवर्तित हो जाता है।
गर्भाशय का निचला छिद्र इसी में खुलता है। गर्भाशय की भित्ति पेशीय (Muscular) होती है, जिसके भीतर खाली जगह होती है। गर्भाशय की भित्ति के अंदर की ओर एक कोशिकीय स्तर होता है जिसे गर्भाशय अंत: स्तर (Endometrium) कहते हैं। गर्भाशय प्रमुख कार्य निषेचित अण्डाणुओं को भ्रूण परिवर्द्धन हेतु उचित स्थान प्रदान करना है।
योनि (vagina)
यह एक नली के समान रचना होती है। यह लगभग 7.5 सेमी लम्बी होती है। यह बाहर के तल से गर्भाशय तक फैली रहती है। इसके सामने मूत्राशय (Urinary bladder) तथा नीचे मलाशय (Recturn) स्थित होता है। योनि की दीवार पेशीय ऊतक की बनी होती है। योनि का एक सिरा मादा जनन छिद्र के रूप में बाहर खुलता है तथा दूसरा सिरा पीछे की ओर गर्भाशय की ग्रीवा (Cervix) से जुड़ा रहता है। योनि के शरीर के बाहर खुलने वाले छिद्र की योनि द्वार (Vaginal orifice) कहते हैं।
योनि की दीवार में वल्बोरीथल ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं, जिससे एक चिपचिपा द्रव निकलता है। यह द्रव संभोग के समय योनि को चिकना बनाता है। योनि एवं मूत्रवाहिनी के द्वार के ऊपर एक छोटा-सा मटर (Pea) के दाने के जैसा उभार स्थित होता है जिसे भग शिशिनका (Clitoris) कहते हैं। यह एक अत्यन्त ही उत्तेजक अंग होता है, जिसे स्पर्श करने या शिश्न (Penis) के सम्पर्क में आने पर स्री को अत्यधिक सुखानुभूति होती है। मैथून के समय शिश्न से वीर्य निकलकर योनि में गिरता है तथा योनि इसे गर्भाशय में पहुँचा देती है।

अण्डोत्सर्ग (Ovulation)
अण्डाणु के परिवर्द्धन के साथ-साथ गर्भाशय भी परिवर्द्धित होता है। परिवर्द्धन की ये क्रियाएँ हार्मोन द्वारा नियंत्रित होती हैं। 28 दिन की सक्रियता में मानव अण्डाशय सामान्यतः केवल एक अण्डाणु की उत्पत्ति करता है। अण्डाशय द्वारा अण्डाणु की निर्मुक्ति को अण्डोत्सर्ग (Ovulation) कहते हैं।
ऋतुस्राव चक्र (Menstruation cycle)
ऋतुस्राव चक्र का पाया जाना प्राइमेट्स का प्रमुख लक्षण है। स्त्री का प्रजनन काल 12-13 वर्ष की उम्र में प्रारम्भ होता है जो 40-50 वर्ष की उम्र तक चलता है। इस प्रजनन काल में गर्भावस्था को छोड़कर प्रति 26 से 28 दिनों की अवधि पर गर्भाशय से रक्त तथा इसकी आन्तरिक दीवार से शलेष्म का स्राव होता है। यह स्राव तीन-चार दिनों तक चलता है। इसे ही रजोधर्म या मासिक धर्म या ऋतुस्राव चक्र (Menstruation cycle) कहते हैं। ऋतुस्राव के प्रारम्भ होने के 14 दिन बाद अण्डोत्सर्ग होता है। यह अण्डोत्सर्ग दोनों अण्डाशयों से बारी-बारी से होती है।
अण्डोत्सर्ग के कुछ समय के पश्चात अण्डाणु अण्डवाहिनी में पहुँच जाता है और 15वें से 19वें दिन तक इसमें रहता है। इस बीच यदि स्त्री सम्भोग करे, तो यह अण्डाणु निषेचित होकर गर्भाशय में चला जाता है, अन्यथा वह अगले ऋतुस्राव में बाहर निकल जाता है। लड़कियों में मासिक धर्म या ऋतुस्राव चक्र प्रथम बार 12-13 वर्ष की उम्र में प्रारम्भ होता है, इसे मेनार्कि (Menarche) कहते हैं।
अण्डोत्सर्ग के पश्चात पुटक (Follicle) पीले रंग का हो जाता है। अब इस पुटक को पीत पिण्ड या कॉर्पस ल्यूटियम (Corpus leuteum) कहते हैं। पीतपिण्ड या कॉर्पसल्यूटियम के परिवर्द्धन का भी नियंत्रण हार्मोन द्वारा होता है। कॉर्पस ल्यूटियम द्वारा एक हार्मोन का स्राव होता है जिसे प्रोजेस्टेरॉन (Progesterone) कहते हैं।
गर्भधारण हेतु उपयुक्त परिस्थितियां (Favourable conditions for pregnancy):
सम्भोग क्रिया द्वारा हमेशा गर्भधारण नहीं होता है। इसके लिए कुछ परिस्थितियों का अनुकूल होना आवशयक है ये परिस्थितियाँ हैं-
- गर्भधारण के लिए आवश्यक है कि ऋतुस्राव के 14वें दिन के आस-पास या 11वें से 18वें दिन के अन्दर सम्भोग अनिवार्य रूप से हो।
- अण्डवाहिनी (Fallopian tube) एवं गर्भाशय सूजन एवं संक्रमण से मुक्त हो।
- वीर्य (semen) में शुक्राणुओं (sperms) की संख्या सामान्य हो।
मानव प्रजनन की क्रियाविधि (Mechanism of human reproduction)
मानव के प्रजनन में तीन अवस्थाएँ होती हैं। ये हैं-
युग्मक जनन (Gametogenesis)
वृषण तथा अण्डाश्य में अगुणित युग्मकों ( Haploid gametes ) की निर्माण विधि को युग्मकजनन कहा जाता है । नर के वृषण में होने वाली इस क्रिया द्वारा शुक्राणुओं का निर्माण होता है तथा यह क्रिया शुक्रजनन कहलाती है । मादा के अण्डाशय में युग्मको ‘ की निर्माण क्रिया जिस के द्वारा अण्डाणु का निर्माण होता है । अण्डजनन कहलाती है ।
निषेचन (Fertilization)
मादा में उपस्थित अण्डाणु मेथुन के दौरान नर द्वारा छोड़े गए शुक्राणुओं के संपर्क में आते हैं तथा संयुग्मन कर युग्मनज ( Zygote ) का निर्माण करते है । यह प्रक्रिया निषेचन कहलाती है
भ्रूणीय विकास (Gametogenesis)
वृषण (Testes) एवं अण्डाशयों (Ovaries) में युग्मकों के निर्माण की प्रक्रिया को युग्मक जनन (Gametogenesis) कहते हैं। युग्मकों का निर्माण वृषण तथा अण्डाशय की जनन कोशिकाओं में अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis) द्वारा होता है। वृषण में शुक्राणुओं (sperms) का निर्माण शुक्रजनन (Spermatogenesis) तथा अण्डाणु (ovum) का अण्डाशय में निर्माण अण्डजनन (Oogenesis) कहलाता है।
शुक्रजनन (Spermatogenesis) एवं अण्डजनन (Oogenesis) में समानता एवं विभिन्नताएं
समानता (Similarities) | |
शुक्रजनन | अण्डजनन |
1. शुक्राणुओं का निर्माण जनन एपिथीलियम की कोशिकाओं के विभाजन से होता है। | 1. अण्डाणुओंका निर्माण भी जनन एपिथीलियम की कोशिकाओं के विभाजन से होता है। |
2. शुक्रजनन क्रिया में गुणन, वृद्धि एवं परिपक्वन तीनों प्रावस्थाएँ होती हैं। | 2. अण्डजनन क्रिया में भी शुक्रजनन की तरह तीनों प्रावस्थाएँ होती हैं। |
3. शुक्रजनन के परिपक्वन प्रावस्था में दो विभाजन होते हैं। | 3. अण्डजनन के परिपक्वन प्रावस्था में भी शुक्रजनन के परिपक्वन प्रावस्था की तरह दो विभाजन होता है। |
4. समसूत्री विभाजन द्वारा गुणन प्रावस्था में कोशिकाएँ संख्या में वृद्धि करती है। | 4. इसमें भी समसूत्री विभाजन द्वारा गुणन प्रावस्था में कोशिकाएँ संख्या में वृद्धि करती हैं। |
5. इसमें अन्तिम उत्पाद नर युग्मक (Male gametes) बनते हैं। | 5. इसमें अन्तिम उत्पाद मादा युग्मक (Female gametes) बनते हैं। |
विभिन्नताएं (Dissimilarities): | |
1. एक स्पर्मेटोसाइट से चार शुक्राणुओं का निर्माण होता है। | 1. एक ऊगोनिया (Oogonia) से केवल एक अण्डाणु का निर्माण होता है। |
2. शुक्रजनन क्रिया में कोई भी ध्रुव कोशिका नहीं बनती है। | 2. अण्डजनन में दो या तीन ध्रुव कोशिकाएँ बनती हैं। |
3. स्पर्मेटोसाइट से बने चारों शुक्राणु निषेचन क्रिया में भाग ले सकते हैं। | 3. ऊगोनिया से बना अण्डाणु निषेचन क्रिया में भाग ले सकता है। ध्रुव कोशिकाए निषेचन क्रिया में भाग नहीं लेती हैं। |
4. शुक्राणु छोटे एवं सक्रिय होते हैं। | 4. अण्डाणु बड़े एवं निष्क्रिय होते हैं। |
निषेचन (Fertilization)
नर युग्मक (शुक्राणु) एवं मादा युग्मक (अण्डाणु) के आपस में सम्मिलन से युग्मनज (zygote) बनने की क्रिया को निषेचन कहते हैं। मनुष्य में अन्तः निषेचन (Internal fertilization) पाया जाता है। मनुष्य में निषेचन की क्रिया मादा की अण्डवाहिनी (Fallopian tube) में होती है। इस क्रिया में नर युग्मक का केवल केन्द्रक भाग लेता है जबकि सम्पूर्ण मादा युग्मक इसमें भाग लेता है।
भ्रूणीय विकास (Embryonic development)
निषेचन क्रिया के बाद बना युग्मनज तीव्रता से समसूत्री विभाजनों द्वारा विभाजित होने लगता है, और अन्ततः गर्भाशय में एक पूर्ण विकसित शिशु को स्थापित करता है। निषेचन के लगभग 10 सप्ताह तक के विकसित युग्मनज को भ्रूण (Embryo) तथा युग्मनज में होने वाले विभिन्न क्रमिक परिवर्तनों को भ्रूणीय विकास कहते हैं।
भ्रूण में 5वें सप्ताह तक तीन जननिक स्तरों का निर्माण हो जाता है। ये तीन जननिक स्तर हैं- (a) इण्डोडर्म (Endoderm) (b) मीसोडर्म (Mesoderm) तथा (c) एक्टोडर्म (Ectoderm)
इसके पश्चात इन स्तरों से विभिन्न शारीरिक अंगों का निर्माण होता है। भ्रूण में 7वें से 9वें सप्ताह के मध्य तक हाथ, पैर, श्वसन तंत्र, तंत्रिका तंत्र एवं पाचन तंत्र बन जाते हैं। तीसरे माह में भ्रूण में कंकाल तंत्र बन जाता है। चौथे माह में सिर एवं शरीर पर रोएँ, पाँचवें माह में आहारनाल, रुधिर व अस्थिमज्जा बन जाते हैं। छठे माह में भ्रूण छोटे शिशु का रूप धारण कर लेता है।
सातवें माह तक शिशु के सभी अंग अच्छी तरह कार्य करने लगते हैं। आठवें माह में उसमें वसा का जमाव होने लगता है जबकि नवें माह में वह जन्म के लिए तैयार हो जाता है। भ्रूण का पोषण जरायु (Chorin) एम्नियान एवं अपरा (Placenta) द्वारा होता है। मनुष्य में गर्भाधान काल 280 दिनों का होता है। इसके पश्चात प्रसव द्वारा शिशु मादा के शरीर के बाहर आ जाता है।
मानव प्रजनन तंत्र | Human Reproductive System – महत्वपूर्ण तथ्य
- यौवनारम्भ (Puberty): मनुष्य के जीवन काल में जब उसमें जनन क्षमता आरम्भ होती है, वह समय यौवनारम्भ (Puberty) कहलाता है। जनन की क्षमता स्त्रियों में सामान्यतः 12-16 वर्ष की उम्र में प्रारम्भ होती है जबकि 40-50 वर्ष की आयु में समाप्त हो जाती है। पुरुषों में भी यौवनारम्भ प्रायः 12-16 वर्ष की उम्र में होता है जबकि 50 वर्ष की उम्र के बाद धीरे-धीरे जनन क्षमता घटती जाती है।
- गौण लैंगिक लक्षण (Secondary Sexual Characters): यौवनारम्भ के समय मनुष्य के शरीर में अनेक प्रकार के परिवर्तन होते हैं तथा अनेक ऐसे परिवर्तन होते हैं जो मादा को नर से विभेदित करते हैं। इन लक्षणों को गौण लैंगिक लक्षण कहते हैं।
- मेनार्कि (Menarche)– लड़कियों में मासिक चक्र का प्रथम बार प्रारम्भ होना (12-13 वर्ष की उम्र में) मेनार्कि (Menarche) कहलाता है।
- रजनोवृति (Menopause): स्त्रियों में 40-50 वर्ष की उम्र के पश्चात ऋतु स्राव नहीं होता है। इसे ही रजनोवृति (Menopause) कहते हैं।
- अण्डोत्सर्ग (Ovulation): अण्डाशय द्वारा अण्डाणु की निर्मुक्ति को अण्डोत्सर्ग कहते हैं।
- जरायु (Chorion): गर्भ की सबसे बाहरी झिल्ली को जरायु कहते हैं।
- अंकुर (Villi): जरायु से अंगुलियों के आकार के अनेक प्रवर्द्ध निकलते हैं, जिन्हें अंकुर कहते हैं।
- अपरा (Placenta): अंकुर और गर्भाशय कोशिकीय परत के सम्पर्क क्षेत्र को अपरा कहते हैं।
- नाभिरज्जु (Umbilical cord): गर्भ अपरा से एक मजबूत डोरी जैसी रचना से जुड़ा रहता है जिसे नाभिरज्जु कहते हैं। यह माता और गर्भ के बीच सम्पर्क अंग का कार्य करता है।
- युग्मनज (zygote): निषेचित अण्डाणु को युग्मनज कहा जाता है।
- कृत्रिम वीर्य सेचन (Artificial insemination): जब शुक्राणु की मादा योनि (Vagina) में कृत्रिम विधि द्वारा स्थानान्तरित किये जाते हैं तो इस क्रिया को कृत्रिम वीर्यसेचन कहते हैं।
- आन्तरिक निषेचन (Internal fertilization): उच्च स्तनधारियों में निषेचन की क्रिया मादा के शरीर के अंदर होती है। इस प्रकार के निषेचन की आन्तरिक निषेचन कहते हैं।
- वीर्य सेचन (Insemination): मैथुन के समय नर के शिशन द्वारा मादा की योनि में वीर्य जमा करना वीर्य सेचन या इनसेमिनेशन कहलाता है।
पादप प्रजनन (Plant Reproduction)
अधिकांश आवृतबीजी पौधों में लैंगिक जनन होता है लेकिन कुछ में कर्तन; जैसे-गन्ने में, रोपण; जैसे- गुलाब, बौगेनविलिया में आदि पाया जाता है।
लैंगिक जनन में अर्द्धसूत्री विभाजन से वीजाणुओं तथा इनके संलयन से द्विगुणित युग्मनज का निर्माण होता है।
परागकण नर युग्मकोद्भिद् की प्रथम कोशिका है इसकी बाह्य परत स्पोरोपोलेनिन की बनी होती है। यह अधिक प्रतिरोध क्षमता रखती है।
मादा जनन अंग में गुरूबीजाणु मात्र कोशिका से चार गुरूबीजाणु बनते हैं परन्तु केवल एक कार्यशील होता है, जो विभाजित होकर समान्यतया 7 कोशिकीय, 8 केन्द्रकीय पॉलीगोनम प्रकार का भ्रूणकोष बनाता है।
एक नर युग्मक अण्ड से संयोग कर युग्मनज बनाता है, जबकि दूसरा नर युग्मक द्वितीयक केन्द्रक से संयोग कर त्रिगुणित प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक बनाता है अर्थात् आवृतबीजियों के निषेचन में पाँच केन्द्रक भाग लेते हैं, इसे द्विनिषेचन कहते है।