इस आर्टिकल में हम जानेगे कि आनुवंशिकता क्या है ? आनुवंशिकी क्या है ? जेनेटिक्स के प्रमुख नियम क्या है ? आनुवंशिक विज्ञान किससे सम्बन्धी है ? मेण्डलवाद(Mendelism) क्या है और इसके प्रमुख नियम कोनसे है ? प्रभाविता का नियम का नियम क्या है ? पृथक्करण का नियम क्या है ? स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम क्या है ? प्रतीप संकरण (Back Cross) और परिक्षार्थ संकरण (Test Cross) क्या होते है ? जीनों में अन्योन्य क्रिया (Interaction in Genes) क्या होती है ? उत्परिवर्तन (Mutation) क्या है ? गुणसूत्रीय उत्परिवर्तन (Chromosomal Mutation) क्या है ? जीन उत्परिवर्तन (Gene Mutation) क्या होते है ? DNA की संरचना (Structure of DNA) कैसी होती है ? सहलग्नता (Linkage) क्या होती है ? वर्णान्धता (Colour Blindness) क्या होती है ? वाटसन एवं क्रिक मॉडल क्या है ? और साथ ही हम बात करेगे की आनुवंशिक कोड (Genetic Code) क्या होते है और किस तरह महत्वपुर्ण होते है ? साथ ही हम जानेगे मानव जीनोम (Human Genome) क्या है और कैसे यह विज्ञान जगत में महत्वपुर्ण है ? आदि
आनुवंशिकी Genetics
जीव विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत आनुवांशिक लक्षणों के संतान में पहुंचने की रीतियों एवं आनुवंशिक समानता एवं विभिन्नताओं का अध्ययन करते हैं आनुवंशिक विज्ञान या आनुवंशिकी (जेनेटिक्स) कहलाती है।”
प्रत्येक जीव में बहुत से ऐसे गुण होते हैं जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी माता-पिता से उनकी संतानों में संचारित होते रहते हैं। ऐसे गुणों को आनुवंशिक गुण (Hereditary characters) या पैतृक गुण कहते हैं। जीवों के इन मूल गुणों का संचरण आनुवंशिकता कहलाता है। दूसरे शब्दों में वंशागत लक्षणों (Inherited Characters) का अध्ययन आनुवंशिकता (Heredity) कहलाता है। इसी के कारण ही प्रत्येक जीव के गुण अपने माता-पिता के गुणों के समान होते हैं।
जीवों में प्रजनन के द्वारा संतान उत्पन्न करने की अद्भुत क्षमता होती है। संतानों में कुछ लक्षण माता-पिता से पीढ़ी-दर-पीढ़ी पहुंचते रहते हैं, जिन्हें आनुवंशिक लक्षण कहते हैं। इन्हें आनुवंशिक गुण (Hereditary characters) या पैतृक गुण भी कहा जाता है | इन गुणों का संचरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जनकों के युग्मकों (Gametes) के द्वारा होता है।
डब्ल्यू वाटसन ने 1905 में सर्वप्रथम ‘जेनेटिक्स (Genetics)’ शब्द का प्रयोग किया। आनुवंशिकी के क्षेत्र में मार्गन, ब्रिजेज, मूलर, सटन, बीडल, नौरेनबर्ग एवं डॉ. हरगोविन्द खुराना का कार्य अविस्मरणीय है।
आणविक आनुवंशिकी
प्रत्येक जीव में गुणसूत्रों की संख्या निश्चित होती है। गुणसूत्र हिस्टोन प्रोटीन एवं न्यूक्लिक अम्ल (डीएनए व आरएनए) से बना होता है। डीएनए एवं आरएनए दोनों ही न्यूक्लियोटाइड के बहुलक होते हैं। न्यूक्लियोटाइड निम्नलिखित पदार्थों से मिलकर बनते हैंः
1. शर्करा
2. नाइट्रोजीनस झार
3. फॉस्फेट
आनुवंशिक अभियांत्रिकी
यह एक ऐसी आनुवंशिक तकनीक है जिसमें जीवों के जीन का परिचालन किया जाता है, जिसकी वजह से इसमें जेनेटिक कोड स्थायी रूप से बदल जाते हैं।
डीएनए की सफलतापूर्वक ग्राफ्टिंग सर्वप्रथम पॉलवर्ग द्वारा की गई थी। इसे डीएनए ैट-40 (सिमियन वायरस-40) से लिया गया था और इसे बैक्टीरिया के डीएनए से मिलाया गया।
मेण्डलवाद (Mendelism)
ग्रेगर जॉन मेंडल (1822-84) ने मटर के पौधे पर संकरण का प्रयोग कर आनुवंशिकी के क्षेत्र में एक नयी अवधारणा की शुरूआत की। मेंडल को आनुवंशिकी का जनक या आनुवंशिकी का पिता (Father of Genetics) कहा जाता है। ग्रेगर जॉन मेंडल (Gregor John Mendel) ने अपने वैज्ञानिक खोजों से आधुनिक आनुवंशिकी (Modern genetics) की नींव डाली।
ग्रेगर जॉन मेंडल (Gregor John Mendel, 1822-84) आस्ट्रिया देश के ब्रून (Brunn) नामक स्थान में ईसाइयों के एक मठ के पादरी थे।
मेण्डल ने ‘मटर’ (Pisum sativum) के पौधों पर किए गए अपने प्रयोगों पर आधारित निष्कर्षों को आनुवंशिकता के नियमों के रूप में 1865 में “प्रोसिडिंग ऑफ द नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी ऑफ बून” पत्रिका में प्रकाशित किया। मटर के पौधों पर किए गए अपने प्रयोगों के निष्कर्षों को उन्होंने 1866 ई. में Annual proceedings of the natural history society or brunn में प्रकाशित कराया, परन्तु विज्ञान जगत में 34 वर्षों तक इस पर ध्यान नहीं दिया गया। मेण्डल के कार्यों के महत्त्व को 1900 में ह्यूगो डी ब्रीज (हॉलैण्ड), कार्ल कॉरेन्स (जर्मनी) और एरिक वान शारमैक (आस्ट्रिया) ने विश्व के समक्ष रखा।
मेण्डल द्वारा लिए गए लक्षणों के प्रभावी तथा अप्रभावी रूप
लक्षण | प्रभावी | अप्रभावी |
पौधे की ऊँचाई | लम्बा | बोना |
पुष्प की स्थिति | कक्षस्थ | अग्रस्थ |
फली का रंग | हरा | पीला |
फली की प्रकृति | फूली हुई | संकुचित |
बीज का आकार | गोल | झुर्रीदार |
पुष्प का रंग | लाल | सफ़ेद |
बीजपत्र का रंग | पीला | हरा |
मेण्डल ने मटर के पौधे में सात जोड़े लक्षण लिए, जो चार अलग-अलग गुणसूत्रों पर उपस्थित थे।
मेण्डल के आनुवंशिकता के नियम
मेण्डल ने मटर के विभिन्न गुणों वाले पौधों के बीज का संकरण कराकर वंशागति के तीन महत्वपूर्ण नियमों का प्रतिपादन किया। इन्हें ‘मेण्डल के आनुवंशिकता के नियम’ के नाम से जाना जाता है। इस नियम के अनुसार युग्मकों के निर्माण के समय कारकों (जीन) के जोड़े के कारक अलग-अलग हो जाते हैं और इनमें से केवल एक कारक ही युग्मक में पहुंचता है। दोनों कारक एक साथ युग्मक में कभी नहीं जाते । इस नियम को युग्मकों की शुद्धता का नियम भी कहा जाता है। मेंडल के नियमों में पहला एवं दूसरा एकसंकरीय क्रॉस के आधार पर तथा तीसरा नियम द्विसंकरीय क्रॉस के आधार पर आधारित है।
ये तीनों नियम इस प्रकार है:
प्रभाविता का नियम (Law of Dominance)
एक जोड़ा विपरीत गुणों वाले शुद्ध पिता और माता में संकरण कराने से प्रथम पीढ़ी में प्रभावीगुण (dominant character) प्रकट होते हैं, जबकि अप्रभावीगुण (recessive character) छिप जाते हैं। जैसे, लाल पुष्प वाले पौधे का सफेद पुष्प वाले पौधे से संकरण कराने पर प्रथम पीढ़ी (R) में केवल लाल में पुष्प वाले पौधे पैदा होते हैं, जबकि सफेद रंग वाला लक्षण दब जाता है। लालरंगप्रभावी (dominant) लक्षण है, जबकि सफेदरंगअप्रभावी (recessive) लक्षण है।
पृथक्करण का नियम (Law of Segregation)
इसके अनुसार, युग्मकों के निर्माण के समय कारकों (जीन) के जोड़े के कारक अलग-अलग हो जाते हैं और इनमें से केवल एक कारक ही किसी एक युग्मक में पहुँचता है।
इस नियम को शुद्धता का नियम (Law of Purity) भी कहते हैं। जब F पीढ़ी के संकर पौधों में स्वपरागण कराया जाता है, तो द्वितीय पीढ़ी में पैतृक लक्षण 3 : 1 के अनुपात में पृथक हो जाते हैं।

फीनोटिपिक अनुपात = 3:1
जीनोटिपिक अनुपात = 1 : 2 : 1
स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent Assortment)
इस नियम के अनुसार, जब दो जीव दो या दो से अधिक लक्षणों में एक-दूसरे से भिन्न होते हैं, तो उनमें से एक लक्षण की वंशागति पर दूसरे लक्षण की, वंशागति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
जब गोल पीले बीज वाले पौधे का झुरींदार हरे बीज वाले पौधे से संकरण कराया जाता है, तो F1 पीढ़ी में सभी गोल पीले बीज वाले पौधे उगते हैं, परन्तु F2 पीढ़ी में 9 : 3 : 3 : 1 का फिनोटिपिक अनुपात प्राप्त होता है।

फीनोटिपिक अनुपात – 9 : 3 : 3 : 1
जीनोटिपिक अनुपात -1:2:2:4:1:2:1:2:1
प्रतीप संकरण (Back Cross)
विषमयुग्मजी F1 संकर का समयुग्मजी प्रभावी जनक से क्रॉस प्रतीप संकरण कहलाता है।
परिक्षार्थ संकरण (Test Cross)
विषमयुग्मजी F1 संकर का समयुग्मजी अप्रभावी जनक के साथ क्रॉस परिक्षार्थ संकरण कहलाता है। इस क्रॉस से पता किया जाता है कि कोई पौधा समयुग्मजी है या विषमयुग्मजी।
परीक्षार्थ संकरण में एकसंकर क्रॉस का अनुपात 1:1 तथा द्विसंकर क्रॉस का अनुपात 1 : 1 : 1 : 1 प्राप्त होता है।
फिनोटाइप जीवधारी के जो लक्षण प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देते हैं, उसे फिनोटाइप कहते हैं, उदाहरण पौधे का लम्बापन।
जीनोटाइप जीवधारी के आनुवंशिक संगठन को उसका जीनोटाइप कहते हैं, जो करकों का बना होता है। उदाहरण TT (कोशिकाओं में दो कारक-दोनों लम्बे लक्षण वाले) जीनोटाइप कहलाता है।
मेण्डलवाद के अपवाद (Exceptions of Mendelism)
अपूर्ण प्रभाविता (Incomplete dominance) – कुछ लक्षणों की आनुवंशिकता के दौरान मेण्डल का प्रभाविता का नियम पूरी तरह काम नहीं करता। E पीढ़ी की संतति में कोई भी लक्षण पूर्णतया प्रभावी नहीं होता है अर्थात् मध्यवर्ती होता है, इसे अपूर्ण प्रभाविता कहते हैं।
स्नैपड्रैगन (snapdragon) तथा गुलाबाँस (4 O’ Clock) में लाल (RR) और सफेद (rr) फूलों वाली किस्मों के बीच संकरण के फलस्वरूप F1 पीढ़ी में गुलाबी फूल उत्पन्न होते हैं। इसका कारण यह है कि लाल रंग सफेद पर पूरी तरह प्रभावी नहीं है। अब यदि F1 पीढ़ी के गुलाबी पुष्पों में स्वपरागण होने दिया तो F2पीढ़ी में फीनोटाइप अनुपात 25% लाल (RR), 50% गुलाबी (Rr) व 25% सफेद (rr) प्राप्त होता है।
सहप्रभाविता (Co-dominance) – इसमें दोनों ही जनकों के लक्षण पृथक रूप से F1 पीढ़ी में प्रकट होते हैं। उदाहरण यदि एक लाल रंग के पशु को श्वेत रंग के पशु से क्रॉस कराया जाता है तो F1 पीढ़ी में चितकबरी सन्तान पैदा होती है।
बहुविकल्पता (Multiple allelism) – मेण्डल के अनुसार जीन के दो ही विकल्पी रूप होते हैं, परन्तु एक ही जीन के एक ही लोकस पर दो से अधिक एलील हो सकते हैं, जो बहुविकल्पी कहलाते हैं; जैसे – मनुष्य में रुधिर वर्ग A, B, AB और O के लिए तीन एलील (IAIBIO) एक ही लोकस पर स्थित होते हैं।
जीनों में अन्योन्य क्रिया (Interaction in Genes)
कभी-कभी दो या दो से अधिक जीन अन्योन्य क्रिया द्वारा एक ही लक्षण को प्रभावित करती है। इस प्रकार की अन्योन्य क्रिया के दौरान कुछ जीन योगात्मक (additive), कुछ पूरक (complementary) तथा कुछ निरोधक (inhibitory) होते हैं।
पूरक जीन (Complementary gene)
जब दो नॉन एलीलिक जीन अकेले-अकेले एक ही लक्षण को अभिव्यक्त करते हैं परन्तु एक साथ होने पर पूर्णतया भिन्न लक्षण प्रदर्शित करते हैं, तो ऐसे जीन पूरक जीन कहलाते हैं। उदाहरण लेथाइरस ऑडोरेटस में CCPP से बैंगनी पुष्प, जबकि ccPP एवं CCpp से सफेद पुष्प उत्पन्न होते हैं। इसमें द्विसंकर अनुपात 9 : 7 प्राप्त होता है।
अनुलिपिक जीन (Duplicate geno)
एक ही गुणसूत्र पर समान प्रभाव दिखने वाले दो जीन अनुलिपिक जीन कहलाते हैं। उदाहरण के तौर पर कैपसेला फलों का प्रकार A तथा B जीन से नियन्त्रित होता है। इसमें द्विसंकर अनुपात 15 : 1 प्राप्त होता है।
प्रबलता (Epistasis)
इसमें एक जीन दूसरे नॉन-एलीलिक जीन के प्रभाव को छिपा देता है। अप्रभावी प्रबलता में 9 : 3 : 4 का द्विसंकर अनुपात, जबकि प्रभावी प्रबलता में 12 : 3 : 1 का द्विसंकर अनुपति प्राप्त होता है।
संदमक जीन (Inhibitory gene)
पृथक गुणसूत्रों पर उपस्थित प्रभावी जीन पारस्परिक क्रिया से दूसरे जीन के लक्षण को अप्रभावी कर देते हैं। इसी कारण द्विसंकर क्रॉस का अनुपात बदलकर 13 : 3 हो जाता है।
बहुजीनी या मात्रात्मक वंशागति (Polygenic or Quantitative inheritance)
जब एक लक्षण एक से अधिक जीनों द्वारा नियन्त्रित होता है। गेहूँ में केरनल रंग के लिए बहुजीनी वंशागति, जिसमें द्वितीय पीढ़ी में 1: 4:6:4:1 का अनुपात प्राप्त होता है।
बाह्य केन्द्रकीय वंशागति
माइटोकॉण्ड्रिया तथा हरितलवक में उपस्थित आनुवंशिक कारक को प्लाज्मा जीन तथा उसके समूह को प्लाज्मोन कहते हैं। युग्मनज को अधिकांश कोशिकाद्रव्य मादा युग्मक से प्राप्त होता है इसलिए संतति प्रायः मादा जनक के समान होती है। घोंघे की खोल में कुण्डलन तथा मक्का में कोशिकाद्रव्यी नर नपुंसकता की वंशागति बाह्य केन्द्रकीय आनुवंशिक पदार्थ द्वारा ही होती है।
उत्परिवर्तन (Mutation) क्या होते है ? उत्परिवर्तन (Mutation) के प्रकार
किसी जाति के पौधों या जन्तुओं में, जो आकस्मिक विभिन्नताएँ उत्पन्न हो जाती हैं, उन्हें उत्परिवर्तन कहते हैं अर्थात् जीन अथवा गुणसूत्र की संरचना या संख्या में वंशागत परिवर्तन होना उत्परिवर्तन कहलाता है।
प्रकृति में अपने-आप होने वाले उत्परिवर्तन प्राकृतिक (spontaneous) तथा X, β, γ एवं UV-किरणों सहित रासायनिक पदार्थों (मस्टर्ड गैस, इथाइल मीथेन सल्फोनेट, मिथाइल मीथेन सल्फोनेट) आदि के द्वारा प्रेरित किए जाने वाले उत्परिवर्तन कृत्रिम (induced) कहलाते हैं।
उत्परिवर्तन (Mutation) के प्रकार
आकार के आधार पर उत्परिवर्तन दो प्रकार के होते हैं
(i) गुणसूत्रीय उत्परिवर्तन
(ii) जीन उत्परिवर्तन।
गुणसूत्रीय उत्परिवर्तन (Chromosomal Mutation) क्या होते है ?
इसके अन्तर्गत संरचनात्मक गुणसूत्रीय उत्परिवर्तन एवं संख्यात्मक गुणसूत्रीय उत्परिवर्तन आते हैं।
संरचनात्मक गुणसूत्रीय उत्परिवर्तन गुणसूत्र के किसी भाग की हानि (अभाव), किसी भाग के द्विगुणन, एक गुणसूत्र के किसी भाग का दूसरे गुणसूत्र पर स्थानान्तरण तथा प्रतिपन (180° पर घूमने) के कारण होता है, जबकि संख्यात्मक गुणसूत्रीय उत्परिवर्तन एक या अधिक गुणसूत्र की कमी या अधिकता के कारण या फिर गुणसूत्रों की संख्या या उनके जीनोम के गुणांक में होने से होता है।
संरचनात्मक गुणसूत्रीय उत्परिवर्तन एवं संख्यात्मक गुणसूत्रीय उत्परिवर्तन विशेषताएँ और अन्तर
संरचनात्मक | संख्यात्मक |
अमाव सिरे पर या अन्तराली भाग में गुणसूत्र की हानि होती है, यह समयुग्मी अवस्था में हानिकारक होता है, समजात गुणसूत्रों में सिनैप्सिस के समय पता चलता है। | एन्यूप्लॉइडी इसमें द्विगुणित गुणसूत्रों की संख्या से एक या अधिक गुणसूत्र कम या अधिक हो जाते हैं; जैसे-मोनोसोमी (2n – 1), नलीसोमी (2n – 2), ट्राइसोमी (2n + 1), टेट्रासोमी (2n + 2) आदि। मानव में डाउन सिन्ड्रोम, एडवार्ड सिन्ड्रोम, पटाऊ सिन्ड्रोम, क्लाइनफेल्टर सिन्ड्रोम ट्राइसोमी के उदाहरण हैं। |
द्विगुणन कुछ जीनों के दो या अधिक बार एक ही गुणसूत्र में जुड जाने से उत्पन्न उदाहरण ड्रोसोफिला में बार आँखें। | यूप्लॉइडी जीवों में गुणसूत्रों की संख्या, उनके जीनोम के गुणांक में होती है, इसलिए ये डिप्लॉइड, पॉलीप्लॉइड होते हैं। पॉलीप्लॉइडी दो प्रकार की होती हैं |
स्थानान्तरण एक गुणसूत्र का भाग दूसरे असमजात गुणसूत्र पर स्थानान्तरित होता है, साधारण (एक गुणसूत्र में हानि, जबकि असमजात गुणसूत्र में जोड़) या पार (असमजात गुणसूत्रों में आदान-प्रदान) हो सकता है। | स्वबहुगुणिता बहुगुणित गुणसूत्र एक ही जाति के होते हैं यह F, संकर में कोल्चीसीन से गुणसूत्रों की संख्या दुगुनी करके उत्पन्न की जाती है। इसके कारण पत्तियों, फूलों तथा फलों का आकार बड़ा हो जाता है। |
प्रतिपन गुणसूत्र का कोई भाग 180° पर घूम जाता है। यदि इसमें सेन्ट्रोमीटर भाग लेता है, तो इसे पेरासेन्ट्रिक और यदि सेन्ट्रोमीयर भाग नहीं लेता, तो पैरासेन्ट्रिक प्रतिपन कहते हैं। | परबहुगुणिता ये विभिन्न जातियों अथवा वंशों के संकरण से बनते हैं। उदाहरण रेफेनोफ्रेसिका, रेफेनस सटाइवस तथा बॅसिका ओलेरेशिया के संकरण से प्राप्त की गयी थी तथा ट्रिटिकेल, ट्रिटिकम ड्यूरम व सिकेल सिरेल के संकरण से बनाया गया है। |
जीन उत्परिवर्तन (Gene Mutation) क्या होते है ?
यह न्यूक्लियोटाइड के प्रकार या उनके क्रम में बदलाव के कारण होता है। गेहूँ की सरबती सोनारा, सोनारा 64 में गामा किरणों द्वारा उत्परिवर्तन से पैदा की गई है।
विस्थापन | फ्रेमशिफ्ट | टॉटोमेराइजेशन |
ट्रांजिशन एक प्यूरीन क्षार (A और G) का दूसरे प्यूरीन क्षार या एक पिरीमिडीन क्षार ( और C) का दूसरे पिरीमिडीन क्षार से विस्थापन | न्यूक्लियोटाइड की श्रृंखला में एक क्षार कम या अधिक हो जाने पर पॉलीपेप्टाइड बनाने की सूचना पार्श्व दिशाओं में खिसक जाती है और बनने वाली पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला पूर्णरूप से बदल जाती है। उदाहरण थेलेसीमिया रोग | DNA या RNA में प्यूरीन तथा पिरीमिडीन क्षार के किसी में प्रोटॉन व इलेक्ट्रॉन की पुनर्व्यवस्था। |
ट्रांसवर्जन एक प्यूरीन क्षार का पिरीमिडीन क्षार से या पिरीमिडीन क्षार का प्यूरीन क्षार से विस्थापन। |
जीन और डीएनए से जुड़े कुछ महत्वपुर्ण फैक्ट्स
- जीन DNA का एक खण्ड है, जो प्रोटीन संश्लेषण को नियन्त्रित करता है।
- बेन्जर ने ‘सिस्ट्रॉन’ अर्थात् जीन की कार्यात्मक इकाई, ‘रिकॉन’ अर्थात रिकॉम्बिनेशन की इकाई तथा ‘म्यूटॉन’ अर्थात् उत्परिवर्तन की इकाई शब्दों का प्रतिपादन किया।
- यूकैरियोट में जीन सतत् नहीं होते वरन् इन्ट्रॉन और एक्सॉन में विभक्त होते हैं। ऐसे जीन विभक्त जीन (split gene) कहलाते हैं।
- विपुन्सन’ द्विलिंगी पुष्प में परागकोशों के पकने एवं फटने से पूर्व ही उनको पृथक करना है।
- ‘ऑक्सोट्रॉफ’ एक उत्परिवर्ती (mutant) जीव है, जिसमें एक या अधिक आवश्यक यौगिकों को संश्लेषित करने की क्षमता समाप्त हो चुकी है।
- ‘क्लोन’ एक ही जनक से अलैंगिक जनन द्वारा बनने वाला जीव।
- एच. जे. मुलर ने ड्रोसोफिला में सर्वप्रथम X-rays से उत्परिवर्तन किया।
- ‘सौपरिवेशकी’ उत्तम परिस्थितियाँ उत्पन्न कर मानव समाज को सुधारना।
सहलग्नता (Linkage) क्या है ?
यह मेण्डल के स्वतन्त्र अपव्यूहन नियम का अपवाद है। जब दो विभिन्न लक्षण एक ही गुणसूत्र में बँधे होते हैं, तो उनकी वंशागति स्वतन्त्र न होकर एक साथ ही होती है। इसी को मॉर्गन ने ‘सहलग्नता’ कहा। \
गुणसूत्र पर दो जीन, जितने निकटवर्ती होंगे (दूरी जितनी कम होगी) उनके बीच सहलग्नता उतनी ही तीव्र होगी। सहलग्न समूहों की संख्या अगुणित समूह में उपस्थित गुणसूत्रों की संख्या के बराबर होती है। पूर्ण सहलग्नता (complete linkage) में पैतृक संयोजन दो या तीन पीढ़ी में लगातार प्राप्त होते हैं, जबकि अपूर्ण सहलग्नता (incomplete linkage) में सहलग्न जीन विनियम (crossing over) के कारण अलग हो जाते हैं और 50% से कम पुनर्संयोजन (recombinant) मिलते हैं। सहलग्नता से जीनों का पुनयोजन सीमित रह जाता है। अत: जातीय लक्षणों के एक साथ बने रखने में सहायक होती है। वर्णान्धता (colour blindness) तथा हीमोफीलिया (haemophilia) मानव में लिंग सहलग्नता के उदाहरण हैं।
वर्णान्धता (Colour Blindness) क्या है ?
इस रोग से ग्रसित व्यक्ति लाल व हरे रंग का भेद नहीं कर पाता। इसका जीन X-गुणसूत्र पर उपस्थित होता है तथा अप्रभावी होता है।
उदाहरण एक वर्णान्ध स्त्री का विवाह एक सामान्य पुरुष से होने पर उससे उत्पन्न सन्तानों में पुत्रों में वर्णान्धता के गुण होंगे, जबकि पुत्रियाँ वाहक (सामान्य) होंगी।
हीमोफीलिया या ब्लीडर रोग (Haemophilia or Bleeder’s Disease)
इस रोग में रोगी के खून का थक्का नहीं जम पाता है या काफी देर से बनता है। यह रोग अप्रभावी X- सहलान जीन के कारण होता है। उदाहरण हीमोफिलिक पुरुष और सामान्य स्त्री से उत्पन्न सन्तानों में से सभी पुत्रियाँ वाहक, जबकि सभी पुत्र सामान्य होंगे।
लिंग-निर्धारण (Sex-Determination)
मनुष्य में XY प्रकार के गुणसूत्रों द्वारा लिंग निर्धारण होता है। मनुष्य की प्रत्येक कोशिका में 46 गुणसूत्र अर्थात् 23 जोड़े होते हैं, जिनमें 22 जोड़े नर तथा मादा में एक समान होते हैं। इन 22 जोड़ों को अलिंगसूत्री युग्म या सहसूत्री युग्म (autosomes) कहते हैं। 23वें जोड़े को लिंग गुणसूत्र कहते हैं, जिसे पुरुष में XY से प्रदर्शित करते हैं, जबकि स्त्रियों में इसे XX से प्रदर्शित करते हैं।
शुक्रजनन में अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा दो प्रकार के शुक्राणु बनते हैं आधे वे, जिनमें 23वीं जोड़ी का X- गुणसूत्र आता है अर्थात् (22 + X) और आधे वे, जिनमें 28वाँ जोड़ा Y- गुणसूत्र (22 + Y) जाता है। स्त्रियों में एक समान प्रकार का गुणसूत्र अर्थात् (22 + X) तथा (22 + X) वाले अण्डाणु पाए जाते हैं। निषेचन के दौरान यदि अण्डाणु X- गुणसूत्र वाले शुक्राणु से मिलता है, तो इससे बनने वाली सन्तान लड़की होगी। इसके विपरीत यदि अण्डाणु Y- गुणसूत्र वाले शुक्राणु से निपेचित होगा, तब सन्तान लड़का होगा अर्थात् पुरुष का Y-गुणसूत्र सन्तान में लिंग निर्धारण के लिए उत्तरदायी है।
मधुमक्खियों में लिंग-निर्धारण इस बात पर निर्भर करता है कि सन्तान का विकास निपेचित अण्ड से हो रहा है या अनिषेचित अण्ड से। निषेचित अण्ड द्विगुणित (diploid) होता है इससे मादा मधुमक्खी का विकास होता है। मधुमक्खी के अनिषेचित अण्ड अगुणित होते हैं इनसे ड्रोन (drone) बनते हैं। मेलेन्ड्रियम, कोक्सीनिया, स्फीरोकार्पस नामक पौधों में लिंग निर्धारण की क्रिया का अध्ययन किया गया है।
DNA की संरचना (Structure of DNA)
DNA में उपस्थित नाइट्रोजनी क्षारक चार प्रकार के होते हैं; जैसे – एडीनीन (A), ग्वानीन (G), थायमीन (T) एवं साइटोसीन (C)।
सन् 1953 में वाटसन और क्रिक द्वारा DNA का द्विकुण्डलित प्रतिरूप बनाया जिसके अनुसार,
(i) DNA का प्रत्येक अणु दो कुण्डलित पॉलिन्यूक्लियोटाइड शृंखलाओं का बना होता है। ये दोनों श्रृंखलाएँ एक-दूसरे पर सर्पिल क्रम में लिपटी होती हैं।
(ii) प्रत्येक पॉलिन्यूक्लियोटाइड श्रृंखला में डीऑक्सीराइबोज शर्करा और फॉस्फेट समूह एकान्तर क्रम में जुड़कर श्रृंखला का आधार तैयार करती है। फॉस्फेट समूह एक तरफ की शर्करा के 5′ कार्बन पर तथा दूसरी ओर 3’ कार्बन पर फॉस्फो डाइएस्टर बन्ध द्वारा जुड़ी होती है। दोनों शृखलाएँ प्रतिसमानान्तर दिशा में कुण्डलित होती हैं।
(iii) एडीनीन और थायमिन के बीच दो हाइड्रोजन बन्ध तथा साइटोसीन और ग्वानीन के बीच तीन हाइड्रोजन बन्ध होते हैं।
(iv) एक ही शृंखला में किन्हीं दो न्यूक्लियोटाइड्स के बीच 3.4 Å की दूरी होती है।
वाटसन एवं क्रिक मॉडल
DNA का द्विगुणन
वाटसन एवं क्रिक ने DNA द्विगुणन की अर्धसरक्षी विधि (semiconservative method) का प्रतिपादन किया का द्विगुणन समारंभन बिन्दु (initiation point) से शुरू होता है। हेलिकेस एन्जाइम DNA के दोनों रज्जुओं को पृथक कर देता है तथा प्रत्येक रज्जुक, एकल रज्जुक बन्धन प्रोटीन (single strand binding protein) की सहायता से DNA स्थिर हो जाता है |
टोपोआइसोमेरेस एन्जाइम रज्जुक में कुण्डलन के तनाव को समाप्त करता है। प्रत्येक रज्जुक फर्म (template) की तरह कार्य करता है। बहुलीकरण (polymerization) से पूर्व प्राइमेस एन्जाइम की सहायता से रज्जुक के 3′ छोर के पूरक RNA प्राइमर का संश्लेषण होता है, जिससे आगे DNA पॉलीमरेस-III द्वारा बहुलीकरण होता है।
अग्रग रज्जुक (Leading strand) पर 5′ → 3′ दिशा में सतत् (continuous) संश्लेषण होता है, जबकि पश्चगामी रज्जुक (lagging strand) पर छोटे-छोटे टुकड़ों, जिन्हें ओकाजाकी टुकड़े कहते हैं, में असतत् (discontinuous) संश्लेषण होता है। प्रत्येक ओकाजाकी टुकड़े के लिए एक अलग RNA प्राइमर बनता है।
ओकाजाको टुकड़े के पूर्ण निर्मित होने पर DNA पॉलीमरेस-I द्वारा RNA प्राइमर को हटा दिया जाता है और DNA लाइगेज एन्जाइम ओकाजाकी टुकड़ों को जोड़ने का कार्य करता है।
DNA एवं RNA में अन्तर
DNA | RNA |
इसमें डीऑक्सीराइबोज़ शर्करा होती है। | इसमें राइबोज शर्करा होती है। |
क्षार, एडीनीन, ग्वानीन, थायमीन तथा साइटोसीन होते हैं। | थायमीन के स्थान पर यूरेसिल होता है। |
मुख्यतया केन्द्रक तथा कुछ मात्रा में माइटोकॉण्ड्रिया व हरितलवक में पाया जाता | केन्द्रक तथा कोशिकाद्रव्य दोनों में पाया जाता है। |
आनुवंशिक लक्षणों की वंशागति का कार्य करता है। | कुछ विषाणुओं में आनुवंशिक पदार्थ तथा प्रोटीन संश्लेषण (सभी जीवों में) का कार्य करता है। |
आनुवंशिक कोड (Genetic Code) क्या होते है ?
आनुवंशिक कोड mRNA अणुओं में स्थित नाइट्रोजनी क्षारों का वह क्रम है, जिसमें प्रोटीन संश्लेषण के लिए संदेश निहित (कूटित) होते हैं। एक अमीनो अम्ल के लिए संदेश देने वाला न्यूक्लियोटाइड का समूह कोडॉन कहलाता है। आनुवंशिक कोड की खोज नौरेनबर्ग एवं मथाई ने की थी।
1. AUG तथा GUG (कभी-कभी) प्रारम्भिक कोडॉन, जबकि UAA, UGA, UAG समापन कोडॉन हैं। 2. जेनेटिक कोड अपभ्रष्टता (degeneracy), कोमाविहीन, सार्वत्रिकता, नॉन-ओवरलेपिंग होता है।
3. जेनेटिक कोड असंदिग्धता दर्शाता है अर्थात् एक विशिष्ट कोडॉन एक ही अमीनो अम्ल को कोड करता है।
4. एच सी क्रिक ने वोवल हाइपोथेसिस प्रस्तुत की, जिसके अनुसार, एक कोडॉन की विशिष्टता प्रथम दो क्षारकों द्वारा निर्धारित होती है।
मानव आनुवंशिक रोग
रंजकहीनता | इसमें टाइरोसीनेज एन्जाइम अनुपस्थित |
एल्केप्टोन्यूरिया | होमोजेन्टिसिक अम्ल ऑक्सीडेज में उत्परिवर्तन |
दात्र कोशिका अरक्तता | हीमोग्लोबिन में ग्लूटामिक अम्ल के स्थान पर वैलीन |
फिनाइलकीटोनूरिया | फिनाइलएलेनीन हाइड्रोक्सीलेज की अनुपस्थिति |
थैलेसीमिया | हीमोग्लोविन संश्लेषण की कमी |
डाउन्स सिन्ड्रोम | 21वीं जोड़ी गुणसूत्र की ट्राइसोमी |
एडवार्ड सिन्ड्रोम | 18वीं जोड़ी गुणसूत्र की ट्राइसोमी |
टर्नर सिन्ड्रोम | मादा में 45 (44+XO) गुणसूत्र |
क्लाइनफेल्टर सिन्ड्रोम | 44+ XXY गुणसूत्र |
क्राइ-डू-चैट सिन्ड्रोम | पाँचवें गुणसूत्र की छोटी भुजा में हानि |
पटाऊ सिन्ड्रोम | 13वें गुणसूत्र की ट्राइसोमी |
प्रोटीन संश्लेषण (Protein Synthesis) एवं क्रिया
पॉलीपेप्टाइड शृंखला के निर्माण हेतु सर्वप्रथम DNA के अणु के एक विशिष्ट खण्ड के द्वारा सूचना न्यूक्लियोटाइड के त्रिक (triplot) संकेतों के रूप में mRNA पर अनुलेखित हो जाती है। mRNA पर अनुलेखित सूचना का अनुवादन (RNA के द्वारा अमीनो अम्लों को निश्चित क्रम में जोड़कर प्रोटीन के रूप में किया जाता है अर्थात् प्रोटीन संश्लेषण में आनुवंशिक कोड द्वारा सूचनाओं का DNA से mRNA में अनुलेखन तथा mRNA से प्रोटीन में अनुलिपीकरण होता है।
DNA (जीन्स) का प्रोटीनों तक सूचना का यह अप्रत्यक्ष प्रवाह सैन्ट्रल डोग्मा कहलाता है। तथापि कुछ प्रतिगामी विषाणुओं (rotrovirusos), जैसे HIV, रॉस सारकोमा वाइरस में RNA से DNA का संश्लेषण होता है, जिसे टेमिन एवं बाल्टीमोर ने खोजा।
जॉर्ज बीडल एवं एडवर्ड टेटम ने न्यूरोस्पोरा क्रासा पर आनुवंशिक प्रयोग किए तथा एक जीन-एक एन्जाइम परिकल्पना प्रस्तुत किया, जिसके अनुसार, एक जीन-एक एन्जाइम को नियन्त्रित करता है।
प्रोटीन संश्लेषण की दो क्रियाएँ
अनुलेखन | अनुलिपीकरण |
DNA पर, RNA पॉलीमरेज की सहायता से RNA का बनना। | राइबोसोम पर mRNA के निर्देश tRNA व अमीनो अम्लों की सहायता से प्रोटीन का बनना। |
प्रोकिरियोट में एक ही RNA पॉलीमरेज से तीनों RNA (अर्थात् mRNA, tRNA व rRNA) का संश्लेषण होता है, जबकि युकैरियोट में RNA पॉलीमरेज-I से rRNA, RNA पॉलीमरेज-II से mRNA तथा RNA पॉलीमरेज-III से tRNA का संश्लेषण होता है। | एक विशिष्ट अमीनो अम्ल ATP एन्जाइम से क्रिया कर AA-AMP एन्जाइम कॉम्पलैक्स बनाता है, जो tRNA के 3′ छोर पर जुड़ता है अमीनो अम्ल का सक्रियण अमीनो एसाइल tRNA सिन्थेटेस एन्जाइम द्वारा उत्प्रेरित होता है। |
DNA के जिस रज्जुक पर RNA का संश्लेषण होता है, उसे एक निश्चित अमीनो अम्ल के लिए विशिष्ट IRNA होता है। टेम्पलेट रज्जुक या एन्टीसेन्स या नॉन-कोडिंग रज्जुक कहते हैं। | एक निश्चित अमीनो अम्ल के लिय विशिष्ट tRNA होता है | |
ई. कोलाई में RNA पॉलीमरेज पाँच पॉलीपेप्टाइड शृंखलाओ 2 α β β’ तथा ω से मिलकर बना होता है। | mRNA समारम्भन कारक (Initiation factor) की उपस्थिति में राइबोसोम की छोटी इकाई से जुड़ जाता है। |
जीवाणु RNA पॉलीमरेज आरम्भ स्थल से कुछ पहले प्रोमोटर भाग, जो 20-200 क्षारकों का एक विशिष्ट क्रम है, पर जुड़ता है। | प्रोटीन संश्लेषण मेथयोनीन अमीनो अम्ल से आरम्भ होता है |
जीवाणु में mRNA के प्रथम क्षारक से 5-10 क्षारक बायीं ओर कन्सेन्सस अनुक्रम युक्त प्रिनो बॉक्स होता है, जबकि यूकैरियोट में TATA बॉक्स या होगनेस बॉक्स होता है। | प्रोकैरियोट में तीन समारम्भन कारक (initiation factor), जबकि यूकैरियोट में नौ समारम्भन कारक होते हैं। |
RNA का संश्लेषण 5’ 3’ दिशा में होता है। | समारम्भन कोडॉन के लिए विशेष अमीनो एसाइल tRNA कॉम्पलेक्स राइबोसोम की P-site तक पहुँचता है और इसका एन्टीकोडॉन भाग mRNA के कोडॉन से हाइड्रोजन बन्धों द्वारा जुड़ जाता है। यह क्रिया GTP की उपस्थिति में होती है। |
येनोटस्की ने एक जीन-एक पॉलीपेप्टाइड विचार धारा प्रस्तुत की।
1. पहले कृत्रिम जीन का निर्माण हरगोविन्द खुराना ने 1970 में यीस्ट एलेनीन tRNA के लिए किया था
2. ग्रिफिथ ने सर्वप्रथम प्रमाणित किया कि DNA एक आनुवंशिक पदार्थ है।
जम्पिंग जीन
इस जीन की खोज बारबरा मैकक्लिनटॉक ने की थी। इसका अर्थ- किसी जीन का अपने स्थान से न निकलकर उसी गुणसूत्र में दूसरे स्थान पर या दूसरे किसी गुणसूत्र में जाकर जुड़ जाना है और इस प्रकार नए लक्षण प्रारूपों को जन्म देती है। आभासी जीन वे जीन, जो कार्यात्मक जीन के समजात होते हैं परन्तु अभाव, जुड़ाव या प्रोमोटर भाग की अक्रियाशीलता के कारण कार्यात्मक उत्पाद पैदा करने में असमर्थ होती है।
मानव जीनोम (Human Genome)
डॉ. वाटसन मानव जीनोम परियोजना के प्रमुख निर्देशक थे इस सन्दर्भ में अमेरिकी सरकार ने 1988 में मानव जीनोम परियोजना नाम की परियोजना शुरू की। इस परियोजना के अध्यक्ष डा. कालिंस ने अप्रैल 2000 में घोषणा की कि अब तक मानव जीनोम के 3 अरब क्षार जोड़ों में से दो अरब क्षार जोड़ों की डिकोडिंग हो चुकी है। अभी हाल में हैदराबाद में स्थित सेन्टर फॉर सेल एण्ड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (CCMB) में एक ह्यमन जीन डायमर्सिटी प्रोजेक्ट शुरू किया गया है, जिसमें अण्डमान व निकोबार द्वीप समूह पर रहने वाली चार प्राचीन जनजातियों के जीनोम का पता लगाया जाएगा।
स्मार्ट फैक्ट्स
एलील या युग्मविकल्पी (allele) एक ही जीन के दो या अधिक विकल्प; जैसे-लम्बापन (T) और बौनापन (t) एक दूसरे के एलील हैं।
एकसंकर क्रॉस (Monohybrid cross) एक जोड़ी लक्षणों को लेकर कराया गया क्रॉस
व्युत्पन्न क्रॉस (Reciprocal cross) जनक, पादपों की लैंगिकता को परस्पर बदलकर कराया गया क्रॉस।
घातक जीन (Lethal gene) जीन, जो किसी जीव की मृत्यु का कारण बनते हैं।
एपिस्टेटिक जीन (Epistatic gene) एक जीन, जो दूसरे नॉन एलिलिक जीन के प्रभाव को छिपा देता है।