What is Total Internal Reflection of Light ?
परिभाषा – सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाने वाली प्रकाश की किरणों के लिए आपतन कोण क्रान्तिक कोण से अधिक हो जाए तो प्रकाश की किरणें उसी माध्यम में लौट आती हैं। यह प्रक्रिया पूर्ण आन्तरिक परावर्तन कहलाती है।
क्रान्तिक कोण – क्रान्तिक कोण सघन माध्यम में बना वह आपतन कोण है जिसके लिए विरल माध्यम में अपवर्तन कोण 90° होता है। |
पूर्ण परावर्तन केवल तब ही सम्भव है जबकि निम्न दो शर्ते पूरी हों:
- प्रकाश सघन माध्यम से विरल माध्यम में जा रहा हो।
- आपतन कोण क्रान्तिक कोण से बड़ा हो।
पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के कारण ही—
- जल में पड़ी हुई परखनली चमकीली दिखायी देती है,
- कांच में आयी दरारे चमकती हैं और
- कालिख से पुता हुआ गोला जल में चमकता है।
उदाहरण
हीरे से वायु में आने वाली किरण के लिए क्रान्तिक कोण बहुत कम, केवल 24° होता है। अतः जब बाहर का प्रकाश किसी कटे हुए हीरे में प्रवेश करता है, तो वह उसके भीतर विभिन्न तलों पर बार-बार पूर्ण परावर्तित होता रहता है। जब किसी तल पर आपतन कोण 24° से कम हो जाता है, तब ही प्रकाश हीरे से बाहर आ पाता है। इस प्रकार हीरे में सभी दिशाओं से प्रवेश करने वाला प्रकाश केवल कुछ ही दिशाओं में हीरे से बाहर निकलता है। अतः इन दिशाओं से देखने पर हीरा अत्यन्त चमकदार दिखायी देता है। यह क्रिया प्रकाश के पूर्ण आंतरिक परावर्तन के कारण ही होती है।
हीरे से वायु में आने वाली किरण के लिए क्रान्तिक कोण बहुत कम, केवल 24° होता है। अतः जब बाहर का प्रकाश किसी कटे हुए हीरे में प्रवेश करता है, तो वह उसके भीतर विभिन्न तलों पर बार-बार पूर्ण परावर्तित होता रहता है। जब किसी तल पर आपतन कोण 24° से कम हो जाता है, तब ही प्रकाश हीरे से बाहर आ पाता है। इस प्रकार हीरे में सभी दिशाओं से प्रवेश करने वाला प्रकाश केवल कुछ ही दिशाओं में हीरे से बाहर निकलता है। अतः इन दिशाओं से देखने पर हीरा अत्यन्त चमकदार दिखायी देता है। यह क्रिया प्रकाश के पूर्ण आंतरिक परावर्तन के कारण ही होती है।
रेगिस्तान में मरीचिका (Mirage) कभी-कभी रेगिस्तान में यात्रियों को दूर से पेड़ के साथ-साथ उसका उल्टा प्रतिबिम्ब भी दिखायी देता है। अत: इन्हें ऐसा भ्रम हो जाता है, कि वहां कोई जल का तालाब है जिसमें पेड़ का उल्टा प्रतिबिम्ब दिखायी दे रहा है परन्तु वास्तव में, वहा तालाब नहीं होता है। यह क्रिया प्रकाश के पूर्ण आंतरिक परावर्तन के कारण होती है।
जब सूर्य की गर्मी से रेगिस्तान का रेत गरम होता है, तो उसे छूकर पृथ्वी के पास की वायु अधिक गरम हो जाती है। इससे कुछ ऊपर तक वायु की पर्तों का ताप लगातार घटता जाता है। जब पेड़ से प्रकाश किरणें पृथ्वी की ओर आती हैं, तो उन्हे अधिक विरल पतों से होकर आना पड़ता है। इसलिए प्रत्येक पर्त पर अपवर्तित किरण अभिलम्ब से दूर हटती जाती है। अतः प्रत्येक अगली पर्त पर आपतन कोण बढ़ता जाता है तथा किसी विशेष पर्त पर कान्तिक कोण से बड़ा हो जाता है। इस पर्त पर किरण पूर्ण परावर्तित होकर ऊपर की ओर चलने लगती हैं। चूंकि ऊपर वाली पर्ते अधिकाधिक सघन हैं, अत: ऊपर उठती हुई किरण अभिलम्ब की ओर झुकती जाती है। जब यह किरण यात्री की आंख में प्रवेश करती है, तो उसे पृथ्वी के नीचे से आती प्रतीत होती है तथा यात्री को पेड़ का उल्टा प्रतिबिम्ब दिखायी देता है।
Lens Type | Distance of Object to the Left of Lens | Image Description | Image Location |
Convex | More than two focal lengths | Inverted, smaller | Between one and two focal lengths to the right of lens |
Convex | Two focal lengths | Inverted, same size | Two focal lengths to the right of lens |
Convex | Between one and two focal lengths | Inverted, larger | More than two focal lengths to the right of lens |
Convex | One focal length | No image | No image |
Convex | Within one focal length | Upright, larger | To the left of lens |
Concave | Any position | Upright, smaller | To the left of lens |