Bombs based on nuclear fission and nuclear fusion and their side effects
नाभिकीय अस्त्र मूलतः दो प्रकार के होते हैं (1) नाभिकीय विखण्डन पर आधारित, जैसे—परमाणु बम तथा (2) नाभिकीय संलयन पर आधारित, जैसे—हाइड्रोजन बम। इनके विस्फोट से मानव जीवन पर दूरगामी प्रभाव पड़ते है।
वे प्रभाव चार प्रकार के हैं:
विस्फोट तरंग
विस्फोट की शुरुआत आग के गोले के निर्माण से शुरू होती है जिसमें धूलकणों एवं गर्म गैसों का उच्च दाब पर घना बादल होता है। विस्फोट के कुछ ही क्षण बाद ये गैसें फैलने लगती है जिससे विस्फोट तरंगें बनती है, इन्हें ‘प्रघात तरंगें’ (Shock waves) भी कहते हैं। इन विस्फोट तरंगों से 5 किलोमीटर तक के सभी लोग और 10 किलोमीटर तक के कुछ लोग मारे जाते हैं। 10 किलोमीटर क्षेत्र तक के कई अन्य व्यक्ति गम्भीर रूप से घायल हो जाते हैं।
तापीय विकिरण
इसमें आग के गोले से निकलने वाली पराबैंगनी, अवरक्त तथा दृश्य किरणें शामिल होती हैं। पराबैंगनी किरणें वायु द्वारा शीघ्रता से अवशोषित कर ली जाती हैं और इसलिए इससे कम क्षति पहुंचती है। लेकिन दृश्य विकिरणों तथा अवरक्त विकिरणों से आंख के साथ-साथ त्वचा को भी क्षति पहुंच सकती है, इसे ‘दीप्ति जलन’ कहा जाता है। तापीय विकिरणों से अखबारों एवं सूखे पत्तों में प्रज्वलन उत्पन्न हो सकता है। इन पदार्थों के जलने से आग लगने की बड़ी घटनाएं हो सकती हैं। हिरोशिमा के 20% से 30% लोगों की मृत्यु इसी विकिरण से हुई थी।
प्राथमिक नाभिकीय विकिरण
ये विकिरण विस्फोट के 1 मिनट के अन्दर उत्पन्न होते हैं। इसमें न्यूट्रॉन और गामा किरणें होती हैं। कुछ न्यूट्रॉन तथा गामा किरणों का उत्सर्जन आग के गोले से लगातार जारी रहता है। शेष गामा किरणों का उत्सर्जन मशरूम के आकार के उन रेडियो सक्रिय पदार्थों के बादल से होता है जो विस्फोट के फलस्वरूप बनते हैं। नाभिकीय विकिरणों से सूजन हो सकती है और मानव कोशिकाओं को क्षति पहुंच सकती है तथा कोशिकाओं का सामान्य विस्थापन भी अवरुद्ध हो जाता है। विकिरणों की बड़ी मात्रा से मृत्यु भी हो सकती है।
अवशिष्ट नाभिकीय विकिरण
ये विकिरण विस्फोट के 1 मिनट के बाद उत्पन्न होते हैं, इन विकिरणों में गामा किरणें तथा बीटा किरणें होते हैं। संलयन से उत्पन्न विकिरणों का निर्माण मुख्यत: न्यूट्रॉनों से होता है। ये कण चट्टानों, मिट्टी तथा जल एवं अन्य पदार्थों से टकराकर मशरूम के आकार का बादल बनाते हैं। परिणामस्वरूप, ये कण रेडियो सक्रिय हो जाते हैं। जब ये कण पृथ्वी पर पुनः गिरने लगते हैं, तो इन्हें निक्षेप (Fall out) कहा जाता है। पृथ्वी की सतह से जितना निकट विस्फोट होगा, निक्षेप का निर्माण उतना ही अधिक होगा।