What is Radioactivity ?
बड़े नाभिकों में दो प्रोटॉनों के बीच में दूरी इतनी कम हो जाती है कि प्रोटॉनों के मध्य उनके समान विद्युत-आवेश के कारण लगने वाला प्रतिकर्षण बल, उनके मध्य लगने वाले नाभिकीय बल (Nuclear force) जो एक आकर्षण बल होता है, से अधिक हो जाता है।
यह पाया गया है कि जिन नाभिकों में प्रोटॉनों की संख्या 83 या उससे अधिक होती है, वे अस्थायी होते हैं। स्थायित्व प्राप्त करने के लिए ये नाभिक स्वतः ही अल्फा (α), बीटा (β) तथा गामा (γ) किरणों का उत्सर्जन करने लगते हैं। ऐसे नाभिक जिन तत्वों के परमाणुओं में होते हैं उन्हें ‘रेडियोऐक्टिव तत्व’ कहते है तथा उपर्युक्त किरणों के उत्सर्जन की घटना को ‘रेडियोधर्मिता’ कहते हैं।

अल्फा किरणें वास्तव में धनावेशित हीलियम नाभिकों से बनी होती है तथा बीटा किरणें केवल तीव्र गति से गमन करने वाले ऋणावेश युक्त इलेक्ट्रॉन होते हैं। गामा किरणे आवेश रहित फोटॉन कणों से बनती है। जब किसी नाभिक से अल्फा किरणें या बीटा किरणें उत्सर्जित हो जाती है, तो वह नाभिक एक नये तत्व के नाभिक में बदल जाता है। यदि यह नाभिक उत्तेजित अवस्था में होता है, तो वह अपने उत्तेजन ऊर्जा को गामा किरणों के रूप में उत्सर्जित करके अपनी मूल अवस्था (Ground state) में आ जाता है। इस प्रकार गामा किरणें, अल्फा या बीटा किरणों के बाद ही उत्सर्जित होती हैं।
अर्ध-आयु (Half-life)
किसी रेडियोऐक्टिव तत्व में किसी क्षण पर उपस्थित परमाणुओं के आधे परमाणु जितने समय में विघटित (Disintegrate) हो जाते हैं, उस समय को उस तत्व की ‘अर्ध-आयु’ कहते हैं। प्रत्येक रेडियोऐक्टिव तत्व की अर्ध-आयु निश्चित होती है। विभिन्न तत्वों की अर्ध-आयु 10-7 सेकण्ड से 1010 वर्ष तक पायी जाती है।
तत्वान्तरण (Transmutation)
एक रेडियोऐक्टिव तत्व का दूसरे तत्व में परिवर्तित हो जाना तत्वान्तरण कहलाता है।
प्राकृतिक रेडियोऐक्टिव तत्व तो अल्फा या बीटा कण का उत्सर्जन करके दूसरे तत्वों में बदलते रहते ही हैं; इनके अतिरिक्त कृत्रिम रूप से भी नये तत्व बनाए जा सकते हैं। इसके लिए परमाणु क्रमांक 92 (यूरेनियम) से ऊपर के तत्वों को चुना जाता है और उन पर उच्च ऊर्जा के इलेक्ट्रॉन या प्रोटॉन की बमबारी (Bombarding) की जाती है। इस प्रकार के कृत्रिम तत्वान्तरण द्वारा अब प्रायः सभी तत्वों को रेडियोऐक्टिव भी बनाया जा सकता है।
ऐक्टिवता (Activity)
एक या अधिक नाभिकों के किसी नमूने (Sample) की कुल क्षमता दर (Rate of decay) उस नमूने की ‘सक्रियता’ या ‘ऐक्टिवता’ कहलाती है। इसका (SI) मात्रक ‘बेकेरल’ (Baquerrel) है।
रेडियोधर्मिता की इकाइयाँ(Units of Radioactivity)
क्यूरी और रदरफोर्ड रेडियोधर्मिता की इकाइयाँ हैं।
1C = 3.7 × 10 4 Rd क्यूरी और रदरफोर्ड के बीच का संबंध है।

रेडियोधर्मी विकिरण(Radioactive Radiations)
निम्नलिखित तीन रेडियोधर्मी विकिरण हैं जो α, β, और किरणों से प्राप्त होते हैं:
1.ज़ब किसी तत्व से एक अल्फ़ा कण निकलता है तो उसके परमाणुभार से 4 की कमी और परमाणु क्रमांक से 2 की कमी होती है।
2.ज़ब किसी तत्व से एक बिटा कण निकलता है तो उसके परमाणु भार में कोई परिवर्तन नहीं होता जबकि परमाणु क्रमांक में 1 की वृद्धि हो जाती है।
3.ज़ब किसी तत्व से एक गामा किरण निकलती है तो उसके परमाणु भार और परमाणु क्रमांक में कोई परिवर्तन नहीं होत है।
रेडियोएक्टिव पदार्थ
सन् 1898 ई० में क्यूरी दंपति ने एक नए रेडियोएक्टिव पदार्थ की खोज (अविष्कार) की। उन्होंने लगभग 30 टन पिथ ब्लेंडी नामक पदार्थ पर कठोर परिश्रमी रासायनिक अभिक्रियाएं की, इस अभिक्रिया में विभिन्न प्रकार के तत्व प्राप्त हुए। सभी तत्वों को अलग करने के बाद केवल 2 मिलीग्राम रेडियम रेडियोएक्टिव पदार्थ प्राप्त हुआ।
रेडियोएक्टिव पदार्थ यूरेनियम, थोरियम, पोलोनियम, एक्टिमियम तथा रेडियम आदि रेडियोएक्टिव पदार्थ हैं इन्हें रेडियोधर्मी पदार्थ के नाम से भी जाना जाता है।
रेडियोएक्टिव क्षय का नियम

जब किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ के परमाणु से अथवा कण तथा किरणें निकलती हैं तो इस घटना से परमाणु का भार व क्रमांक में परिवर्तन हो जाता है। और एक नए तत्व के परमाणु का निर्माण होता है इस घटना को रेडियोएक्टिव क्षय कहते हैं।
इस नियम के अनुसार, ” किसी भी क्षण रेडियोएक्टिव परमाणुओं के क्षय होने की दर उस क्षण उपस्थिति रेडियोएक्टिव परमाणुओं की संख्या के अनुक्रमानुपाती होती है। “
माना किसी क्षण t पर रेडियोएक्टिव परमाणुओं की संख्या N है। तथा (t + dt) क्षण पर यह संख्या घटकर (N + dtN) हो जाती है। तब रेडियोएक्टिव परमाणुओं के क्षय होने की दर −dt/dN होगी।
अतः रदरफोर्ड सोडी के नियम अनुसार

इस नियम को रदरफोर्ड सोडी नियम अथवा रेडियोएक्टिव क्षय का नियम कहते हैं।
जहां N = रेडियोएक्टिव परमाणुओं की संख्या
N0 = समय (t = 0) पर रेडियोएक्टिव परमाणुओं की संख्या
λ = रेडियोएक्टिव परमाणुओं का क्षय नियतांक
t = समय है।
रेडियोधर्मिता के लाभ और हानि (Advantages and Disadvantages of Radioactivity)
- गामा किरणों का उपयोग कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए किया जाता है और इसलिए इसका उपयोग रेडियोथेरेपी में किया जाता है।
- कोबाल्ट-60 का प्रयोग कार्सिनोजेनिक कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए किया जाता है।
- गामा किरणों का उपयोग शरीर के आंतरिक अंगों को स्कैन करने के लिए किया जाता है।
- गामा किरणें भोजन में मौजूद रोगाणुओं को मारती हैं और शेल्फ लाइफ को बढ़ाकर इसे क्षय से बचाती हैं।
- चट्टान में मौजूद आर्गन सामग्री को मापकर रेडियोधर्मी विकिरणों का उपयोग करके चट्टानों की आयु का अध्ययन किया जा सकता है।
रेडियोधर्मिता के नुकसान
- शरीर पर रेडियोधर्मी विकिरण की उच्च खुराक से मृत्यु हो सकती है।
- रेडियोधर्मी समस्थानिक महंगे हैं।