वैज्ञानिकों ने एक ऐसे जीवाणु (Bacteria) की खोज की है, जो नंगी आंखों से भी दिखता है। अगर इंसान से तुलना करें तो इसका आकार दूसरी बैक्टीरिया के मुकाबले इतना ही विशालकाय है, जैसे मानव के लिए माउंट एवरेस्ट। गौरतलब है कि बैक्टीरिया से पृथ्वी का बहुत ही नजदीकी रिश्ता है। इंसान के शरीर में अनगिनत बैक्टीरिया होते हैं। ऐसा पहली बार हुआ है, जब इतना बड़ा बैक्टीरिया मिला है, जिसे हम बिना माइक्रोस्कोप की मदद से भी देख सकते हैं।
थियोमार्गरीटा मैग्निफा (Thiomargarita Magnifica) की खोज
कैरिबियन द्वीप समूह में मैंग्रोव के दलदल में दुनिया का सबसे विशाल बैक्टीरिया की खोज की गई है। वैज्ञानिकों को यह भी अनुमान लग रहा है कि किस वजह से इस बैक्टीरिया ने इतना विशाल आकार विकसित किया होगा। इस बैक्टीरिया को थियोमार्गरीटा मैग्निफा (Thiomargarita Magnifica) नाम दिया गया है, जो ज्यादातर जीवाणुयों की तुलना में 5,000 गुना विशाल है। जबकि, अबतक जितने भी विशाल बैक्टीरिया की जानकारी है, उनसे भी यह 50 गुना ज्यादा बड़ा है (इसके नाम में मैग्निफिका का संदर्भ लैटिन में ‘बड़ा’ और फ्रेंच शब्द मैग्निफिक्यू से है)।
नंगी आंखों से दिखता है ये बैक्टीरिया
इस शोध के लीड ऑथर और कैलिफोर्निया के मरीन बायोलॉजिस्ट जीन-मैरी वोलैंड ने इसकी विशालता के बारे में कहा कि, ‘इसका संदर्भ देखने के लिए, इसे ऐसे समझा जा सकता है, जैसे एक इंसान का सामना माउंट एवरेस्ट के रूप में दूसरे इंसान से होता है।’ दरअसल, इसकी सबसे बड़ी विशेषता ही यही है कि किसी भी बैक्टीरिया को देखने के लिए माइक्रोस्कोप की आवश्यकता होती है, लेकिन यह इतना अनोखा है कि इसे नंगी आंखों से भी देखा जा सकता है।

करीब एक सेंटीमीटर है थियोमार्गरीटा मैग्निफा की लंबाई
थियोमार्गरीटा मैग्निफा का आकार लगभग इंसान के पलकों जितनी है और यह करीब एक सेंटीमीटर लंबा है। एक सामान्य बैक्टीरिया प्रजाति की लंबाई 1 से 5 माइक्रोमीटर होती है। जबकि, इस प्रजाति की औसत लंबाई 10,000 माइक्रोमीटर है। इनमें से कुछ तो इससे भी करीब दोगुनी हैं। बैक्टीरिया एक कोशिका वाला जीव है, जो धरती पर हर जगह मौजूद है। कुछ तो पारिस्थितिक तंत्र और अधिकांश जीवित चीजों के लिए बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं।

पृथ्वी का पहला जीव है बैक्टीरिया
माना जाता है कि पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत बैक्टीरिया से ही हुई और अरबों साल बाद भी इसकी संरचना काफी सामान्य है। हमारे शरीर में भी अनगिनत बैक्टीरिया मौजूद हैं, जिनमें से कुछ ही ऐसे होते हैं, जो गंभीर बीमारियों का कारण बनते हैं। बाकी हमारे शरीर में अच्छे जीवाणुओं की काफी जरूरत रहती है। यह शोध डिसकवरी साइंस जर्नल में विस्तार से प्रकाशित किया गया है।
मैंग्रोव के दलदल में अनेक चीजों से चिपका मिला
फ्रेंच वेस्ट इंडीज और गुयाना यूनिवर्सिटी के एक को-ऑथर और बायोलॉजिस्ट ओलिवियर ग्रोस ने 2009 में ग्वाडेलोप द्वीपसमूह में भी मैंग्रोव के पत्तों से चिपके हुए इस जीवाणु का पहला सैंपल देखा था। लेकिन, इसके विशाल आकार की वजह से वह तत्काल नहीं जान पाए थे कि एक यह बैक्टीरिया था। बाद में जेनेटिक एनालिसिस से यह खुलासा हुआ कि वह जीव एक कोशिका वाला बैक्टीरिया ही था। ग्रोस ने पाया कि बैक्टीरिया दलदल में सीप के शेल, चट्टानों और ग्लास की बोतलों से भी चिपका हुआ था।

अपनी रक्षा के लिए विशाल बना थियोमार्गरीटा मैग्निफा (Thiomargarita Magnifica)!
वैज्ञानिक इसे अभी लैब कल्चर में विकसित नहीं कर पाए हैं, लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि इसकी कोशिका में एक ऐसी संरचना है,जो बैक्टीरिया के लिए असामान्य है। शोधकर्ताओं का कहना है कि वे निश्चित नहीं हैं कि जीवाणु इतना बड़ा क्यों है, लेकिन को-ऑथर वोलैंड का अनुमान है कि छोटे जीवों से खाए जाने से बचने के लिए इसने इतना विशाल स्वरूप धारण किया हो सकता है।