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पौधों में परिसंचरण तंत्र की क्रियाविधि | पौधों में परिवहन (Transportation in Plants in Hindi)

in बायोलॉजी
Reading Time: 4 mins read
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इस आर्टिकल में हम जानेगे कि पौधों में परिसंचरण तंत्र की क्रियाविधि और पौधों में परिवहन (Transportation in Plants क्या है ? पादप और जल के बीच में क्या सम्बन्ध है ? पोधों में परिवहन की प्रक्रिया (Transportation in Plants) क्या है ? पौधों में जाइलम (Xylem) और फ्लोएम (Phloem) का क्या योगदान है ? पौधों में परिसंचरण की विधियां कोनसी है ? रसारोहण (Desertification) क्या है ? विसरण दाब न्यूनता (Diffusion Pressure Deficit — DPD) क्या है ? वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) क्या है ? वाष्पोत्सर्जन तथा बिन्दुस्रावण में क्या अन्तर है ? आदि

पौधों में परिसंचरण या परिवहन (Transportation) क्या है ? What is Transportation in Plants

पौधों में परिसंचरण या परिवहन (Transportation) का तात्पर्य जड़ द्वारा भूमि से अवशोषित जल एवं खनिज लवणों की पत्तियों तक पहुँचकर प्रकाश संश्लेषण हेतु विशिष्ट स्थिति उत्पन्न करना तथा पत्तियों में संश्लेषित कार्बनिक पदार्थ को अन्य अंगों तक पहुँचता है।

सरल शब्दों में कहे तो परिवहन वह प्रक्रिया है जिसे जरिये पौधे अपने जीवन के लिए उसके सभी भागों में पानी और आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति करते है |

पौधों में परिसंचरण या परिवहन (Transportation in Plants) एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। पेड़ अपनी जड़ों से पत्तियों की युक्तियों तक जीवित रहने के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्वों और पानी का परिवहन करते हैं। पौधों में परिवहन के मामले में, सबसे बड़ी बाधा पानी है क्योंकि यह विकास में एक सीमित कारक के रूप में समाप्त होता है। इस समस्या को दूर करने के लिए, पेड़ों और अन्य पौधों में पानी के अवशोषण (absorption) और स्थानान्तरण (translocation) की सही व्यवस्था होती है।

पौधों में जाइलम (Xylem) और फ्लोएम (Phloem)

पौधों में पानी और खनिजों का परिवहन दो प्रकार के संवाहक ऊतकों द्वारा किया जाता है:

1. जाइलम

2. फ्लाएम

पौधों में जाइलम (Xylem) और फ्लोएम (Phloem) से युक्त नलिकाओं का एक विशाल नेटवर्क होता है। यह उस  संचार प्रणाली (Circulatory system) की तरह है जैसी प्रणाली से पूरे मानव शरीर में रक्त का संचार होता है । मनुष्यों में संचार प्रणाली के समान, जाइलम और फ्लोएम ऊतक (tissue) पूरे पौधे में फैले होते हैं। ये संवाहक ऊतक (conducting tissues ) जड़ों से उत्पन्न होते हैं और पेड़ों की टहनियाँ के माध्यम से ऊपर जाते हैं। बाद में वे शाखाओं में बंट जाते हैं और फिर मकड़ी के जाले की तरह हर पत्ते में ओर भी आगे बढ़ते हैं।

जाइलम (Xylem)

जाइलम एक लंबी, निर्जीव नली है जो जड़ों से पत्तियों तक तने के माध्यम से चलती है। पानी जड़ के बालों (root hair) द्वारा अवशोषित किया जाता है और जब तक यह जाइलम तक नहीं पहुंच जाता, तब तक परासरण द्वारा कोशिका से कोशिका की गति (cell movement) से गुजरता है। यह पानी तब जाइलम वाहिकाओं के माध्यम से पत्तियों तक पहुँचाया जाता है और वाष्पोत्सर्जन (transpiration) की प्रक्रिया द्वारा वाष्पित हो जाता है।

जाइलम भी फ्लोएम जैसी लम्बी कोशिकाओं से बना होता है। हालांकि, जाइलम विशेष रूप से जड़ों से सभी पौधों के हिस्सों तक पानी पहुंचाने के लिए जिम्मेदार है। चूंकि वे इतना महत्वपूर्ण कार्य करते हैं, एक पेड़ में बहुत सारे जाइलम ऊतक होते है ।

फ्लाएम (Phloem)

फ्लोएम पोधों में पोषक तत्वों और शर्करा जैसे कार्बोहाइड्रेट के स्थानान्तरण के लिए जिम्मेदार होता है, जो पत्तियों द्वारा पौधे के उन क्षेत्रों में उत्पादित होता है जो चयापचय (metabolically) रूप से सक्रिय होते हैं। यह जीवित कोशिकाओं से बना होता है। इन कोशिकाओं की कोशिका भित्ति कोशिकाओं के सिरों पर छोटे-छोटे छिद्र बनाती है जिन्हें चालनी प्लेट (sieve plates) कहा जाता है।

पौधों में परिवहन स्तर

एक कोशिका से दूसरी कोशिका में पदार्थ का परिवहन (Transportation of substance from one cell to another)

फ्लोएम और जाइलम के भीतर रस का लंबी दूरी तक परिवहन (Long-Distance transport of sap within phloem and xylem)

अलग-अलग कोशिकाओं द्वारा विलेय और पानी का विमोचन और अवशोषण (The release and uptake of solute and water by individual cells)

पौधों में परिसंचरण की विधियां

विसरण (Diffusion)

सभी पदार्थ (ठोस, द्रव एवं गैस) के अणु गतिज ऊर्जा (kinetic energy) के कारण अधिक सान्द्रता वाले स्थान से कम सान्द्रता वाले स्थान की और गति करते हैं यहीं गति विसरण कहलाती है।

परासरण (Osmosis)

यह विसरण की एक विशिष्ट प्रक्रिया है, जब दो भिन्न सान्द्रता वाले विलयनों को अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा पृथक किया जाता है, तो विलायक का कम सान्द्रता वाले विलयन से अधिक सान्द्रता वाले विलयन की ओर होने वाला विसरण परासरण कहलाता है।

किसी विलयन का परासरण दाब वह दाब है, जो उस विलयन की अर्द्धपरागम्य झिल्ली द्वारा विलायक (अथवा कम सान्द्रता वाले विलयन) से पृथक करने पर अधिक सान्द्रता वाले विलयन में विलायक के परासरण के कारण उत्पन्न होता है।

स्फीति दाब तथा भित्ति दाब (Turgor Pressure and Wall Pressure)

जीवद्रव्य द्वारा कोशिका भित्ति पर डाला गया दाब ही स्फीति दाब कहलाता है। यह क्रिया अन्तः परासरण की स्थिति में होता है।

स्फीति दाब के साथ-साथ ही इसके बराबर व विपरीत (Equal and Opposite ) एक दाब कोशिका भित्तियों द्वारा भी उत्पन्न होता है, जो भित्ति दाब कहलाता है।

विसरण दाब न्यूनता (Diffusion Pressure Deficit — DPD)

किसी शुद्ध विलायक (अर्थात् सर्वाधिक विसरण दाब युक्त) में पदार्थों को घोलने पर उसके विसरण दाब में आई कमी को विसरण दाब न्यूनता या चूषण दाब (Suction Pressure) कहते हैं। यह दाब न्यूनता परासरण दाब तथा स्फीति दाब के अन्तर के बराबर होती है। इसे ही जल विभव (water potential) कहा जाता है।

जल का अवशोषण (Absorption of water) शैवालों में जल का अवशोषण सभी कोशिकाओं द्वारा, ब्रायोफाइटा में मूलाभासों (rhizoids) द्वारा तथा टेरिडोफाइटा, अनावृतबीजी व आवृतबीजी में जड़ों द्वारा होता है। जड़ में कोशिका परिपक्वन प्रदेश (Zone of Cell Maturation) में उपस्थित मूलरोमों के द्वारा पौधे जल का अवशोषण करते हैं।

रसारोहण (Desertification) क्या है ?

जड़ों द्वारा अवशोषित जल का गुरुत्वाकर्षण के विपरीत स्तम्भ, शाखाओं तथा पत्तियों तक पहुँचने की क्रिया रसारोहण कहलाती है। सर जे. सी. बोस ने रसारोहण का पल्सेशन वाद प्रस्तुत किया।

डिक्सन तथा जोली द्वारा दिए गए वाष्पोत्सर्जनाकर्षण- जलीय संसंजक मत (Transpiration pull-cohesive force of water theory) के अनुसार, रसारोहण की क्रिया निम्नलिखित तथ्यों पर आधारित है।

वाष्पोत्सर्जनाकर्षण (Transpiration Pull)

पत्तियों की पर्णमध्योतक कोशिकाओं की भित्तियों से जल के वाष्पन के कारण इनकी परासरण सान्द्रता तथा विसरण दाब न्यूनता (DPD) अधिक हो जाती है, और परासरण द्वारा जल जाइलम वाहिकाओं (xylem vessels) से पर्ण मध्योतक कोशिकाओं में प्रवेश करता है। इससे जाइलम द्रव में उत्पन्न तनाव को वाष्पोत्सर्जनाकर्षण कहा जाता है।

जल का संसंजक बल (Cohesive Force of Water)

हाइड्रोजन बन्धों के कारण जल के अणुओं के बीच परस्पर आकर्षण को संसंजक बल कहते हैं। संसंजक बल के कारण मूल रोम से पत्तियों तक जल का एक अविरल स्तम्भ (continuous column) बना रहता है ।

जल का आसंजक बल (Adhesive Force of Water)

जल के अणु संकीर्ण जाइलम वाहिकाओं तथा वाहिनिकाओं से आसंजक बल द्वारा जुड़े रहते हैं।

पौधों में परिसंचरण या परिवहन (Transportation in Plants) से जुड़े महत्वपुर्ण तथ्य

सम परासारी विलयन वह विलयन, जिसका परासरण दाब कोशिका रस (cell sap) के परासरण दाब के बराबर होता है।

अति परासारी विलयन वह विलयन, जिसका परासरणी दाब कोशिका रस के परासरण दाब की तुलना में अधिक होता है।

अल्प परासारी विलयन वह विलयन, जिसका परासरण दाब कोशिका रस के परासरण दाब की तुलना में कम होता है। किसी पदार्थ के ठोस कणों द्वारा किसी द्रव को बिना विलयन बनाए अवशोषण करने को अन्त शोषण (imbibition) कहते हैं। जैसे कपास के रेशे, बीज, लकड़ी के बुरादे आदि ऐसे पदार्थ हैं, जो इसी प्रक्रिया से जल सोखते हैं, और फुलकर मोटे हो जाते हैं। पौधों में अधिक वाष्पोत्सर्जन के कारण पत्तियों के मुरझा जाने की प्रक्रिया म्लानि (wilting) कहलाती है।

पौधों की पत्तियों के किनारों पर उपस्थित जल रन्ध्रों (hydathodes) से बूँदों के रूप में जल की हानि बिन्दुस्राव ( guttation) कहलाती है। यह मूल दाब के कारण होता है। वाष्पोत्सर्जन की दर की माप पोटोमीटर (potometer) से की जाती है। जलोद्भिद पौधों की पत्तियों में रन्ध्रों का अभाव होता है।

वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) क्या है ?

पौधों के वायवीय भागों से जल की वाष्प के रूप में हानि वाष्पोत्सर्जन (transpiration) कहलाती है।

वाष्पोत्सर्जन तीन प्रकार का होता है

1. रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन – 80-90%

2. उपत्वचीय वाष्पोत्सर्जन – 3-9%

3. वातरन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन – 0.1%

रन्ध्र की संरचना

रन्ध्र एक छोटा-सा छिद्र है, जो चारों ओर से गुर्दे या सेम के बीज के आकार की बाह्य त्वचीय कोशिकाओं (epidermal cells) से घिरा होता है। इन कोशिकाओं को द्वार कोशिकाएँ या रक्षक कोशिकाएँ (guard cells) कहते हैं। द्वार कोशिकाएँ जीवित, हरितलवक युक्त तथा केन्द्रकयुक्त होती हैं। द्वार कोशिकाओं की अन्दर की भित्ति मोटी तथा बाहरी भित्ति पतली होती है।

रक्षक कोशिकाओं के चारों ओर विभिन्न आकार के बाह्य त्वचीय कोशिकाएँ होती हैं, जिनको उपकोशिका या गौण कोशिका (subsidiary cells or accessory cells) कहते हैं।

सक्रिय K+ स्थानान्तरण क्रियाविधि

लेविट (1974) के अनुसार, प्रकाश की उपस्थिति में द्वार कोशिकाओं में मैलिक अम्ल उत्पन्न होता है, जो मैलेट व H+ में वियोजित हो जाता है और H+, K+ से बदल जाते हैं।

H+ बाहर निकलते हैं और K+ अन्दर आ जाते हैं। K+ मैलेट से क्रिया करके पोटैशियम मैलेट का निर्माण करते हैं, जो कोशिका की रिक्तिका में स्थानान्तरित हो जाता है।

पोटैशियम मैलेट की उपस्थिति में बाह्य त्वचा कोशिकाओं से द्वार कोशिकाओं में जल का परासरण होने से उनका स्फीति दाब बढ़ जाता है और रन्ध्र खुल जाते हैं।

रन्ध्रों के खुलने तथा बन्द होने की क्रियाविधि

रन्ध्र प्रायः दिन में खुलते हैं, और रात्रि में बन्द रहते हैं, परन्तु CAM में रन्ध्र दिन में बन्द रहते हैं और रात्रि में खुलते हैं। रन्ध्र का खुलना व बन्द होना द्वार कोशिकाओं की स्फीति (turgidity) तथा श्लथन (flaccidity) पर निर्भर करता है। स्फीति तथा श्लथ दशा के सम्बन्ध में दो प्रकार के मत दिए गए  

स्टार्च-शर्करा परिवर्तन मत

सेयरे (1926) के अनुसार, प्रकाश → प्रकाश संश्लेषण → पत्ती में CO2 की सान्द्रता में कमी → द्वार कोशिकाओं की pH का बढ़ना → एन्जाइम द्वारा स्टार्च का शर्करा में परिवर्तन → द्वार कोशिकाओं के परासरण दाब का बढ़ना → द्वार कोशिकाओं में जल का गमन → द्वार कोशिकाएँ स्फीति दशा में → रन्ध्रीय छिद्र का खुलना

वाष्पोत्सर्जन का महत्त्व

वाष्पोत्सर्जन मूल से शीर्ष तक जल, खनिज लवणों के परिवहन तथा तापक्रम सन्तुलन में उपयोगी है।

करटिस (1926) ने वाष्पोत्सर्जन को आवश्यक दुर्गुण कहा।

वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक

वाष्पोत्सर्जन की दर आपेक्षिक आर्द्रता व्युत्क्रमानुपाती होती है अर्थात् आर्द्रता के बढ़ने पर वाष्पोत्सर्जन की दर घटती है।

वाष्पोत्सर्जन की दर वायु की गति के अनुक्रमानुपाती होती है। तापमान बढ़ने के साथ वाष्पोत्सर्जन की दर भी बढ़ जाती है।

CO2 की कम सान्द्रता पर वाष्पोत्सर्जन अधिक व CO2 की अधिक सान्द्रता पर व वाष्पोत्सर्जन कम होता है।

एब्सिसिक अम्ल, फिनाइल मरक्यूरिक एसीटेट, ऐस्पेरीन आदि वाष्पोत्सर्जन की दर को घटा देते हैं।

वाष्पोत्सर्जन तथा बिन्दुस्रावण में अन्तर

वाष्पोत्सर्जनबिन्दुस्रावण
यह क्रिया दिन में होती है।यह क्रिया रात में होती है।
पानी वाष्प बनकर उड़ता है।पानी द्रव के रूप में निकलता है।
यह क्रिया रन्ध्रों द्वारा होती है।यह जल रन्ध्रों द्वारा होती है, जो शिराओं के अन्त में होते हैं।
वाष्पोत्सर्जित जल शुद्ध होता है।जल शुद्ध नहीं होता है, अपितु इसमें खनिज तथा शर्करा आदि मिलते हैं।
यह क्रिया रन्ध्रों से नियन्त्रित है।यह क्रिया अनियन्त्रित है।
यदि सतह का तापमान घटा दिया जाए, तो वाष्पोत्सर्जन की क्रिया धीमी पड़ सकती है।इसमें ऐसा कोई सम्बन्ध नहीं है।

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