इस आर्टिकल में फलों से जुड़े सारे तथ्यों के बारे में बात करेगे | फल क्या होते है (What is Fruit), फलों के कितने प्रकार है, फलों की विशेषताएँ क्या क्या है, फलों के क्या गुण है आदि महत्वपुर्ण जानकारी इस आर्टिकल में जानेगे |
फल (Fruits)
फल पादप का मुख्य अंग है फल का निर्माण निषेचन(FERTILIZATION) के पश्चात जायांग के अण्डाशय(OVARY) से होता हैं।परिपक्व अण्डाशय ही फल कहलाता है। फल में मुख्यतया दो भाग फलभित्ति (Pericap) तथा बीज (seed) होते हैं। केवल अण्डाशय से विकसित होने वाले फल सत्य फल (True Fruit) तथा पुष्प के अन्य भाग; जैसे-पुष्पासन, बाह्यदल इत्यादि में विकसित फल कूट फल (false fruit) कहलाते हैं। जैसे – सेब, शहतूत, नाशपाती आदि मे निषेचन के बिना अण्डाशय का फल के रूप में रुपान्तरण अनिषेकफलन कहलाता है।
ये फल प्रायः बीज रहित होते हैं उदाहरण केला, पपीता, नारंगी अंगर, अनानास आदि। फल नए बीजों की रक्षा करता है तथा बीज के प्रकीर्णन में सहायता करता है।

फल की संरचना (STRUCTURE OF FRUITS)
एक फल में फलभित्ती (PERICARP) (Pericarp) और बीज होते हैं। अंडाशय की दीवार से फलभित्ती (PERICARP) विकसित होती है। फलभित्ती को बाह्य फलभित्ती (Epicarp), मध्य फलभित्ती (Mesocarp) और अन्तः फलभित्ती (Endocarp) में विभेदित किया जाता है।
बीज का निर्माण निषेचन के बाद बिजाण्ड (OVULE) से होता हैं। बीजांड का बीजावरण (SEED COAT) फलभित्ती के पास होता है।
बाह्य फलभित्ती (Epicarp) – यह सबसे बाहरी स्त्तर होता है। जो पतला नरम या कठोर होता है। यह फल का छिलका बनती है।
मध्य फलभित्ती (Mesocarp)– यह मोटी गूदेदार तथा खाने योग्य होती है, जैसी की आम का मध्य का पीला खाने योग्य भाग लेकिन नारियल में रेशेदार जटा होती है।
अन्तः फलभित्ती (Endocarp)- यह सबसे भीतरी स्तर है आम नारियल बेर में यह कठोर लेकिन खजूर, संतरा में पतली झिल्ली के रूप में होती है। बीजावरण अन्तः फलभित्ती के पास होता है।
फलों के प्रकार (Type of Fruits)
आवृतबीजियों के फलों में बहुत विभिन्नताएं पाई जाती है, मोटे तौर पर ये तीन श्रेणियों में रखे जाते है |
(i) सरल फल (Simple Fruit)
(ii) गुदेदार फल (Succulent fruits)
(iii) शुष्क फल (Dry Fruit)
सरल फल (Simple Fruit)
ये फल एकाण्डपी या बहुअण्डपी एवं युक्ताण्डपी अण्डाशय से विकसित होते है। ये फल गूदेदार या शुष्क होते हैं। इसके अन्तर्गत मूंगफली, सिंघाड़ा, काजू जैसे शुष्क फल एवं आम, नींबू आदि जैसे गूदेदार फल आते हैं।
अष्ठिफल (Drupe)
यह एकबीजी फल है, जो एकाण्डपी या बहुअण्डपी व युक्ताअण्डपी अण्डाशय से विकसित होते हैं। इन फलों में फलभित्ति बाह्य, मध्य तथा अन्त:फलभित्ति में विभाजित होती है तथा अन्त:फलभित्ति काष्ठीय होती है। उदाहरण आम, बेर, पिस्ता।
बेरी (Berry)
बेरी (Berry) एक या अनेक बीजधारी फल है, जो बहुअण्डपी, युक्ताअण्डपी व उर्ध्ववती या अधोवर्ती अण्डाशय से विकसित होते हैं।
गुदेदार फल (Succulent fruits)
फलभित्ति बाह्य, मध्य तथा अन्तःफलभित्ति में विभेदित होती है।
उदाहरण: टमाटर, पपीता, अंगूर, मिर्च।
पोम (Pome)
यह कूट फल है क्योकि इसमें अण्डाशय के साथ-साथ पुष्पासन भी फल बनाने में सहायता करता है।
मुख्य फल पंचअण्डपी व युक्ताण्डपी अण्डाशय से बनता है, परन्तु खाने योग्य नहीं है, पुष्पासन जो अण्डाशय के चारों ओर रसीला व गुदेदार भाग बनाता है, खाया जाता है। उदाहरण सेब, लौकाटा।
पेपो (Pepo)
यह प्राय बहुअण्डपी, युक्ताअण्डपी, अधोवर्ती तथा भित्तीय बीजाण्डन्यास युक्त अण्डाशय से विकसित होता है। बाह्य फल भित्ति दृढ़ छिलका बनाती है, तथा मध्य व अन्तःफलभित्ति रसीली तथा खाने योग्य होती है। उदाहरण: कुकुरबिटेसी कुल के पौधे।
हेस्पेरिडियम (Hesperidium)
- ये फल बहुअण्डपी, युक्ताअण्डपी, उर्ध्व अण्डाशय से विकसित होते हैं।
- अण्डाशय में स्तम्भीय बीजाण्डन्यास होता है। बाह्य फल भित्ति मोटी एवं छिलके के रूप में होती है, जिसमें अनेक तेल ग्रन्थियाँ पाई जाती है।
- अत:फलभित्ति झिल्ली के रूप में प्रत्येक फाँक के ऊपर रहती है, इससे अनेक सरस ग्रन्थिल रोम निकलते हैं, जो फल का खाने योग्य भाग बनाते हैं। उदाहरण सन्तरा, नींबू ।
शुष्क फल (Dry Fruit) के प्रकार
शुष्क फल तीन प्रकार के होते है
(i) स्फोटक
(ii) अस्फोटक
(iii) भिदुरफल
स्फोटक शुष्क फल की विशेषताएँ और प्रकार
इस फल के परिपक्व हो जाने पर फलभित्ति फट जाती है |
स्फोटक शुष्क फल के निम्न प्रकार है :
फली (Legume or pod)
यह उर्ध्ववर्ती, एकाण्डपी, एककोष्ठीय अण्डाशय से विकसित होते हैं परिपक्व फल शिखर से आधार की ओर दोनों सीवन से फटते हैं, उदाहरण: फेबेसी कुल के सदस्य।
फॉलिकिल (Follicle)
यह उर्ध्वर्ती, एकाण्डपी, एककोष्ठीय अण्डाशय से विकसित होते हैं, परन्तु परिपक्व फल अधर सीवन से फटते हैं। उदाहरण: मदार डेल्फिनियम।
सिलिक्यूआ (Siliqua)
यह बहुबीजी तथा द्विकोष्ठी फल है, जो द्विअण्डपी, युक्ताअण्डपी, उर्ध्ववर्ती अण्डाशय से विकसित होता है। स्फुटन नीचे से ऊपर की ओर होता है तथा बीज आभाषीपट या रेप्लम पर लगे होते हैं। उदाहरण – क्रूसीफेरी|
सिलिक्यूला (Silicula) छोटे, चौड़े व चपटे सिलिक्यूआ, उदाहरण: कैप्सेला
सम्पुट (Capsule)
यह बहुअण्डपी, युक्ताअण्डपी, उर्ध्ववर्ती कभी-कभी अधोवर्ती अण्डाशय से विकसित होता है। इन फलों का स्फुटन विभिन्न प्रकार से होता है । उदाहरण: रन्ध्री-पोस्त, कोष्टविदारक-कपास, षटविदारक-लाइनम, पटभंजक, धतूरा तथा अनुप्रस्थ, पोर्टुलाका
अस्फोटक शुष्क फल की विशेषताएँ और प्रकार
अस्फोटक शुष्क फलों मेंफल के परिपक्व होने पर फलभित्ति नहीं फटती है |
ऐकीन (Achene)
ये फल एककोष्ठीय तथा एकबीजी होते हैं, और एकाण्डपी व उर्ध्ववर्ती अण्डाशय से विकसित होते हैं। इनकी फलभित्ति बीजावरण से अलग होती है। उदाहरण: क्लीमेटिस, नार्विलिया ।
कैरिओप्सिस (Caropsis)
ये एककोष्ठीय तथा एकबीजी फल हैं, जो एकाण्डपी, उर्ध्व अण्डाशय, से विकसित होते हैं, इनकी फलभित्ति बीजावरण से संयुक्त रहती है। उदाहरण- ग्रेमिनी कुल के पौधे ।
सिप्सेला (Cypsella)
ये एककोष्ठीय तथा एकबीजी फल हैं, जो द्विअण्डपी, युक्ताअण्डपी, अधोवर्ती, अण्डाशय से विकसित होते हैं इनकी फलभित्ति बीजावरण से पृथक रहती है इनमें बाह्यदल पैपस के रूप में रूपान्तरित होते हैं जो प्रकीर्णन की पैराशूट प्रक्रिया में सहायक है। उदाहरण: कम्पोजिटी कुल के सदस्य।
नट (Nut)
एककोष्ठीय तथा एकबीजी फल, जो द्वि या बहुअण्डपी, युक्ताअण्डपी, उर्ध्ववर्ती अण्डाशय से विकसित होते हैं फलभित्ति कठोर एवं काष्ठीय। उदाहरण: काजू सिंघाड़ा, लीची।
समारा (Samara)
ये एकबीजी फल है, जो द्विअण्डपी, युक्ताअण्डपी, उर्ध्व अण्डाशय से विकसित होते हैं। इनकी फलभित्ति पँख के सामन चपटी होती है और वायु द्वारा प्रकणन में सहायक है। उदाहरण: होलोप्टेरा, हिप्टेज
भिदुरफल
परिपक्व होने के साथ-साथ दो बीजों के बीज की फलभित्ति के अन्दर की ओर धँस जाने से फल बहुत से एक बीज युक्त फलांशुकों में विभक्त हो जाते हैं।
लोमेन्टम (Lomentum)
ये फली के रूपान्तरण है, जो एकाण्डपी, एककोष्ठीय तथा उर्ध्व अण्डाशय से विकसित होते हैं। ये एकबीजी फलांशुकों (mericarps) में विभाजित हुए रहते हैं। उदाहरण: मूँगफली, छुईमई, बबूला
रेग्मा (Regma)
ये फल त्रिअण्डपी, युक्ताअण्डपी, उर्ध्वअण्डाशय से विकसित होते हैं। फल परिवक्व होने पर तीन अस्फोटी बीजयुक्त गोलाणुओं (Cocci) में विभाजित हो जाते हैं, उदाहरण: रिसिनस, जिरेनियम
क्रीमोकार्प (Cremocarp)
ये फल द्विकोष्ठीय एवं द्विबीजी होते हैं और द्विअण्डपी, युक्ताण्डपी अधोवर्ती अण्डाशय से विकसित होते हैं। अण्डाशय के पकने पर फल दो अस्फोटी भागों में बँट जाता है, जिन्हें फलाँशुक कहते हैं,
उदाहरण: अम्बेलीफेरी कुल के सदस्य।
कार्सेरूलस (Carcerulus)
ये फल द्विअण्डपी या बहुअण्डपी, युक्ताअण्डपी, उर्ध्ववर्ती अण्डाशय से विकसित होते हैं। कूट पर के बन जाने से इनमें अनेक एकबीजी फलांशुक बन जाते हैं। उदाहरण: ओसिमम, ऐबूटिलोन ।
द्विसमारा
ये फल द्विअण्डपी, युक्ताअण्डपी, उर्ध्व अण्डाशय से विकसित होते हैं। इनमें फलभित्ति फैलकर दो चपटे पक्ष बनाती है। परिपक्व होने पर फल, दो एकबीजी भागों में विभाजित हो जाता है। उदाहरण: एसर, हिप्टेज ।
पुंजफल (Aggregate Fruits)
ये वास्तव में लघुफलों (fruitlets) के समूह हैं, जो बहुअण्डपी, वियुक्ताण्डपी अण्डपों से विकसित होते हैं। प्रत्येक अण्डप (carpel) से एक लघुफल बनता है। ये निम्न प्रकार के होते हैं :
फॉलिकिलों का पुंज (Etaerio of follicles)
इस फल में प्रत्येक लघुफल एक फॉलिकिल होता है, और सभी लघुफल बढ़े हुए पुष्पासन पर एक गुच्छे के रूप में लगे रहते हैं। उदाहरण: मदार, सदाबहार।
सरस फलों का पुंज (Etaerio of Berries)
इसेमें बहुत से सरस फल एक गूदेदार पुष्पासन के चारों ओर लगे रहते हैं। उदाहरण: पॉलीऐल्थिया, शरीफा ।
अष्ठिफलों का पुंज (Etaerio of drupes)
बहुत से छोटे-छोटे अष्ठिफल पुष्प के विभिन्न अण्डपों से विकसित होते हैं, और गूदेदार पुष्पासन पर लगे रहते हैं। उदाहरण: रसभरी।
ऐकीनों का पुंज (Etaerio of Achenes)
प्रत्येक लघुफल ऐकीन होता है। उदाहरण: नारवेलिया, क्लीमेटिस, गुलाब।
संग्रथित फल (Composite Fruit)
(संग्रथित फल सम्पूर्ण पुष्पक्रम से विकसित होते हैं, इन्हें इन्फ्रक्टेसेन्स (Enfructescence) भी कहते हैं।
ये दो प्रकार के होते हैं:
सोरोसिस (Sorosis)
शूकी, स्पेडिक्स या कैटकिन पुष्पक्रमों से विकसित होते हैं। प्रत्येक पुष्प के सहपत्र तथा परिदल मांसल तथा रसीले हो जाते हैं तथा इनका पुष्पावली वृन्त भी मोटा तथा मांसल हो जाता है। उदाहरण कटहल, अनानास, शहतूत।
साइकोनस (Syconus)
यह हाइपेन्थोडियम पुष्पक्रम से विकसित होता है। आशय नाशपाती के आकार की खोखली गुहा बनाते हैं, जिसके ऊपर छोटे-छोटे शल्कों से घिरा एक छिद्र होता है। पुष्पासन गूदेदार खाने योग्य भाग बनाता है।
फलों के गुण, उपयोग और फायदे (Fruits Benefits in Hindi)
- फल हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। फलों से से हमारे शरीर में खनिज और विटामिन्स की पूर्ती होती है, जो कि हमारे शरीर को अच्छी तरह से काम करने लिए बेहद ज़रूरी होते हैं।
- फाइबर युक्त फल पाचन शक्ति को बढ़ाने में मदद करते हैं। फल खाने से पर्याप्त ऊर्जा भी मिलती है।
- फल स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं जैसे हीट स्ट्रोक, हाई बीपी (उच्च रक्तचाप), कैंसर, हृदय रोग और मधुमेह से लड़ने की क्षमता प्रदान करते हैं।
- लगभग सभी फलो में पोषक तत्व पाए जाते हैं। शरीर के रोग ग्रसित होने पर स्वस्थ आहार और फल रोगों से निजात दिलाते हैं।
- फलों में न केवल महत्वपूर्ण विटामिन और खनिज पाए जाते हैं, बल्कि इनके सेवन से पाचन तंत्र भी स्वस्थ रहता है। यद्यपि किसी भी प्रकार का फल आपके संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है, लेकिन विशिष्ट पोषक तत्वों की अधिक मात्रा वाले फल अन्य किस्मों की तुलना में अधिक फायदेमंद होते हैं।
- फलों के छिलकों में फाइबर की अधिक मात्रा होती है जो कि हमारे शरीर की उत्सर्जन प्रक्रिया में बहुत उपयोगी होती है। हालांकि कुछ रेशेदार फलों के छिलके जिन्हें खाया नही जा सकता हैं जैसे कि नींबू, केले, खरबूज़े और नारंगी लेकिन इनके बाक़ी हिस्सों पर्याप्त मात्रा में फाइबर उपस्थित होता है।
- फल 90-95% पानी की मात्रा से भरपूर होते हैं, जिससे शरीर से नाइट्रोजनयुक्त अवांछित विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में आसानी होती है।
फलों से जुड़े महत्वपुर्ण तथ्य
- विक्टोरिया एमाजोनिका की पत्तियाँ सबसे बड़ी होती हैं।
- अपस्थानिक जड़े मूलांकुर (radicle) के अतिरिक्त पौधों की शाखाओं तथा पत्तियों से निकलती हैं।
- जब एक ही पौधे पर अलिंगी, द्विलिंगी तथा एकलिंगी पुष्प पाये जाते हैं, तो इसे सर्वांगी (polygamous) कहते हैं; जैसे-आम (Mangifera indica), पॉलीगोनम ।
- जब पुष्प में केवल पुंकेसर हो तो इसे पुंकेसरी (staminate) तथा जब केवल मादा जननांग हो तो इसे स्त्रीकेसरी कहते हैं। गोभी का सम्पूर्ण पुष्पक्रम भोजन के रूप में उपयोग होता है।
- किसी स्थान पर वर्ष की विभिन्न ऋतुओं में जलवायु के क्रमिक परिवर्तन के कारण कैम्बियम की सक्रियता बदलती रहती है, जिसके कारण बसन्त ऋतु में मोटी वाहिकाएँ तथा शरद ऋतु में पतली वाहिकाएँ मिलती हैं इसके फलस्वरुप स्पष्ट वार्षिक वलय बनते हैं, जो एक वर्ष की वृद्धि को प्रदर्शित करते हैं। इन वलयों को गिनकर पेड़ की आयु ज्ञात की जाती है। वार्षिक वलय का अध्ययन डेन्ड्रोक्रोनोलॉजी (Dendrochronology) कहलाती है।
- कैम्बियम के द्वारा पौधे के बाहरी ओर कॉर्क का निर्माण होता है। परिपक्व होने पर ये मृत हो जाती है और सुबेरिन नामक पदार्थ जमा हो जाता है। बोतलों में प्रयुक्त कॉर्क इसका उदाहरण है, जो क्यूरकस सूबर नामक पौधे से प्राप्त होता है।