इस आर्टिकल में हम मानव के प्रमुख संवेदी अंगों (Human Sense Organs) के बारे में बात करेगे | मनुष्य के संवेदी अंग (Human Sense Organs) कोनसे है और उनके प्रमुख कार्य क्या है, मानव कान (Human Ear), मानव नेत्र (Human Eye), मनुष्य का नाक (Human Nose), मानव त्वचा (Human Skin), मानव जीभ (Human Tongue) आदि Human Sense Organs के क्या कार्य है | साथ ही हम मनुष्य के संवेदी अंग (Sense Organs) से जुड़े महत्वपुर्ण तथ्य जानेगे |
संवेदी तन्त्रिकाएँ उद्दीपनों को मस्तिष्क तक पहुंचाती है तथा आवश्यकतानुसार चालक तन्त्रिका तन्तुओं द्वारा इन्हें प्रतिक्रियाओं के रूप में अपवाहक अंगों को भेज दिया जाता है। मनुष्य के प्रमुख संवेदी अंग कान (Ear), आँख (eye), नाक (Nose) तथा त्वचा (skin) है।
मानव कान (Human Ear)

कान ध्वनि तरंगों को सुनने एवं सन्तुलन बनाने में सहायक होते हैं
मध्य कर्ण में शरीर की सबसे छोटी अस्थि स्टेपीस होती है।
कर्ण पल्लव की तन्तुमय उपास्थि ध्वनि तरंगों का संग्रह करती है। मनुष्य में कर्ण पल्लव अवशेषी अंग हैं।
कान को भीतर से देखने के लिए अरीस्कोप का प्रयोग करते हैं।
मानव नेत्र (Human Eye)

नेत्र या आँखे प्रकाश संवेदी अंग हैं। प्रत्येक नेत्र एक गेंद के आकार की गोल एवं खोखली रचना है, इसे नेत्र गोलक (eyeball) कहते हैं।
दृढ़ पटल (Sclerotia)
दृढ़ पटल (Sclerotia) बाह्य दृढ़ तथा गोलक के कोटर से बाहर पारदर्शी कॉर्निया (cornea) बनाता है।
रक्तक पटल (Choroid)
रक्तक पटल (Choroid) कोमल, संयोजी ऊतक का बना होता है । इसमें रंगा कणिकाएँ होती हैं। रंगा कणिकाएँ खरगोश में लाल, मनुष्य में काली, भूरी या में नीली होती हैं।
दृष्टि पटल (Retina)
दृष्टि पटल (Retina) सबसे भीतरी परत है, जो संवेदी होती है। दृष्टि पटल पर प्रतिविम्व सत्य एवं उल्टा बनता है। यह नेत्र गोलक की सबसे भीतरी संवेदी परत है, यह दो प्रकार की कोशिकाओं, दृष्टि शलाकाएँ (rods) एवं दृष्टि शंकुओं (cones) की बनी होती है।
शलाकाएँ
शलाकाएँ कम प्रकाश के लिए संवेदी होती हैं तथा इनमें लाल गुलावी वर्णक, रोडोप्सिन पाया जाता है।
शंकु तेज प्रकाश के लिए संवेदी है तथा रंगों में अन्तर उत्पन्न करते हैं; जैसे- लाल, हरा, नीला आदि ।
मानव के प्रमुख दृष्टि दोष
निकट दृष्टि दोष (Myopia)
इसमें केवल कम दूरी की वस्तुएँ स्पष्ट दिखाई देती हैं। प्रतिबिम्ब दृष्टिपटल के सामने बनता है यह रोग अवतल लेन्स के उपयोग द्वारा ठीक हो सकता है।
दूर दृष्टि दोष (Hypermetropia)
इसमें केवल दूर की वस्तुएँ दिखाई देती हैं। प्रतिबिम्ब दृष्टिपटल के पीछे बनता है। इस रोग को उत्तल लेन्स (convex lens) का उपयोग करके दूर किया जा सकता है।
दृष्टिवैषम्य (Astigmatism)
इसमें कॉर्निया की आकृति असामान्य हो जाती है। सिलैण्ड्रोकल लेन्स द्वारा यह रोग दूर हो सकता है।
कन्जक्टीवाइटिस (Conjunctivitis)
जीवाणु द्वारा कन्जक्टिवा में सूजन आ जाती है। 5. रतौंधी (Night blindness ) विटामिन A की कमी से रोडोप्सिन का निर्माण कम होता है, जिसके कारण कम प्रकाश में दिखाई नहीं देता।
वर्णान्धता (Colour blindness)
यह आनुवंशिक रोग है, जो आँखों में शंकु कोशिकाओं की कमी से होता है। ऐसे व्यक्ति लाल व हरे रंग में अन्तर नहीं कर पाते।
मनुष्य का नाक (Human Nose)

नाक गन्ध ग्रहण करने वाला संवेदी अंग है।
नासावेश्मों (nasal chamber) की दीवार घ्राण उपकला (olfactory epithelium) अस्थियों पर मढ़ी रहती है।
घ्राण ग्राही कोशिकाएँ लम्बी पतली एवं तुर्क रूप तथा द्विध्रुवीय तन्त्रिका कोशिकाएँ होती हैं। घ्राण कोशिकाएं, स्वाद कोशिकाओं की तुलना में अधिक रसायन संवेदी होती हैं। प्राण संवेदनाओं; जैसे-मिर्च, क्लोरोफार्म, अमोनिया आदि से आँसू निकल आते हैं। कुत्ते तीव्र घ्राण संवेदी होते हैं।
कुत्ते विभिन्न मनुष्यों की पहचान इसलिए कर लेते हैं क्योंकि इनमें अन्तर करने की क्षमता होती है।
विभिन्न मनुष्यों की गन्ध में मॉथ, तितली आदि को एन्टीना में घ्राण रसायन संवेदांग होते हैं।
नासावश्मों के आधार पर जैकोब्सन के अंग (Jacobson’s organs ) नामक दो खोखले कोश होते हैं। मनुष्य में ये अवशेषो होते हैं।
मानव त्वचा (Human Skin)

त्वचा शरीर का बाह्य आवरण है। यह शरीर की सुरक्षा का पहला बाहरी कवच है।
त्वचा का बाहरी स्तर उपचर्म या एपीडर्मिस (epidermis) होता है, जो एक्टोडर्म (ectoderm) से बनता है। त्वचा का आन्तरिक स्तर चर्म या डर्मिस (dermis) होता है, जो मीसोडर्म (mesoderm) से बनता है।
त्वचा में त्वक् संवेदी (Cutaneous Receptors) होते हैं, जो निम्न हैं:
एल्जीसी रिसेप्टर (algecireceptor) पीड़ा ग्राही
मीसनगर के देहाणु (Meissner’s corpuscles) तथा मरकेल की तश्तरियाँ (Merkel’s discs) स्पर्शग्राही (tangoreceptor) है।
पैसीनी के देहाणु (Pacini’s corpuscles) दाब तथा कम्पन ग्राही होते हैं।
क्राउस के देहाणु (Krause’s corpuscles) शीत उद्दीपन ग्रहण करते हैं और शीत ग्राही (cold receptors) कहलाते हैं।
रूफिनी के छोर अंग (end organ of Ruffini) गर्मी का उद्दीपन ग्रहण करते हैं और ऊष्मा ग्राही (heat receptors) कहलाते हैं।
मानव जीभ (Human Tongue)

जीभ मुख के तल पर एक पेशी होती है, जो भोजन को चबाना और निगलना आसान बनाती है। यह स्वाद अनुभव करने का प्रमुख अंग होता है, क्योंकि जीभ स्वाद अनुभव करने का प्राथमिक अंग है, जीभ की ऊपरी सतह पेपिला और स्वाद कलिकाओं से ढंकी होती है। जीभ का दूसरा कार्य है स्वर नियंत्रित करना। यह संवेदनशील होती है और लार द्वारा नम बनी रहती है, साथ ही इसे हिलने-डुलने में मदद करने के लिए इसमें बहुत सारी तंत्रिकाएं तथा रक्त वाहिकाएं मौजूद होती हैं। इन सब के अलावा, जीभ दातों की सफाई का एक प्राकृतिक माध्यम भी है।

मनुष्य के संवेदी अंग (Sense Organs) से जुड़े महत्वपुर्ण तथ्य
उभयचर, सरीसृप तथा पक्षियों में एक ही कर्ण अस्थि मैलियस पाई जाती है।
आइरिस के केन्द्र में दिखाई पड़ने वाला काला छिद्र तारा (pupil) है।
उल्लू की रेटिना में शलाकाएँ अधिक, जबकि मुर्गा (fowl) की रेटिना में शंकु अधिक पाए जाते हैं।
कॉर्निया नेत्र का असंवहनीय भाग है।
कशेरुकियों की त्वचा का रंग मिलेनीन वर्णक के कारण होता है।
मांसाहारी जन्तुओं; जैसे बिल्ली, कुत्ता, शेर आदि की आँखें टेपिटम ल्यूसीडम के कारण रात में चमकती है।
पीले-हरे रंग के लिए आँखें सबसे अधिक संवेदी होती हैं।
मधुमक्खियाँ पराबैंगनी किरणें देख सकती हैं, जबकि गिद्ध में सबसे तीव्र दृष्टि पाई जाती है।
शरीर अनुपात के आधार पर हिरन में सबसे बड़ी आँखें होती हैं।
दृष्टिपटल पर प्रतिबिम्ब सत्य एवं उल्टा बनता है।