डॉप्लर प्रभाव (Doppler Effect)
ध्वनि में आवृत्ति परिवर्तन के प्रभाव को सर्वप्रथम जॉन डॉप्लर ने 1842 में प्रतिपादित किया जिसके कारण उन्हीं के नाम पर उसे ‘डॉप्लर प्रभाव’ कहते हैं। डॉप्लर के अनुसार, ‘जब किसी ध्वनि स्रोत व श्रोता के बीच आपेक्षिक गति होती है, तो श्रोता को ध्वनि की आवृत्ति उसकी वास्तविक आवृत्ति से अलग सुनाई देती है। यदि कोई स्त्रोत, श्रोता के निकट आ रहा होता है, तो ध्वनि की आवृत्ति बढ़ जाती है और यदि स्रोत. श्रोता से दूर जाता है, तो आवृत्ति कम हो जाती है।
यही कारण है, कि जब रेलगाड़ी का इन्जन सीटी बजाते हुए श्रोता के निकट आता है, तो उसकी ध्वनि बड़ी तीखी (Shrill) अर्थात् अधिक आवृत्ति की सुनाई देती है और जैसे ही इन्जन श्रोता को पार करके aदूर जाने लगता है तुरन्त ध्वनि की आवृत्ति कम हो जाती है और सीटी की ध्वनि मोटी (Grave) हो जाती है।
प्रयोग
डॉप्लर प्रभाव का उपयोग करके गैलेक्सी तथा सुदूर तारों का अध्ययन किया जाता है। तारे के प्रकाश के वर्णक्रमण (Spectrum) का अध्ययन करके प्रकाश की आवृत्ति में हुए परिवर्तन का पता लगाया जाता है। इस परिवर्तन से यह ज्ञात हो जाता है, कि तारा पृथ्वी से दूर जा रहा है या उसके पास आ रहा है और उसकी गति का वेग क्या है !
यदि स्पेक्ट्रम में प्रकाश रेखा बैंगनी सिरे की ओर विस्थापित होती है (बैंगनी-विस्थापन, Violet-shift) तो प्रकाश स्रोत (तारा, गैलेक्सी, आदि) पृथ्वी की ओर आ रहा है और यदि वह लाल सिरे की ओर विस्थापित होती है (अर्थात् लाल-विस्थापन या अभिरक्त विस्थापन, Red-shift) तो प्रकाश स्रोत पृथ्वी से दूर जा रहा होता है।
प्रकाश में डॉप्लर प्रभाव
प्रकाश तरंगें भी डॉप्लर प्रभाव दर्शाती हैं। इन दोनों में अन्तर यह है, कि ध्वनि में डॉप्लर प्रभाव असममित (Asymmetric) होता है जबकि प्रकश में सममित (Symmetric) होता है। इसका तात्पर्य यह है, कि ध्वनि में डॉप्लर प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है, कि ध्वनि स्रोत श्रोता की ओर आ रहा है या उससे परे जा रहा है। इसके विपरीत प्रकाश में डॉप्लर प्रभाव केवल प्रकाश स्रोत व दर्शक के मध्य आपेक्षिक वेग पर निर्भर करता है, इस बात पर नहीं कि स्रोत दर्शक के निकट आ रहा है या उससे दूर जा रहा है।
प्रकाश के डॉप्लर प्रभाव द्वारा सुदूर तारों व गैलेक्सियों के पृथ्वी के सापेक्ष वेग तथा उनकी गति की दिशा ज्ञात की जाती है। वास्तव में खगोलज्ञ एडविन हब्बल (1889-1953) ने डॉप्लर प्रभाव द्वारा ही यह ज्ञात किया था, कि विश्व (Universe) का विस्तार हो रहा है।
यदि कोई तारा या गैलेक्सी पृथ्वी की ओर आ रहा है, तो उससे प्राप्त प्रकाश की तरंग दैर्ध्य स्पेक्ट्रम के बैंगनी सिरे की ओर विस्थापित होती है और यदि तारा या गैलेक्सी पृथ्वी से दूर जा रहा है, तो प्राप्त प्रकाश की तरंग-दैर्ध्य स्पेक्ट्रम के लाल सिरे की ओर विस्थापित होती