संचरण
ध्वनि के एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने में किसी-न-किसी पदार्थ के माध्यम (गैस, द्रव अथवा ठोस) का होना आवश्यक है। ध्वनि निर्वात में होकर नहीं चल सकती।
ध्वनि का माध्यम प्रत्यास्थता एवं घनत्व पर निर्भर करती है, जिस पदार्थ के माध्यम प्रत्यास्थ नहीं होते उसमें अधिक दूरी तक ध्वनि का संरचरण नहीं हो पाता।
इसके विपरीत कोई माध्यम जितना अधिक प्रत्यास्थ होगा उसमें ध्वनि की चाल उतनी ही अधिक होगी। इस कारण ठोस वस्तुओं में द्रव तथा गैसों की अपेक्षा ध्वनि की चाल अधिक होती है।
उदाहरण
दैनिक जीवन में किसी ध्वनि-स्रोत से उत्पन्न ध्वनि प्रायः वायु में होकर हमारे कान तक पहुंचती है परन्तु ध्वनि द्रव व ठोस में होकर भी चल सकती है। यही कारण है, कि गोताखोर जल के भीतर होने पर भी ध्वनि को सुन लेता है।
इसी प्रकार रेल की पटरी से कान लगाकर बहुत दूर से आती हुई रेलगाड़ी की ध्वनि सुनी जा सकती है। ध्वनि किसी भी माध्यम में अनुदैर्ध्य तरंगों के रूप में चलती हैं।