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श्रव्य, अपश्रव्य एवं पराश्रव्य तरंगें क्या होती हैं ?

in Uncategorized, फ़िजिक्स
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Contents

  • 1 श्रव्य तरंगें (Audible Waves)
  • 2 अपश्रव्य तरंगें (Infrasonic Waves)
  • 3 पराश्रव्य तरंगें (Ultrasonic Waves)
  • 4 पराश्रव्य तरंगों के उपयोग

ध्वनि तरंगों को आवृत्तियों के एक बहुत बड़े परास तक उत्पन्न किया जा सकता है। इस आधार पर उन्हें तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

श्रव्य तरंगें (Audible Waves)

जिन तरंगों को हमारा कान सुन सकता है उन्हें ‘श्रव्य’ तरंगें कहते हैं। इन तरंगों की आवृत्ति 20 से लेकर 20,000 हर्ट्ज तक होती है। इन निम्नतम तथा उच्चतम आवृत्तियों को ‘श्रव्यता की सीमाएं’ (Limits of audibility) कहते हैं। श्रव्य तरंगों के स्रोत हैं-वाक्-तन्तु (मनुष्य तथा जानवरों की आवाजें), कम्पित डोरिया (वायलिन, सितार, इत्यादि), कम्पित छड़ें (स्वरित्र द्विभुज), कम्पित प्लेटें व झिल्लियां (घण्टी, ढोल, लाउडस्पीकर, तबला, आदि) तथा वायु-स्तम्भ (माउथ आर्गन)। 

अपश्रव्य तरंगें (Infrasonic Waves)

उन अनुदैर्ध्य यान्त्रिक तरंगों को जिनकी आवृत्तियां निम्नतम श्रव्य आवृत्ति (20 हर्ट्ज) से नीचे होती हैं ‘अपश्रव्य तरंगें’ कहते हैं। इस प्रकार की तरंगों को बहुत बड़े आकार के स्रोतों से उत्पन्न किया जा सकता है। भूचाल के समय पृथ्वी में बहुत लम्बी तरंगें चलती हैं। ये अपश्रव्य तरंगें हैं। हमारे हृदय की धड़कनों की आवृत्ति भी अपश्रव्य तरंगों के समान होती है। 

पराश्रव्य तरंगें (Ultrasonic Waves)

उन अनुदैर्ध्य यान्त्रिक तरंगों को जिनकी आवृत्तियां उच्चतम श्रव्य आवृत्ति (20,000 हर्ट्ज) से ऊची होती हैं, ‘पराश्रव्य तरंगे’ कहते हैं। इन तरंगों को गाल्टन की सीटी द्वारा तथा दाब-विद्युत प्रभाव (Piezo-electric effect) की विधि द्वारा क्वार्ट्ज और जिंक ऑक्साइड के क्रिस्टल के कम्पनों से उत्पन्न करते हैं।

इन तरंगों की आवृत्ति बहुत ऊंची होने के कारण ये अपने साथ बहुत ऊर्जा ले जाती है। साथ ही इनकी तरंग दैर्ध्य बहुत छोटी होने के कारण इन्हें एक पतले किरण-पुंज के रूप में बहुत दूर तक भेजा जा सकता है। इन गुणों के कारण इन तरंगों के अनेक लाभदायक उपयोग हैं

पराश्रव्य तरंगों के उपयोग

  • संकेत (Signal) भेजना: इन तरंगों द्वारा किसी विशेष दिशा में संकेत भेजे जा सकते हैं क्योंकि ये तरंगें बहुत पतले किरण-पुंज के रूप में बहुत दूर तक जा सकती है।
  • समुद्र की गहराई ज्ञात करना व छिपे पदार्थों का पता लगाना: इन तरंगों से समुद्र की गहराई तथा समुद्र में डूबी हुई चट्टानों, मछलियों तथा पनडुब्बियों की स्थितियां ज्ञात की जा सकती है। इन तरंगों के द्वारा उड़ते हुए हवाई जहाज की पृथ्वी से ऊंचाई नापी जा सकती है। 
  • सोनार (SONAR-Sound Navigation and Ranging): यह एक ऐसी विधि तथा युक्ति है जिसके द्वारा समुद्र में डूबी हुई वस्तु का पता लगाया जाता है। इसमें पहले पराश्रव्य तरंगों को समुद्र के अन्दर भेजा जाता है। ये तरंगें डूबी हुई वस्तु से परावर्तित होकर वापस लौटती है। जितने समय में ये तरंगें जाती है और वापस लौटती हैं उसे ज्ञात कर लिया जाता है।
  • उद्योगों में: आजकल इन तरंगों का उपयोग कीमती कपड़ों तथा वायुयान व घड़ियों के पुर्जी को साफ करने में तथा चिमनियों की कालिख हटाने में किया जाता है।
  • कृषि में: कुछ ऐसे छोटे-छोटे पौधे हैं जो पराश्रव्य तरंगों के डालने पर तेजी से बढ़ते हैं।
  • जीव विज्ञान तथा चिकित्सा विज्ञान में: ये तरंगें बैक्टीरिया का विनाश कर देती हैं। गठिया रोग के उपचार तथा मस्तिष्क में ट्यूमर का पता लगाने में पराश्रव्य तरंगें उपयोग में लायी जाती है।
  • अन्य उपयोगः कुछ पशु (विशेष रूप से कुत्ते) तथा पक्षी (चमगादड़) पराश्रव्य तरंगों को सुन लेते हैं इन्हें डाल्फिन भी सुन लेती हैं इस प्रकार की सीटी बनाई गई है जिसे बजाने पर पराश्रव्य तरंगें निकलती है। अत: इस सीटी को बजाने पर कुत्ता आ जाएगा परन्तु आस-पास कोई आदमी उसे नहीं सुन सकेगा। 

इस प्रकार की सीटी बजाकर पेड़ों पर से चिड़ियों को भी उड़ाया जाता है। इसे गाल्टन सीटी (Galton whistle) कहते हैं। 

उड़ते समय चमगादड़ (Bat) पराश्रव्य तरंगें उत्पन्न करता है। ये तरंगें सामने पड़ने वाली वस्तुओं से परावर्तित होकर चमगादड़ के कानों पर वापस आती हैं। इससे चमगादड़ अंधेरे में उड़ते समय पेड़ों, दीवारों तथा अन्य वस्तुओं से अपने को टकराने से बचा लेता है। 

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