Defect of Vision and their Correction
आंख के उत्तल लेन्स द्वारा किसी बाहरी बिन्दु का उल्टा प्रतिबिम्ब दृष्टिपटल पर बनता है। सामान्य आखों द्वारा अनन्त पर स्थित वस्तु को देखा जा सकता है। उसे स्पष्ट दर्शन की न्यूनतम दूरी (List distance of distinct vision) कहते हैं और इसका मान 25 सेमी. है।
निकट दृष्टि दोष (Myopia or Short Sightedness)
यदि नेत्र पास की वस्तु को देख लेता है, किन्तु एक निश्चित दूरी से अधिक दूर की वस्तु को स्पष्ट नहीं देख पाता है, तो उस नेत्र में निकट दृष्टि का दोष होता है। इस स्थिति में दूर की वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना पर न बनकर उसके आगे बनता है।
निवारण
निकट दृष्टि दोष के निवारण के लिए उपयुक्त फोकस दूरी के अवतल लेन्स का प्रयोग किया जाता है। अवतल लेन्स के प्रयोग करने से वस्तु का प्रतिबिम्ब दृष्टि-पटल पर बनने लगता है। ऐसा करने से वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिम्ब दृष्टि-पटल का बन जाता है और वस्तु स्पष्ट दिखाई देने लगती है।
दूर दृष्टि दोष (Hypermetropia or Long Sightedness)
इस दोष में नेत्र को दूर की वस्तु तो स्पष्ट दिखाई देती है, किन्तु पास की वस्तु स्पष्ट दिखाई नहीं देती। इस दोष के कारण पास की वस्तु का प्रतिबिम्ब दृष्टि-पटल पर न बनकर उसके पीछे बनता है।
निवारण
इस दोष के निवारण हेतु चश्में में एक ऐसे अभिसारी (उत्तल) लेन्स के प्रयुक्त करने की आवश्यकता होती है।
अन्य नेत्र दोष
1. दृष्टिवैषम्य (Astigmatism): इसमें नेत्र क्षैतिज व ऊर्ध्व रेखाओं को एक साथ स्पष्ट नहीं देख पाता है। इस कारण अलग-अलग समतलों में आंख में प्रवेश करने वाली किरणें दृष्टि पटल से अलग-अलग दूरियों पर फोकस होती है। इसलिए वस्तु के एक बिन्दु के रूप में होने पर भी उसके प्रतिबिम्ब की शक्ल रैखिक, वृत्ताकार अथवा बिन्दु को छोड़कर किसी दूसरी शक्ल की हो सकती है। इसके निवारण हेतु बेलनाकार लेन्स प्रयुक्त किया जाता है। इसे ‘टोरिक लेन्स‘ भी कहते हैं।
2. वर्णांधता (Colour Blindness): नेत्र किसी रंग विशेष के लिए संवेदनहीन हो जाता है। इसका कारण है रेटिना के किसी शंकु (Cone) का संवेदनहीन हो जाना। इसका अभी तक कोई उपचार नहीं है।
3. ज़रा-दृष्टि (Presbyopia): वृद्धावस्था के कारण न पास की और न दूर की वस्तुएं दिखाई देती है। यह पक्ष्माभि पेशियों के धीरे-धीरे कमजोर होने तथा सिस्टलीय लेन्स के लचीलेपन में कमी आने के कारण होता है। कभी-कभी किसी व्यक्ति के नेत्र में दोनों निकट दृष्टि तथा दीर्घ दृष्टि दोष हो सकते हैं। ऐसे व्यक्तियों को प्रायः द्विफोकसी लेन्सों (Bifocal lens) की आवश्यकता होती है।
रंग दृष्टि (Colour Vision)
रेटिना में दो प्रकार की प्रकाश संवेदी कोशिकाएं होती है – शकु (Cones) तथा छड़ (Rods)| शंकु रंग को पहचानते हैं। छड़ प्रकाश की तीव्रता को पहचानती हैं। ये धुंधले प्रकाश के प्रति अति संवेदनशील हैं, अत: अन्धेरे में भी हम कुछ-कुछ देख पाते हैं। अधिक तीव्र प्रकाश में छड़ों का कार्य बहुत कम हो जाता है, शंकु अधिक क्रियाशील हो जाते हैं।
शंकु कोशिकाएं तीन प्रकार की होती हैं—पहले प्रकार की नीले रंग के लिए, दूसरे प्रकार की हरे रंग के लिए ओर तीसरे प्रकार की लाल रंग के लिए सर्वाधिक संवेदनशील होती हैं। इनमें से कोई एक प्रकार की शंकु कोशिका दोषयुक्त होती है, तो वही रंग दिखाई नहीं देगा और तत्संगत वर्णान्धता रोग उत्पन्न हो जाएगा। वर्णान्धता प्रायः अनुवांशिक रोग है जो इलाजरहित है। युक्तियां पराबैंगनी प्रकाश को भी देख लेती हैं, लेकिन लाल प्रकाश को नहीं। प्रसिद्ध रसायन विज्ञानी जॉन डाल्टन भी वर्णान्धता रोग से पीड़ित थे।