इस आर्टिकल में हम जानेगे मानव परिसंचरण तन्त्र (Human Circulatory System in Hindi) क्या है ? जन्तुओं में परिसंचरण तन्त्र (Circulatory System in Animals) से क्या तात्पर्य है ? रुधिर परिसंचरण क्षेत्र और लसीका परिसंचरण तन्त्र क्या होते है ? हृदय (Heart) कैसे कार्य करता है ? हृदय (Heart) की संरचना और कार्य क्या है ? लसीका तंत्र (Lymphatic system in Hindi) क्या है ? आदि | साथ ही इसमें मानव परिसंचरण तन्त्र (Human Circulatory System in Hindi) सचित्र और हृदय की संरचना (सचित्र)) (Structure of Heart) के बारे में बताया गया है |
जन्तुओं में परिसंचरण तन्त्र (Circulatory System in Animals)
उच्च बहुकोशिकीय जन्तुओं में आवश्यक पदार्थों की आपूर्ति एवं अनावश्यक पदार्थों का बहिष्करण सीधे कोशिका द्वारा न होकर एक विशेष तन्त्र, जिसे परिसंचरण तन्त्र कहा जाता है, द्वारा होता है।
परिसंचरण तंत्र का अर्थ होता है, एक तत्व को एक स्थान से दुसरे स्थान तक परिवहन करना यानी परिसंचरण तंत्र यातयात का साधन है, जो रक्त का परिवहन करता है |
यह तन्त्र दो प्रकार का होता है :
खुला परिसंचरण तन्त्र (Open Circulatory System)
इसमें केशिका तन्त्र नहीं पाया जाता है। हृदय द्वारा पम्प किया गया रुधिर वाहिकाओं द्वारा सीधे निर्धारित स्थान पर पहुँचता है। इस तन्त्र में रुधिर कम दाब तथा कम वेग से बहता है। इस प्रकार का रुधिर परिसंचरण तन्त्र संघ – एनीलिडा के जन्तुओं तिलचट्टा, कीट, मछली आदि में पाए जाते हैं।
बन्द परिसंचरण तन्त्र (Closed Circulatory System)
इसमें रुधिर बंद नलिकाओं में अधिक दाब एवं वेग से बहता है। इसमें पदार्थों का आदान प्रदान ऊतक द्रव्य द्वारा होता है। यह केंचुएँ, मोलस्का एवं सभी कशेरुकियों में पाया जाता है। मनुष्य में विकसित बन्द तथा दोहरा परिसंचरण तन्त्र पाया जाता है।
मानव परिसंचरण तन्त्र (Human Circulatory System)
सर विलियम हार्वे व मारसेली मैल्पिजी ने सबसे पहले रुधिर परिसंचरण (Blood circulation) के बारे में बताया था | मनुष्य में बंद परिसंचरण तंत्र (Closed circulatory system) एवं कीटों में खुला परिसंचरण तंत्र (Open circulatory system) पाया जाता हैं | मानव रुधिर का pH 7.3 से 7.4 होता हैं. यह हल्का क्षारीय होता हैं |
मनुष्य के रुधिर परिसंचरण तन्त्र में मुख्य संवहनी पदार्थ रुधिर होता है। रक्त परिसंचरण तंत्र शरीर की सभी कोशिकाओ तक प्रयुक्त पोषक तत्व ऑक्सीजन जल तथा अन्य पदार्थो को पहुंचाता है | तथा हमारे शरीर की आंतरिक सुरक्षा करता है |

ये हमारे शरीर के pH मान को संतुलित बनाए रखता है | ये गैसे से लेकर हार्मोन तक सभी का परिवहन करता है | मनुष्य का रुधिर परिसंचरण तन्त्र दो भागों से मिलकर बना होता है।
1. रुधिर परिसंचरण क्षेत्र
2. लसीका परिसंचरण तन्त्र
हृदय (Heart)

हृदय एक मोटा, पेशीय, संकुचनशील स्वतः पम्पिंग अंग है। इसका वह भाग, जो शरीर के ऊतकों से रुधिर ग्रहण करता है, अलिन्द (auricle) कहलाता है तथा हृदय वह भाग है, जो ऊतकों में रुधिर पम्प करता है, निलय (ventricle) कहलाता है।
हृदय वक्ष गुहा (thoracic cavity)
हृदय वक्ष गुहा (thoracic cavity) में दोनों फेफड़ों के मध्य स्थित होता है।
हृदय के चारों और द्विकलायुक्त कोष पाया जाता है। यह कला पेरीकार्डियम कहलाती है। दोनों कलाओं के मध्य पेरीकार्डियल द्रव से भरी एक गुहा पाई जाती है। पेरीकार्डियल द्रव हृदय की धक्कों से सुरक्षा करता है।
मनुष्य का हृदय चार-कोष्ठीय होता है, जिसमें दो अलिन्द एवं दो निलय पाए जाते हैं। अलिन्द की दीवार पतली होती है, जबकि निलय की दीवार अपेक्षाकृत मोटी होती है |
दायाँ अलिन्द
दायाँ अलिन्द में सुपीरियर वेना कावा एवं इन्फीरियर वेना कावा से अनॉक्सीकृत रुधिर आता है। दायाँ अलिन्द, दाएँ निलय में एक चौड़े, वृत्तीय दाएँ अलिन्द निलय छिद्र (Auriculoventricular Aperture) द्वारा खुलता है, जो ट्राइकस्पिड वाल्व (Tricuspid Valve) द्वारा ढका होता है।
ट्राइकस्पिड वाल्व, दाएँ अलिन्द से दाएँ निलय की ओर रुधिर के एक दिशीय प्रवाह को नियन्त्रित करता है।
दायाँ निलय
इससे फुफ्फुस धमनी (pulmonary artery) निकल कर फेफड़ों में पहुँचती है, जिसमें अनॉक्सीकृत प्रवाहित होता है।
बायाँ अलिन्द
इससे फुफ्फुस शिरा के द्वारा फेफड़ों से ऑक्सीकृत रुधिर आता है। इनमें वाल्व अनुपस्थित होते हैं। बायाँ अलिन्द, बायाँ निलय में, बाएँ अलिन्द-निलय छिद्र द्वारा खुलता है। अलिन्द-निलय छिद्र बाइकस्पिड वाल्व अथवा मिट्रल वाल्व (mitral valve) द्वारा ढका रहता है। बाइकस्पिड वाल्व बाएँ अलिन्द से बाएँ निलय में रुधिर के विपरीत प्रवाह को रोकता है।
बायाँ निलय
इससे बड़ी रुधिर नलिका निकलती है जिसे महाधमनी (aorta) कहते हैं। महाधमनी शरीर के विभिन्न भागों में ऑक्सीकृत रुधिर प्रवाहित करती है ।

हृदय की क्रियाविधि (Mechanism of Heart)
शरीर में रुधिर का परिसंचरण हृदय की पम्प क्रिया द्वारा सम्पन्न होता है। इसमें दो अवस्थाएँ होती हैं। प्रथम प्रंकुचन (systole) की अवस्था, जिसमें निलय सिकुड़ते हैं और उनमें भरे रुधिर को महाधमनियों में पम्प करते हैं। द्वितीय अवस्था को अनुशिथिलन (diastole) कहते हैं, जिसमें निलय फैलते हैं और अलिन्द से रुधिर प्राप्त करते हैं।
एक प्रकुंचन तथा एक अनुशिथिलन मिलकर हृदय धड़कन (Heart Beat) का निर्माण करते हैं।
एक स्वस्थ्य मनुष्य का हृदय 1 मिनट में 72 बार धड़कता है, जबकि कड़ी मेहनत या व्यायाम के फलस्वरूप बढ़कर 1 मिनट में 180 बार तक हो सकता है।
हृदय की धड़कन दाहिने अलिन्द के ऊपरी भाग में स्थित ऊतकों के समूह शिरा अलिन्द नोड से शुरु होती है, इसे ही पेसमेकर (Pacemaker) कहते हैं
हृदय के भीतर संकुलन एवं अनुशीथिलन के आवेग का प्रसारण विद्युत रासायनिक तरंगों के रूप में होता है, जो शिरा- अलिन्द नोड (SAN) से प्रारम्भ होकर निलयों तक जाता है। हृदय के धड़कन के दौरान वैद्युत परिवर्तन को इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम नामक उपकरण द्वारा रिकार्ड किया जाता है, जिसे इलैक्ट्रोकार्डियोग्राफ या ECG कहते हैं।
हृदय की संरचना (सचित्र)) (Structure of Heart)

लसीका तंत्र (Lymphatic system in Hindi)
लसिका वाहिनियों में लसिका बहती हैं जिसका कार्य कोशिका एवं रुधिर के मध्य पदार्थों के विसरण में सहायता पहुचाना एवं रुधिर से विसरित प्रोटीन एवं श्वेत रक्त कणिकाओं को वापिस रुधिर तक ले जाना हैं | इनका संचरण हमेशा ऊतकों से ह्रदय की ओर ही होता हैं |
लसिका वाहिनियाँ शिराओं में जाकर खुलती हैं | इन वाहिनियों के मार्ग में मुख्यतः गले, बगल, जांघ एवं पेट आदि में लसिका ग्रंथियां होती हैं इन ग्रंथियों में लिम्फोसाइटस एकत्रित रहती हैं | लसिका ग्रंथियां हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधकता में प्रमुख भूमिका निभाती हैं |
ह्रदय की धड़कन को पेसमेकर नियंत्रित करता हैं.
एक स्वस्थ वयस्क का रक्त दाब लगभग 120/90 होता हैं ह्रदय के प्रकुचन (Systole) के समय दाब अधिकतम होता हैं और शिथिलन (Diastole) के समय निम्नतम रहता हैं |
ह्रदय व धमनी सम्बन्धी रोग (Heart and artery disease)
आस्टियो क्लोरोसिस (Osteosclerosis) – धमनी की दीवारों का अपेक्षाकृत कठोर हो जाना
उच्च रुधिर दाब (High Blood Pressure)
थम्बोसिस (Thrombosis) – इसमें रुधिर वाहिका के भीतर रुधिर का धक्का जम जाता हैं.
ह्रदय मरमर – कई बच्चों में ह्रदय सामान्य परिवर्धित नही होता हैं | और शुद्ध व अशुद्ध रुधिर मिल जाते हैं | या निलय से आलिंद में रुधिर टपकने लगता हैं | जिसे ह्रदय मरमर कहते हैं |
ह्रदयाघात (Heart attack) – रुधिर वाहिका (धमनियों) में कोलिस्टरोल (cholesterol) जम जाने से रक्त प्रवाह में रुकावट आ जाती हैं और ह्रदय के कार्य करने में रुकावट हो जाती हैं. इससे व्यक्ति की मृत्यु तक हो जाती हैं |
हृदय से जुड़े महत्वपुर्ण तथ्य (Smart facts about Heart)
- मछलियों में केवल दो-कोष्ठीय हृदय पाया जाता है जिसमें एक अलिन्द एवं एक निलय होता है।
- सरीसृपों के हृदय संरचना में तीन कोष्ठीय तथा कार्य में चार-कोष्ठीय (four-chambered) होता है।
- पक्षियों एवं स्तनियों में हृदय चार कोष्ठीय होता है, जिसमें दो अलिन्द एवं दो निलय होते हैं।
- पुरुषों में हृदय का औसत वजन 280-340 ग्राम तथा महिलाओं में 230-380 ग्राम होता है।
- पहली हृदय ध्वनि लब आलिन्द निलय कपाट के बन्द होने के कारण जबकि द्वितीय हृदय ध्वनि डप अर्द्धचन्द्राकार कपाटों के अचानक बाद होने के कारण होती है।
- दो हृदय ध्वनियों के बीच मरमर की ध्वनि किसी कपाट के खराब होने पर रूधिर के टपकने के कारण होती है।
- आरटीरियोस्क्लेरोसिस (arteriosclerosis) में धमनी की भित्ती में कोलेस्ट्राल जम जाने के कारण भित्तियाँ कठोर हो जाती है।
रुधिर (Blood)
यह लाल संवहनी (vascular) संयोजी ऊतक है, जिसमें हीमोग्लोबिन, हीमोसायिक प्लाज्मा प्रोटीन आदि उपस्थित होते हैं।
रुधिर नलिकाएँ (Blood Vessels)
रुधिर नलिकाएँ तीन प्रकार की होती हैं :
1. धमनियाँ (Arteries)
मोटी भित्तियुक्त रुधिर नलिकाएँ, जो रुधिर को हृदय से विभिन्न अंगों में पहुँचाती हैं। ये शरीर में गहराई में स्थित होती है तथा इनमें वाल्व का अभाव होता है। फुफ्फुस धमनी के अतिरिक्त सभी धमनियों में ऑक्सीकृत रुधिर प्रवाहित होता है। सभी धमनियों में रुधिर अधिक दाब एवं अधिक गति से बहता है।
2. शिराएँ (Veins)
ये पतली भित्ति वाली रुधिर नलिकाएँ हैं, जो विभिन्न अंगों से रुधिर को हृदय तक ले जाती है। ये शरीर में अधिक गहराई में नहीं होती तथा इनमें रुधिर की विपरीत गति को रोकने हेतु वाल्व पाए जाते हैं। इनमें रुधिर कम दाब एवं कम गति से बहता है। फुफ्फुस शिरा के अतिरिक्त सभी शिराओं में अनॉक्सीकृत रुधिर प्रवाहित होता है।
3. वाहिनियाँ (Capillaries)
ये सबसे पतली रुधिर नलिकाएँ हैं, जो धमनियों को शिराओं से जोड़ती हैं। प्रत्येक वाहिनी चपटी कोशिकाओं की एक परत से बनी होती है। ये पोषक पदार्थों, वर्ज्य पदार्थों, गैस आदि का रुधिर एवं कोशिका के मध्य आदान-प्रदान करने में सहायक हैं।
मानव परिसंचरण तन्त्र (Human Circulatory System in Hindi) सचित्र

समीपस्थ संवलित नलिका (Proximal Convoluted Tubule-PCT)
सरल घनाकार ब्रुश बॉर्डर उपकला से बनी यह नलिका अवशोषण के लिए सतह क्षेत्र को बढ़ाती है। सभी आवश्यक पोषक 70-80% वैद्युत अपघट्य और जल का पुनः अवशोषण इसी भाग द्वारा होता है। यह pH तथा आयनी सन्तुलन को बनाए रखने का लिए अमोनिया का निस्यन्द में स्रवण और HCO3 का पुनरावशोषण करती है।
ग्लोमेरुलस में रुधिर लाने वाली अभिवाही धमनिका (afferent arteriole)
अपवाही धमनिका (efferent arteriole) की अपेक्षा अधिक चौड़ी होती है। इस असामनता के फलस्वरूप गतिरोध उत्पन्न होता है। गतिरोध के कारण ग्लोमेरुलस की रुधिर केशिकाओं में रुधिर दाब काफी बढ़ जाने से रुधिर का प्लाज्मा छनकर (ग्लोमेरूलर निस्यन्द या नेफ्रिक निस्यन्द) बोमैन सम्पुट में आ जाता है।
हेनले लूप (Loop of Henle)
न्यूनतम पुनरावशोषण होता है। हेनले लूप की अवरोही भुजा जल के लिए पारगम्य होती है, परन्तु वैद्युतअपघट्य के लिए लगभग अपारगम्य होती है। आरोही भुजा जल के लिए अपारगम्य होती है। अवरोही शाखा में अन्तराकाशी द्रव की बढ़ी समसान्द्रता के कारण जल का पुनरावशोषण होता है। यहाँ पर निस्यन्द प्लाज्मा से अतिपरासारी बन जाता है। आरोही शाखा Na+, K+, Ca+2, Mg+2 तथा CI– का पुनरावशोषण होता है।
दूरस्थ संवलित नलिका (Distal Convoluted Tubule-DCT)
विशिष्ट परिस्थितियों में Na+ और जल का कुछ पुनरावशोषण रुधिर में सोडियम-पोटैशियम का सन्तुलन तथा pH बनाए रखने के लिए बाइकार्बोनेट्स का पुनरावशोषण एवं H+, K और NH3 का चयनात्मक स्रावण होता है।
संग्रह नलिका (Collecting Tubule)
मूत्र को सान्द्र करने के लिए जल का बड़ा हिस्सा इस भाग में अवशोषित किया जाता है। यह pH के नियमन तथा H+ व K+ आयनों के चयनात्मक स्रवण का कार्य करती है।
मूत्र का संघटन
24 घण्टे में 1-1.8 लीटर मूत्र का उत्सर्जन
रंग = पीला (यूरोक्रोम)
pH = 6.0
विशिष्ट घनत्व = 1.015-1.02 गन्ध का कारण = यूरीनोड
जल = 95%
यूरिया = 2.6%, यूरिक अम्ल = 0.03%, अमोनिया = 0.25%, लवण = 2%
मूत्र में अनियमितता (Abnormality in Urine)
(i) प्रोटीन यूरिया – मूत्र में प्रोटीन की उपस्थिति
(ii) एल्ब्यूमिनयूरिया – मूत्र में एल्ब्यूमिन की उपस्थिति
(ii) यूरेमिया – मूत्र में अत्यधिक यूरिया का पाया जाना
(iv) हीमेट्यूरिया – मूत्र में रुधिर का पाया जाना
(v) पाइयूरिया – मूत्र में WBCs या मवाद (pus) का पाया जाना
(vi) हीमोग्लोबिनयूरिया – मूत्र के साथ हीमोग्लोबिन का त्याग
(vi) कीटोन्यूरिया – मूत्र में कीटोन बॉडीज (vill) ग्लाइकोसूरिया – मूत्र में ग्लूकोस