What is Nuclear Fission ?
जब किसी अस्थायी भारी नाभिक पर उच्च ऊर्जा वाले न्यूट्रॉन की बमबारी की जाती है, तो वह लगभग समान द्रव्यमान वाले दो नाभिकों में विभक्त हो जाता है। इस प्रक्रिया को ‘नाभिकीय विखण्डन’ कहा जाता है।
यूरेनियम-235 का नाभिकीय विखण्डन अनेक प्रकार से हो सकता है, उनमें से एक नाभिकीय अभिक्रिया निम्न प्रकार है:

श्रृंखला अभिक्रिया (Chain Reaction)
यदि बहुत अधिक यूरेनियम-235 के परमाणु उपलब्ध हों, तो नाभिकीय विखण्डन एक श्रृंखला अभिक्रिया बन जाती है। यूरेनियम-235 पर जब मन्द गति वाले न्यूट्रॉनों की बमबारी की जाती है, तो U-235 परमाणु एक न्यूट्रॉन को अवशोषित (Absorb) कर लेता है जिससे U-236 का अस्थायी परमाणु बन जाता है। U-236 का नाभिक अत्यधिक अस्थायी होने के कारण तुरन्त दो खण्डों में विभक्त हो जाता है और प्राय: 3 न्यूट्रॉन तथा बहुत अधिक ऊर्जा मुक्त होती है। इस क्रिया में निर्मुक्त न्यूट्रॉनो में से माना दो न्यूट्रॉन दूसरे दो U-235 परमाणुओं का विखण्डन करते है जिससे पहले से अधिक ऊर्जा और लगभग 6 न्यूट्रॉन मुक्त होते हैं। माना इनमें से 4 न्यूट्रॉन दूसरे चार U-235 परमाणुओं का विखण्डन करते हैं जिससे और अधिक ऊर्जा एवं लगभग 12 न्यूट्रॉन मुक्त होते हैं। इस प्रकार यह क्रिया अपने-आप आगे बढ़ती रहती है और अभिक्रियाओं की एक श्रृंखला बन जाती है। प्रथम विखण्डन क्रिया प्रारम्भ होने के पश्चात् बाहर से न्यूट्रॉनों की बमबारी करना आवश्यक नहीं है, क्योंकि अभिक्रिया में उत्पन्न हुए न्यूट्रॉन (मन्दित होकर) विखण्डन अभिक्रिया को स्वयं आगे बढ़ाते रहते हैं। इसे ही ‘श्रृंखला अभिक्रिया’ कहते हैं।
यह अभिक्रिया भी दो प्रकार की बनाई जा सकती है—अनियन्त्रित तथा नियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया।
परमाणु बम (Atom Bomb)
नाभिकीय विखण्डन क्रिया पर जब किसी प्रकार का नियन्त्रण नहीं होता है, तो विखण्डन क्रिया की दर बहुत तीव्र होती है जिस कारण कुछ ही क्षणों में प्रचण्ड विस्फोट हो जाता है। परमाणु बम में अनियन्त्रित विखण्डन क्रिया होती है। प्रथम परमाणु बम सन् 1945 में बनाया गया था।
द्वितीय विश्वयुद्ध में प्रथम परमाणु बम का विस्फोट 6 अगस्त, 1945 को जापान में हिरोशिमा पर और इसके तीन दिन बाद ही दूसरा परमाणु-विस्फोट जापान में ही नागासाकी पर किया गया था।
समृद्धित यूरेनियम (Enriched Uranium)
परमाणु बम के निर्माण में पर्याप्त यूरेनियम-235 की आवश्यकता होती है परन्तु प्राकृतिक यूरेनियम में केवल 0.7% ही यूरेनियम-235 होता है शेष यूरेनियम-238 होता है जिसका विखण्डन मन्द न्यूट्रॉनों द्वारा नहीं होता है। अतः प्राकृतिक यूरेनियम से यूरेनियम-235 अलग किया जाता है। वह यूरेनियम जिसमें विखण्डनीय यूरेनियम-235 की प्रचुर मात्रा होती है उसे ‘समृद्धित यूरेनियम’ कहते हैं।
नाभिकीय रिएक्टर (Nuclear Reactor)
नियन्त्रित नाभिकीय शृंखला उत्पन्न करने के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले रिएक्टर को ‘नाभिकीय रिएक्टर या परमाणु भट्टी‘ कहा जाता है। इसमें यूरेनियम-235 का नियन्त्रित विखण्डन कराया जाता है। विखण्डन में निकलने वाली ऊर्जा अधिकांशतः ऊष्मीय ऊर्जा के रूप में होती है जिससे पानी को गर्म करके भाप बनाई जाती है। इस भाप द्वारा टरबाइन चलाकर विद्युत उत्पन्न की जाती है। प्रथम नाभिकीय रिएक्टर वैज्ञानिक ऐनरिको फर्मी के निर्देशन में अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय में सन् 1942 में बनाया गया था।
नाभिकीय रिएक्टर के पांच भाग होते हैं:
नाभिकीय ईंधन (Nuclear Fuel) : यह रिएक्टर का मुख्य भाग होता है। इसमें विखण्डनीय (Fissile) पदार्थ होता है। यह प्रायः समृद्धित यूरेनियम होता है।
मन्दक (Moderator) : यह विखण्डन अभिक्रिया में उत्पन्न तीव्र न्यूट्रॉनों को मन्दित करता है। इसके लिए प्रायः ग्रेफाइट या भारी जल (Heavy water) का उपयोग किया जाता है। ड्यूटेरियम ऑक्साइड (D2O) को भारी जल कहते है l इस प्रकार के जल का घनत्व साधारण जल के घनत्व से लगभग 10% अधिक होता है। भारी जल को सबसे अच्छा मंदक माना जाता है।
नियन्त्रक छड़ें (Control Rods) : विखण्डन की श्रृंखला अभिक्रिया को नियन्त्रण में रखने के लिए कैडमियम या बोरॉन की लम्बी छड़ों का उपयोग किया जाता है जिनकी कुछ लम्बाई को रिएक्टर के विखण्डन कक्ष (Fission chamber) के अन्दर तथा कुछ को बाहर रखा जाता है। ये छड़ें विखण्डन में उत्पन्न होने वाले न्यूट्रॉनों को अवशोषित कर लेती हैं, अत: विखण्डन की श्रृंखला रुक जाती है।
शीतलक (Coolant): नाभिकीय विखण्डन के दौरान बड़ी मात्रा में ऊष्मा निर्मुक्त होती है, जिसे ठण्डा करना आवश्यक होता है। इस निर्मित रिएक्टर में वायु, जल और कार्बन डाइऑक्साइड प्रवाहित किए जाते हैं। इस ऊष्मा का उपयोग वाष्प निर्माण में किया जाता है जिससे टरबाइन चलाकर विद्युत उत्पादित की जाती है।
परिरक्षक (Protector) : नाभिकीय विखण्डन के दौरान कई प्रकार की उच्च शक्ति और भेदन क्षमता वाली किरणें निकलती हैं। इन किरणों से रक्षा के लिए रिएक्टर के चारों ओर कंक्रीट की मोटी-मोटी दीवारों का निर्माण किया जाता है, जिसे ‘परिरक्षक’ कहा जाता है। भारत तथा अन्य कई देशों में नाभिकीय रिएक्टरों का उपयोग विद्युत उत्पादन के लिए किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त रिएक्टर से रेडियोऐक्टिव समस्थानिक (Radioactive isotopes) भी प्राप्त होते हैं। रिएक्टर द्वारा यूरेनियम-238 को विखण्डन-योग्य (Fissile) तत्व प्लूटोनियम-239 में भी परिवर्तित किया जाता है और तब उसे परमाणु बम के निर्माण में प्रयुक्त किया जा सकता है।
ब्रीडर रिएक्टर (Breeder Reactor)
ऐसा रिएक्टर जो प्रयुक्त किए गए विखण्डनीय पदार्थ की तुलना में अधिक विखण्डनीय पदार्थ उत्पन्न करता है, ‘ब्रीडर रिएक्टर’ कहलाता है अर्थात् इसमें प्रयुक्त पदार्थ ही और अधिक मात्रा में उत्पन्न किया जाता है। प्रारम्भ में प्लूटोनियम-239 द्वारा समृद्धित यूरेनियम-238 का अथवा थोरियम-232 का उपयोग किया जाता है, उसके पश्चात् यूरेनियम-238 में एक न्यूट्रॉन संयुक्त हो जाने से प्लूटोनियम-239 प्राप्त होता है और थोरियम-232 से यूरोनियम-233 प्राप्त होता है।