What is Nucleus ?
नाभिक एक परमाणु का केंद्र कोर होता है जिसमें धनात्मक आवेश होता है और जिसमें परमाणु का अधिकांश द्रव्यमान, या किसी संगठन या समूह का केंद्रीय हृदय (Central Heart of an Organization or Group) होता है।
नाभिक में प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन कण होते हैं।
नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या को ‘परमाणु क्रमांक’ (Atomic number) कहते हैं।
नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों तथा न्यूटॉनों की कुल संख्या को परमाणु की ‘द्रव्यमान संख्या’ (Mass number) कहते हैं। पदार्थ की रचना परमाणुओं से होती है परन्तु परमाणु भी कुछ मूल कणों से बना होता है।
प्रोटॉन, न्यूट्रॉन व इलेक्ट्रॉन तो प्रचलित मूल कण हैं ही, इनके अतिरिक्त भी अनेक मूल कण हैं। प्रत्येक मूल कण का प्रति कण (Antiparticle) भी होता है। कुछ प्रमुख मूल कणों का विवरण निम्नलिखित है:
इलेक्ट्रॉन (Electron)
इलेक्ट्रॉन की खोज 1897 में अंग्रेज वैज्ञानिक जे. जे. थॉमसन ने कैथोड किरणों के रूप में की। इलेक्ट्रॉन अतिसूक्ष्म कण होते है तथा ये परमाणु में नाभिक के बाहर चारों ओर चक्कर लगाते हैं। इन पर 1.6 x 10-19 कूलॉम का ऋणात्मक आवेश होता है। इनका द्रव्यमान 9.1 x 10-31 किग्रा. होता है। यह एक स्थायी (Stable) मूल कण है ।
प्रोटॉन (Proton)
प्रोटॉन की खोज अंग्रेज वैज्ञानिक रदरफोर्ड ने सन् 1919 में नाइट्रोजन नाभिकों पर कणों का प्रहार करके की। प्रोटॉन का द्रव्यमान 1.67239 x 10-27 किग्रा. होता है और आवेश 1.6x 10-19 कूलॉम धनात्मक होता है। यह एक अतिसूक्ष्म कण है। इसका उपयोग कृत्रिम तत्वान्तरण (Artificial transmutation) में होता है।
न्यूट्रॉन (Neutron)
न्यूट्रॉन की खोज अंग्रेज वैज्ञानिक चैडविक ने सन् 1932 में बेरेलियम पर a कणों का प्रहार करके की। यह एक आवेश रहित कण है। इसका द्रव्यमान 1.675 x x 10-27 किग्रा. होता है। इसकी भेदन-क्षमता (Penetrating power) अत्यधिक होती है। यह कैंसर की चिकित्सा और नाभिकीय विखण्डन (Nuclear fission) में प्रयुक्त किया जाता है।
पोजिट्रॉन (Positron)
यह एक धनावेशित मूल कण है जिसका द्रव्यमान व आवेश इलेक्ट्रॉन के बराबर होता है। इसलिए इसे इलेक्ट्रॉन का प्रतिकण या ऐण्टि-कण (Anti-particle) भी कहते हैं। इसकी खोज 1932 में एण्डरसन (Anderson) ने की थी।
न्यूट्रिनों (Neutrino)
ये लगभग द्रव्यमान रहित व आवेश रहित मूल कण हैं। इनकी खोज 1930 में पाउली (Pauli) ने की थी। न्यूट्रिनों का भी प्रतिकण होता है जिसे ‘ऐण्टिन्यूट्रिनों’ कहते हैं। इन दोनों में अन्तर केवल इतना ही है, कि ऐण्टिन्यूट्रिनों की स्पिन (Spin) न्यूट्रिनों की स्पिन के विपरीत होती है l
पाई-मेसॉन (π-Meson)
पाई-मेसॉन मूल कणों की सैद्धान्तिक खोज सन् 1935 में वैज्ञानिक युकावा ने की थी। ये कण तीन प्रकार के होते हैं — उदासीन (π०), धनात्मक (π+), ऋणात्मक (π–) पाई-मेसॉन। ये अस्थायी कण होते हैं। इनका जीवन काल 10-8 सेकण्ड व द्रव्यमान इलेक्ट्रॉन के द्रव्यमान का लगभग 274 गुना होता है।
फोटॉन (Photon)
फोटॉन ऊर्जा के बण्डल (Packets) होते है जो प्रकाश की चाल से चलते हैं। सभी प्रकार की विद्युत-चुम्बकीय किरणों का निर्माण इन्हीं मूल कणों से होता है। इनका विराम द्रव्यमान (Rest mass) शून्य होता है।
कुछ नाभिक दूसरों की अपेक्षा अधिक स्थायी होते हैं। नाभिक में प्रोटॉनों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ उनके मध्य प्रतिकर्षण बल भी बढ़ जाता है जिससे नाभिक के टूटने का खतरा पैदा हो जाता है। जिन नाभिकों में प्रोटॉनों (या न्यूटॉनों) की संख्या 2, 8, 14, 20, 50, या 82 होती है, वे स्थायी होते हैं। इसके अतिरिक्त जिन नाभिकों में प्रोटॉन संख्या 114 होती है, वे भी स्थायी होते हैं । इसी प्रकार जिन नाभिकों में न्यूट्रॉनों की संख्या 126 या 184 होती है, वे भी स्थायी होते हैं।
अतः न्यूट्रॉन संख्या N या प्रोटॉन संख्या Z के मान 2, 8, 14, 20, 50 तथा 82 ‘स्थायित्व संख्याएं’ (Magic numbers) कहलाते हैं।
ऐक्टिवता (Activity)
एक या अधिक नाभिकों के किसी नमूने (Sample) की कुल क्षमता दर (Rate of decay) उस नमूने की ‘सक्रियता’ या ‘ऐक्टिवता’ कहलाती है। इसका (SI) मात्रक ‘बेकेरल’ (Baquerrel) है।