किसी वस्तु पर आरोपित बल और बल के कार्य करने के समय के गुणनफल को उस बल का आवेग’ कहा जाता है जो वस्तु के संवेग के परिवर्तन के बराबर होता है। आवेग एक सदिश राशि है जिसका मात्रक ‘न्यूटन सेकण्ड’ (Ns) होता है तथा इसकी दिशा वही होती है जो बल की होती दैनिक जीवन में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जबकि किसी वस्तु को आवेग देने के लिए एक बड़ा बल बहुत थोड़े समयान्तराल के लिए लगाया जाता है, जैसे बल्ले द्वारा क्रिकेट की गेंद पर चोट मारकर गेंद को दूर भेजना, छड़ी द्वारा पिंग-पोंग की गेंद को पाले में भेजना, हथौड़े द्वारा कील ठोकना, इत्यादि।
उदाहरण
खिलाड़ी क्रिकेट की गेंद का ‘कैच’ लेते समय अपना हाथ पीछे खींचता है। इसका कारण है, कि जब खिलाड़ी गेंद को रोक लेता है तो गेंद का संवग शून्य हो जाता है। संवेग-परिवर्तन के लिए खिलाड़ी गेंद को जितने अधिक समय में रोकेगा, आवेग देने के लिए उसे ङ्केउता ही काम बला लगाना पड़ेगा।
इसलिए वह गंद के अंगुलियों के बीच में आते ही अपना हाथ पीछे की ओर खींचता है जिससे कि वह गेंद पर अधिक समय तक बल लगा सके। यदि वह अपने हाथ को पीछे नहीं खींचे तो गेंद हथेली से टकराकर तुरन्त ही ठहर जाएगी अर्थात् उसका संवेग यकायक शून्य हो जाएगा। अत: खिलाड़ी को बहुत अधिक बल लगाना पड़ेगा जिससे उसके हाथ में चोट आने का भय रहेगा।
यदि हम कुछ ऊंचाई से पक्के फर्श पर कूद जाएं तो फर्श द्वारा हमारे पैर को दिए गए आवेग के कारण हमारा संवेग ‘यकायक’ शून्य हो जाएगा। यह आवेग एक बड़े बल का होगा जिसके कारण हमारे पैर में चोट आ जाएगी। परन्तु यदि हम फर्श पर मिट्टी अथवा गद्दा बिछा लें तो हमारे पैर उसमें धंसेंगे (अर्थात् धीरे-धीरे गढ़ेंगे) तथा संवेग के शून्य होने में कुछ देर लगेगी। अतः अब हमारे पैर को उतना ही आवेग एक छोटे बल से मिलेगा जिससे कि पैर में चोट नहीं आएगी। यही कारण है, कि कुश्ती लड़ने के अखाड़ों में पोली मिट्टी भरी जाती है।