यदि कणों के किसी समूह या निकाय (System) पर कोई बाह्य बल नहीं लग रहा हो तो उस निकाय का कुछ संवेग नियत रहता है, अर्थात् संरक्षित रहता है।’ इस कथन को ही ‘संवेग-संरक्षण का नियम’ कहते हैं अर्थात् एक वस्तु में जितना संवेग परिवर्तन होता है, दूसरी में उतना ही संवेग विपरीत दिशा में हो जाता है।
अर्थात किसी पृथक व्यवस्था (आइसोलेटेड सिस्टम) में दो पिंड टकराएँ, तो उस व्यवस्था का कुल संवेग टकराव के पहले तथा टकराव के बाद संरक्षित (conserved) रहेगा। टकराव के पहले अगर दोनों पिंडों के वेग v1 और V1 है तथा टकराने के बाद v2 और V2, तब
mv1 + MV1 = mv2 + MV2
जहाँ m और M दोनों पिंडों के वज़न हैं।
क्योंकि संवेग एक वेक्टर मात्रा है, यह परिमाण (मैग्नीट्यूड) तथा दिशा (डायरेक्शन) दोनों में संरक्षित रहता है।
संवेग बनता या नष्ट नहीं होता। उसका बस एक पिंड से दूसरे पिंड में स्थानांतरण हो जाता है।
उदाहरण के लिय जब कोई गाड़ी किसी दीवार से भिड़ जाती है तो गाड़ी रुक जाती है और दीवार भी वही रहती है। ऐसे में गाड़ी का संवेग नष्ट नहीं होता। बल्कि वह दीवार के अणुओं और धरती में समा जाता है और धरती उस दिशा में और तेज़ी से घूमती है।
उदाहरण : जब बन्दूक से गोली छोड़ी जाती है तो वह अत्यधिक वेग से आगे की ओर बढ़ती है, जिससे गोली में आगे की दिशा में संवेग उत्पन्न हो जाता है। गोली भी बन्दूक को प्रतिक्रिया बल के कारण पीछे की ओर ढकेलती है, जिससे उसमें पीछे की ओर संवेग उत्पन्न जाता है। चूँकि बन्दूक का द्रव्यमान गोली से अधिक होता है, जिससे बन्दूक के पीछे हटने का वेग गोली के वेग से बहुत कम होता है। यदि दो एकसमान गोलियाँ भारी तथा हल्की बन्दूकों से अलग–अलग दागी जाएँ तो हल्की बन्दूक अधिक वेग से पीछे की ओर हटेगी, जिससे चोट लगने की सम्भावना अधिक होती है। रॉकेट के ऊपर जाने का सिद्धान्त भी संवेग संरक्षण पर आधारित होता है। रॉकेट से गैसें अत्यधिक वेग से पीछे की ओर निकलती हैं तथा रॉकेट को ऊपर उठाने के लिए आवश्यक संवेग प्रदान करती हैं।