महान अंग्रेज वैज्ञानिक सर आइजक न्यूटन (1642-1727) ने गति के अध्ययन के आधार पर गति के तीन नियमों को 1679 ई. में प्रतिपादित किया जो यान्त्रिकी (Mechanics) के आधारी नियम हैं।
प्रथम नियम (First Law)
इस नियम के अनुसार, ‘यदि कोई वस्तु विराम अवस्था में है, तो वह विराम अवस्था में ही रहेगी और यदि यह एकसमान चाल से सीधी रेखा में चल रही है, तो वैसे ही चलती रहेगी. जब तक कि उस पर कोई बाह्य बल (Force) लगाकर उसकी वर्तमान अवस्था में परिवर्तन न किया जाए।’ इसे ‘गैलीलियो का नियम’ भी कहते हैं।
न्यूटन के प्रथम नियम को ‘जड़त्व का नियम (Law of Inertia) भी कहते हैl
जड़त्व (Inertia)
प्रत्येक वस्तु में अपनी विरामावस्था अथवा सरल रेखा में एकसमान गति की अवस्था बनाए रखने की प्रवृत्ति पाई जाती है। वस्तु के इस प्रकृति को जड़त्व कहते हैं। जड़त्व के कारण वस्तु अपने वेग में परिवर्तन होने से रोकता है।
जड़त्व दो प्रकार का होता है:
1. विराम का जड़त्व (Inertia of Rest): यदि कोई वस्तु विराम अवस्था में है, तो वह सदैव विराम में ही रहेगी जब तक कि उस पर कोई बाह्य बल लगाकर उसी विराम की अवस्था को बदल नहीं दिया जाता ।
2. गति का जड़त्व (Inertia of Motion): यदि कोई वस्तु एकसमान चाल से सीधी रेखा में चल रही है, तो वह वैसे ही चलती रहेगी जब तक कि उस पर कोई बाह्य बल लगाकर उसकी गति की अवस्था को बदल नहीं दिया जाता। इस प्रकार, बल वह बाह्य कारक है जिसके द्वारा किसी वस्तु की विराम अथवा गति की अवस्था में परिवर्तन किया जाता है। अत: प्रथम नियम हमें बल की एक परिभाषा प्रदान करता है।
जड़त्व के कुछ उदाहरण (Some Important Examples of Inertia):
(i) चलती हुई मोटरकार के अचानक रुकने पर उसमें बैठे यात्री आगे की ओर झुक जाते हैं मोटरकार के रुकने पर उसका फर्श तथा उस पर टिके यात्रियों के पैर तुरन्त ठहर जाते हैं परन्तु शरीर का शेष भाग जड़त्व के कारण अभी गतिशील रहता है इसलिए यात्री आगे की ओर झुक जाते हैं।
(ii) चलती हुई गाड़ी पर चढ़ने वाले यात्री के पैर गाड़ी पर चढ़ते ही गतिशील हो जाते हैं परन्तु शरीर अभी विराम अवस्था में ही रहता है जिसके कारण यात्री पीछे की ओर गिर पड़ता है। अत: चलती गाड़ी पर चढ़ने से पहले यात्री को कुछ दूर गाड़ी की दिशा में दौड़ना चाहिए।
न्यूटन का गति का दूसरा नियम (Newton’s Second Law of Motion)
किसी वस्तु के संवेग-परिवर्तन की दर उस वस्तु पर आरोपित बल के अनुक्रमानुपाती होती है तथा संवेग-परिवर्तन आरोपित बल की दिशा में ही होता है। यदि वस्तु पर बाह्य बल न लगाया जाए तो वस्तु में त्वरण भी उत्पन्न नहीं होगा। त्वरण के शून्य होने का अर्थ है, कि वस्तु या तो विराम अवस्था में ही रहेगी या ‘नियत’ वेग से चलती रहेगी। इस प्रकार, न्यूटन का पहला नियम (गैलीलियो का नियम) दूसरे नियम का ही एक अंग है।
न्यूटन का गति का तृतीय नियम (Newton’s Third Law of Motion)
इस नियम के अनुसार, ‘प्रत्येक क्रिया के बराबर, परन्तु विपरीत दिशा में, प्रतिक्रिया होती है।’न्यूटन के तृतीय नियम को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है क्रिया-प्रतिक्रिया बराबर तथा विपरीत दिशा में होता है। अत: न्यूटन के तृतीय नियम को ‘क्रिया-प्रतिक्रिया का नियम’ भी कहा जाता है। इस नियम के सम्बन्ध में दो बातें महत्त्वपूर्ण हैं -एक तो यह कि हम नहीं कह सकते कि कौन बल क्रिया है और कौन प्रतिक्रिया। दूसरे क्रिया तथा प्रतिक्रिया बल सदैव दो भिन्न-भिन्न वस्तुओं पर कार्य करते हैं, एक पर नहीं। इसलिए वे एक-दूसरे को निरस्त (Cancel) नहीं कर सकते हैं।
न्यूटन का गति का तृतीय नियम के उदाहरण
सूर्य पृथ्वी को खींचता है, पृथ्वी भी सूर्य को अपनी ओर उसी बल से खींचती है। पृथ्वी चन्द्रमा को अपनी ओर खींचती है, चन्द्रमा भी पृथ्वी को अपनी ओर उसी बल से खींचता है। चन्द्रमा के इस खिंचाव के कारण ही समुद्र में ज्वार भाटे (Tides) आते हैं।
रॉकेट में किसी ज्वलनशील पदार्थ को जलाकर गैसें उत्पन्न की जाती हैं, जो नीचे की ओर अत्यन्त तीव्र वेग से एक जेट के रूप में निकलती है। ये गैसें रॉकेट पर ऊपर की ओर प्रतिक्रिया बल लगाती हैं जिससे रॉकेट ऊपर उठ जाता है। गैस के जेट का वेग जितना अधिक होता है रॉकेट भी ऊपर की ओर उतने ही अधिक वेग से उठता है।