कम्पन करने वाले कण जब अपनी साम्य स्थिति (या मध्यमान स्थिति) में होता है, तो उस पर नेट बल शून्य कार्य करता है तथा कण विराम अवस्था में होता है, किन्तु जब कण को साम्य स्थिति से विस्थापित कर दिया जाता है, तो उस पर एक ऐसा बल कार्य करने लगता है जो सदैव साम्य स्थिति की ओर दिष्ट होता है।
इस बल को ‘प्रत्यानयन की ओर दिष्ट होता है। इस बल को ‘प्रत्यानयन बल’ कहते हैं। इस बल का प्रयास सदैव यही होता है, कि कण साम्य स्थिति में आ जाए। इस बल के कारण ही कण में त्वरण उत्पन्न होता है और वह दोलन करता है।