विकिरण (Radiation)
ऊष्मा संचरण की इस विधि में माध्यम कोई भाग नहीं लेता है। इस विधि में ऊष्मा, गरम वस्तु से ठण्डी वस्तु की ओर बिना किसी माध्यम की सहायता के (अर्थात् निर्वात में भी) तथा बिना माध्यम को गरम किए प्रकाश की चाल में सीधी रेखा में संचरित होती है।
उदाहरण
पृथ्वी पर सूर्य से ऊष्मा विकिरण विधि द्वारा ही प्राप्त होती है। सूर्य तथा पृथ्वी के बीच बहुत अधिक स्थान में कोई भी माध्यम नहीं है तथा निर्वात फैला हुआ है, अत: चालन अथवा संवहन की विधि से ऊष्मा पृथ्वी तक नहीं आ सकती है (क्योंकि इनके लिए माध्यम आवश्यक है)। माध्यम की अनुपस्थिति में ऊष्मा पृथ्वी तक विकिरण द्वारा प्रकाश तरंगों के साथ पहुंचती है। विकिरण में ऊष्मा, तरंगों के रूप में चलती है जिन्हें ‘विद्युत-चुम्बकीय तरंगे’ कहते हैं।
उपयोग
- चाय की केतली की बाहरी सतह चमकदार बनायी जाती है: चमकदार सतह न तो बाहर से ऊष्मा का अवशोषण करती है और न भीतर की ऊष्मा बाहर जाने देती है। अत: चाय देर तक गर्म बनी रहती है।
- प्रयोगशाला में ऊष्मामापी की बाहरी सतह को, इंजन में भाप की नलियों को तथा गर्म जल ले जाने वाले पाइपों की बाहरी सतहों को पॉलिश द्वारा चमकदार बनाकर विकिरण द्वारा होने वाले ऊष्मा-ह्रास (Heat-loss) को घटाया जाता है।
- पॉलिश किए हुए जूते धूप में शीघ्र गर्म नहीं होते क्योंकि वे अपने ऊपर गिरने वाली ऊष्मा का अधिकांश भाग परावर्तित कर देते हैं।
- रेगिस्तान दिन में बहुत गरम तथा रात में बहुत ठण्डे हो जाते हैं: रेत ऊष्मा का अवशोषक है, अत: दिन में सूर्य की ऊष्मा को अवशोषित करके गर्म हो जाता है। रात में वह अपनी ऊष्मा को विकिरण द्वारा खोकर ठण्डा हो जाता है।
- बादलों वाली रात, स्वच्छ आकाश वाली रात की अपेक्षा गर्म होती है: दिन में सूर्य की गरमी से पृथ्वी गर्म हो जाती है तथा रात को विकिरण द्वारा ठण्डी होती है। जब आकाश स्वच्छ होता है, तो ऊष्मा विकिरण द्वारा पृथ्वी से आकाश की ओर चली जाती है। परन्तु जब आकाश में बादल छाए रहते हैं, तो ऊष्मा के विकिरण बादलों से टकराते हैं। परन्तु बादल ऊष्मा के बुरे अवशोषक है, अत: ऊष्मा के विकिरण पृथ्वी की ओर वापस आ जाते हैं जिससे पृथ्वी गर्म ही बनी रहती है।