ऊष्मीय प्रसार (Thermal Expansion)
ऊष्मा के प्रभाव के पदार्थों का फैलाव ऊष्मीय प्रसार कहलाता है। यह प्रसार लम्बाई, क्षेत्रफल तथा आयतन में होता है। ऊष्मीय प्रसार होने से पदार्थ के अणुओं के बीच दूरी बढ़ जाती है।
ऊष्मीय प्रसार के कुछ व्यावहारिक उपयोग
- रेल की पटरियां लोहे की बनी होती हैं, इसलिए रेल की दो पटरियों के जोड़ पर थोड़ा रिक्त स्थान छोड़ दिया जाता है जिससे गर्मी के दिनों में ताप बढ़ने के कारण पटरियों की लम्बाई बढ़ने के लिए खाली स्थान मिल सके, अन्यथा पटरियां तिरछी हो जाएगी और रेल दुर्घटना हो सकती है।
- कांच की बोतल में डाट फंसने पर बोतल की गर्दन को गरम पानी में रखकर गरम करते हैं, जिससे बोतल की गर्दन का व्यास बढ़ जाता है और डाट बाहर निकल जाता है। यदि कांच की बोतल पर धातु का ढक्कन है (Cap) लगा हुआ है. तो गरम करने पर उसमें प्रसार होता है !
महत्वपूर्ण तथ्य (कांच की अपेक्षा धातु का प्रसार गुणांक अधिक होने के कारण)
थर्मामीटर में पारा, बैंजीन जैसे पदार्थ से अधिक उपयोगी होते है और वह ढीली हो जाती है।
हैं। इसके निम्नलिखित कारण है:
1. पारा ऊष्मा का अच्छा चालक है। अत: पारे के किसी 3. जब कांच के गिलास में गर्म पानी डालते
भाग में समायी ऊष्मा इसके अन्य भागों में चलकर हैं, तो वह चटक जाता है क्योंकि कांच आसानी से फैल जाती है। ऊष्मा का कुचालक है। गरम पानी डालते ही अन्दर का भाग गरम हो जाता है और
2. पारा थर्मामीटर की नली को भिगोता नहीं बल्कि बैंजीन फैलता है परन्तु बाहर का भाग ठण्डा ही
उसे भिगो देती है। रहता है अत: गिलास चटक जाता है।
3. चमकीला होने के कारण पारे की सतह स्पष्ट दिखाई पायरेक्स कांच का बर्तन नहीं चटकता है
पड़ती है जिससे ताप को पढ़ने में सुविधा होती क्योंकि पायरेक्स कांच का आयतन प्रसार गुणांक साधारण कांच की तुलना में एक-तिहाई होता है। जल का असामान्य प्रसारः प्रायः सभी द्रव गर्म किए जाने पर आयतन में बढ़ते हैं परन्तु जल 0°C से 4°C तक गर्म करने पर आयतन में घटता है तथा 4°C के पश्चात् बढ़ना प्रारम्भ करता है। इसका अर्थ यह है. कि 4° पर जल का घनत्व सबसे अधिक होता है। दैनिक जीवन में इसके कई प्रभाव दिखाई देते हैं. कुछ निम्नलिखित हैं: 1. ठण्डे देशों में तालाबों के जम जाने पर भी उनमें मछलियां जीवित रहती हैं: ठण्डे देशों में जाड़े के दिनों
में वायु का ताप 0° से भी कम हो जाता है। अतः वहां के तालाबों में जल जमने लगता है। वायु का ताप गिरने पर पहले तालाबों की सतह का जल ठण्डा होता है। अत: यह भारी होकर नीचे बैठता रहता है तथा नीचे का हल्का जल ऊपर आता रहता है। यह प्रक्रिया तब तक चली रहती है जब तक कि पूरे तालाब का जल 4°C तक नहीं गिरा जाता। जब सतह के जल का ताप 4°C से नीचे गिरने लगता है. तो इसका घनत्व कम होने लगता है। अतः अब यह नीचे नहीं जाता तथा 0°C तक ठण्डा होकर बर्फ के रूप में सतह पर ही जमने लगता है। अत: जल के जमने की क्रिया ऊपर से नीचे की ओर होती है (नीचे से ऊपर की ओर नहीं) बर्फ की इस पर्त के नीचे अब भी 4°C का जल रहता है। चूंकि बर्फ ऊष्मा का कुचालक होता है, अत: नीचे के 4°C वाले जल की ऊष्मा को बाहर नहीं जाने देता। अत: नीचे वाला जल 4°C पर ही बना रहता है और इस प्रकार वह जमने से बच जाता है। इस जल में मछलिया तथा अन्य जीव जीवित रहते हैं। 2. अत्यधिक ठण्ड में जल के पाइप कभी-कभी फट जाते हैं: ठण्डे स्थानों पर जाड़े के दिनों में पाइपों में बहने वाले जल का ताप 4°C से नीचे गिर जाने पर जल के आयतन में वृद्धि होती है परन्तु धातु का पाइप सिकुड़ता है। इन विपरीत दशाओं के कारण पाइपों की दीवारों पर इतना अधिक दाब पड़ता है, कि वे फट जाते हैं।