चालन (Conduction)
यह ऊष्मा संचरण की ऐसी विधि है जिसमें माध्यम के कण भाग तो लेते हैं परन्तु अपने स्थान को नहीं छोड़ते हैं। इसमें ऊष्मा माध्यम के गरम भागों से ठण्डे भागों की ओर प्रत्येक कण से समीपवर्ती अन्य कणों में होती हुई संचरित होती है।
चालन द्वारा ऊष्मा का संचरण सभी पदार्थों (ठोस, द्रव तथा गैसों) से सम्भव है परन्तु ठोसों (तथा पारे) में ऊष्मा का संचरण केवल चालन द्वारा ही होता है। द्रवों तथा गैसों में ऊष्मा का संचरण चालन द्वारा बहुत कम होता है।
उदाहरण
यदि हम किसी धातु की छड़ का एक सिरा गरम करें तो यह सिरा ऊष्मा पाकर गरम हो जाता है तथा चालन द्वारा ऊष्मा दूसरे सिरे तक पहुंचकर उसे भी गरम कर देती है। जिस सिरे को हम गरम करते हैं, उस सिरे के कण ऊष्मा पाकर अपनी मध्यमान स्थिति के दोनों ओर तेजी से तथा अधिक आयाम से कम्पन करने लगते हैं तथा अपने निकट वाले पृष्ठ के कणों से टकराते हैं तथा उन्हें ऊष्मा दे देते हैं। इस पृष्ठ के कण (जो अब तेजी से कम्पन करने लगे हैं) अपने निकट वाले पृष्ठ के कणों को ऊष्मा दे देते हैं इस प्रकार, ऊष्मा दूसरे सिरे तक एक पृष्ठ के कणों से दूसरे पृष्ठ के कणों में होती हुई पहुंच जाती है।
ऊष्मा चालकता
पदार्थ में चालन द्वारा ऊष्मा का संचरण ‘ऊष्मा चालकता’ कहलाती है। ऊष्मा चालकता के आधार पर पदार्थों को तीन वर्गों में बांटा जाता है:
चालक
वे पदार्थ जिनसे होकर ऊष्मा का चालन सरलता से होता है, ‘चालक’ कहलाते हैं। उदाहरण 6 अम्लीय जल, सभी धातु।
ऊष्मारोधी
वे पदार्थ जिनसे होकर ऊष्मा का चालन बिल्कुल नहीं होता है, ‘ऊष्मारोधी’ कहलाते हैं। ऐसे पदार्थ की ऊष्मा चालकता शून्य होती है। एस्बेस्टॉस व एवोनाइट ऊष्मारोधी पदार्थ हैं।
कुचालक
वे पदार्थ जिनसे होकर ऊष्मा का चालन सरलता से नहीं होती है, ‘कुचालक’ कहलाते हैं उदाहरण—वायु, गैसें, रबर, लकड़ी व कांच, आदि।
उपयोग
- एस्किमो लोग बर्फ की दोहरी दीवारों के मकान में रहते हैं: इसका कारण यह है, कि बर्फ की दोहरी दीवारों के बीच हवा की पर्त ऊष्मा की कुचालक होती है जिससे अन्दर की ऊष्मा बाहर नहीं जा पाती है तथा कमरे के अन्दर का ताप बाहर की अपेक्षा अधिक बना रहता है।
- शीत ऋतु में लकड़ी एवं लोहे की कुर्सियां एक ही ताप पर होती हैं परन्तु लोहे की कुर्सी छूने पर लकड़ी की कुर्सी की अपेक्षा अधिक ठण्डी लगती है: शीत ऋतु में शरीर का ताप, कमरे के ताप से अधिक होता है। लोहे की कुर्सी को छूने पर हमारे हाथ से ऊष्मा तापान्तर के कारण लोहे की कुर्सी में शीघ्रता से प्रवाहित होती है क्योंकि लोहा ऊष्मा का सुचालक है। अत: लोहे की कुर्सी छूने पर हमें ठण्डी प्रतीत होती है लेकिन लकड़ी ऊष्मा की कुचालक है, इसलिए वही तापान्तर होने पर भी हमारे हाथ से ऊष्मा लकड़ी में प्रवाहित नहीं होती है और लकड़ी की कुर्सी छूने पर वह हमें ठण्डी प्रतीत नहीं होती
- धातु के प्याले में चाय पीना कठिन है जबकि चीनी मिट्टी के प्याले में चाय पीना आसान है: इसका कारण यह है, कि धातु ऊष्मा की सुचालक होती है, अत: धातु के प्याले में चाय पीने पर चाय से ऊष्मा धातु में होकर होंठों तक पहुंच जाती है और होंठ जलने लगते हैं जबकि चीनी मिट्टी ऊष्मा की कुचालक होती है, अत: चाय से ऊष्मा चीनी मिट्टी से होकर होंठों तक नहीं पहुंच पाती है और चाय पीना आसान होता है।