ऊष्मा धारिता (Thermal Capacity)
किसी वस्तु का तापमान 1°C बढ़ाने के लिए जितनी ऊष्मा की आवश्यकता होती है उसे उस वस्तु की ऊष्मा धारिता कहते हैं। परन्तु कौन-सी वस्तु कितनी गरम होगी यह बात वस्तु की प्रकृति और उसके द्रव्यमान पर निर्भर है। इसका मात्रक जूल प्रति केल्विन या कैलोरी प्रति C है।
विशिष्ट ऊष्मा धारिता
आजकल विशिष्ट ऊष्मा को ‘विशिष्ट ऊष्मा धारिता’ लिखा जाता है, किसी पदार्थ की विशिष्ट ऊष्मा धारिता ऊष्मा की वह मात्रा है जो उस पदार्थ के एकांक द्रव्यमान में एकांक ताप-वृद्धि उत्पन्न करती है। इसे प्राय: C द्वारा व्यक्त किया जाता है।
उदाहरण
1 ग्राम जल का ताप 1°C बढ़ाने के लिए 1 कैलोरी ऊष्मा की आवश्यकता होती है। अत: जल की विशिष्ट ऊष्मा धारिता 1 कैलोरी/ग्राम C होती है। जल की विशिष्ट ऊष्मा धारिता अन्य ठोस तथा द्रव पदार्थों की तुलना में सबसे अधिक है।
विशिष्ट ऊष्मा धारिता का SI मात्रक जूल किलोग्राम केल्विन होता है। ठोस और द्रवों में जल की विशिष्ट ऊष्मा सर्वाधिक है परन्तु सभी पदार्थों में हाइड्रोजन की विशिष्ट ऊष्मा सर्वाधिक है।
पानी की विशिष्ट ऊष्मा धारिता उच्च होने का लाभ यह है, कि अन्य पदार्थों की तुलना में पानी अधिक देर में गरम होता है और अधिक देर में ही ठण्डा होता है। यही कारण है, कि शरीर को सेंकने वाली बोतलों (Heating bottles) में गरम पानी भरा जाता है जिससे वह अधिक देर तक सेंक देता रहे।
कमरों को गरम करने वाले पाइपों में भी गरम पानी ही भरा जाता है। समुद्र के पास के नगरों में न तो अधिक गर्मी पड़ती है और न ही अधिक सर्दी। इसका कारण भी जल की अधिक विशिष्ट ऊष्मा धारिता है।
दिन में समुद्र का जल धूप में स्थल की मिट्टी की अपेक्षा बहुत देर में गरम होता है जिससे स्थल के ऊपर की वायु गरम होकर ऊपर उठ जाती है। उसका स्थान भरने के लिए दिन में समुद्र से स्थल की ओर ठण्डी हवा चलती है, इससे वहां का ताप बहुत अधिक नहीं बढ़ पाता है।
रात को समद्र का जल स्थल की अपेक्षा अधिक देर से ठण्डा होता है, अतः रात को समुद्र, स्थल की अपेक्षा गरम होता है वहां की वायु गरम होकर ऊपर उठ जाती है। उसका स्थान ग्रहण करने के लिए स्थल से ठण्डी वायु समुद्र की ओर चलने लगती है।
इस प्रकार स्थल का ताप दिन और रात में लगभग एकसमान बना रहता है, और ग्रीष्म तथा शीत ऋतु में भी इसी प्रकार की प्रक्रिया द्वारा एकसमान बना रहता है।