नीले हरे शैवालों में ऐसी क्रियाविधि होती है जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को ऐसे नए रूप में परिवर्तित कर देती है जिसे फसल के पौधे आसानी से ग्रहण कर सकते हैं !
शैवालों के अध्ययन को फ़ाइकोलोजी कहते हैं, शैवाल प्राय पर्णहरित युक्त, संवहन ऊतक रहित, आत्मपोषी होते हैं !
इनका प्रयोग निम्न रूपों में किया जाता है –
- भोजन के रूप में – फोरफाइरा, अल्वा, सरगासन, लेमिनेरिया, नास्टोक
- आयोडिन बनाने में – लेमिनेरिया, फ्यूकस, एकलोनिया आदि
- खाद के रूप में – नोस्टोक, एनाबीना, केल्प आदि
- औषधियों के रूप में – क्लोरेला से क्लोरेलिन नामक प्रतिजैविक एवं लेमिनेरिया से टिंचर आयोडिन वनाई जाती है !
- अनुसंधान कार्यों में – क्लोरेला असीटेबुलेरिया, एलोनिया आदि, ये खेत में सड़कर वायु मंडलीय नाइट्रोजन को नाइट्रेट में बदल देते हैं जिससे जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है !