इस आर्टिकल में हम ब्रायोफाइटा (Bryophytes) के बारे में निम्न तथ्य जानेगे :
- ब्रायोफाइटा (Bryophytes) क्या है ?
- ब्रायोफाइटा (Bryophytes) के सामान्य लक्षण क्या है ?
- ब्रायोफाइटा (Bryophytes) की विशेषताएँ क्या है ?
- ब्रायोफाइटा (Bryophytes) के गुण और महत्त्व क्या है ?
ब्रायोफाइटा (Bryophytes)
ब्रायोफाइटा (Bryophyta) वनस्पति जगत का एक बड़ा वर्ग है और यह एम्ब्रियोफाइटा का सबसे साधारण व आद्य समूह है। पौधों के वर्गीकरण में ब्रायोफाइटा का स्थान शैवाल (Algae) और टेरिडोफाइटा (Pteridophyta) के बीच में आता है। ब्रायोफाइटा प्रथम स्थलीय पौधे हैं, जो शैवाल से विकसित हुए हैं। डासोनियाँ ब्रायोफाइटा का सबसे बड़ा पौधा है जिसकी ऊँचाई 40 से 70 सेमी. है।

ब्रायोफाइटा की मुख्य लक्षण, विशेषताए और उसके गुण
ब्रायोफाइटा को पादप जगत के उभयचर भी कहा जाता है क्योंकि ये भूमि पर जीवित रहते है , परन्तु लैंगिक जनन के लिए जल पर निर्भर होते है।
इसके अन्तर्गत वे सभी पौधें आते हैं जिनमें वास्तविक संवहन ऊतक (vascular tissue) नहीं होते, जैसे मोसेस (mosses), हॉर्नवर्ट (hornworts) और लिवरवर्ट (liverworts) आदि।
ब्रायोफाइटा सर्वाधिक सरल छोटे स्थलीय पौधे हैं, जो आर्द्र स्थानों में विकसित होते हैं।
पादप का शरीर थैलस या पर्णिल अर्थात् तना तथा पत्ती सदृश रचनाओं में विभेदित होता है परन्तु वास्तविक तना एवं पत्ती नहीं होता है।
ये पौधे मूलाभास (राइजोड) के द्वारा मिट्टी से जुड़े होते हैं। इसमें जड़, पुष्प तथा बीज का अभाव होता है। इनमें युग्मकोद्भिद् अवस्था प्रभावी होती है।
अधिकतर ब्रायोफाइटा में क्लोरोफिल पाया जाता है, जिससे वे स्वपोषी होते हैं। इनमें लैंगिक तथा अलैंगिक दोनों प्रकार का जनन होता है।
ब्रायोफाइटा को पादप जगत के उभयचर के रूप में जाना जाता है अर्थात् ऐसे पौधे स्थलीय होते हैं, जिसे निषेचन के लिए जल की अत्यधिक आवश्यकता होती है।
ब्रायोफाइटा में जल तथा लवण के संवहन हेतु संवहन ऊतक नहीं होते हैं। इसमें पदार्थों का संवहन एक कोशिका से दूसरे कोशिका में होता है।
ब्रायोफाइटा के अन्तर्गत लिवरवर्ट तथा मॉस आते हैं। मॉस मिट्टी को बाँधे रखता है तथा मृदा अपरदन को रोकते हैं।
कोयले सदृश पीट ईंधन, मॉस और स्फैगनम जैसे ब्रायोफाइट के हजारों वर्षों तक भूमि के नीचे दबकर रहने से निर्मित होते हैं।
पौधे की सतह पर क्यूटिकिल का अभाव होता है। (जिसके फलस्वरूप पौधे से पानी के वाष्पीकरण का विशेष प्रतिबन्ध नहीं रह पाता तथा जल की अत्यधिक हानि होती है ऐसी स्थिति का उनकी वृद्धि पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।)
युग्मकोद्भिद् (gametophyte)
इस समुदाय का पौधा युग्मकोद्भिद् होता है ये पौधे स्थली होने के साथ ही छायादार स्थानों पर उगते हैं और इन्हें अपने जीवन में पर्याप्य आर्द्रता की आवश्यकता होती है, निषेचन के लिये जल आवश्यक है। अतः कुछ वैज्ञानिक ब्रायोफाइटा समुदाय को वनस्पति जगत् का एम्फीबिया कहते हैं। ये पौधे थैलेफाइटा से अधिक विकसित होते हैं।
इन पौधों का और अधिक विकास तभी संभव हुआ, जब उनमें संवहनी ऊतक का विकास हो गया। संवहन तन्त्र की जड़ से जल तथा खनिज, लवणों को पत्ती तक तथा पत्ती से शर्करा को पौधे की अन्य कोशिकाओं तक पहुँचाने का कार्य करता है। इसी गुण के कारन ट्रैकियोफाइटा का विकास संभव हुआ।
लैंगिक जनन (reproduction)
यह पादप युग्मकोदृभिद पीढ़ी पर आश्रित होती है। कायिक जनन विखंडन द्वारा होता है। अगुणित युग्मकोद्भिद पादप में नर लैंगिक अंग को पुंधानी कहते है। जिसमे समसूत्री विभाजन द्वारा पुमंग बनते है , जो अगुणित होते है। मादा लैंगिक अंग स्त्रीधानी कहलाते है। जिनमे अगुणित अण्ड बनता है। पुमंग व अण्ड के संलयन से युग्मनज बनता है।
युग्मनज से एक बहुकोशिकीय बिजानुभिद विकसित होता है जो द्विगुणित होता है तथा पाद , सिटा व कैप्सूल में विभक्त होता है। बीजाणुभिद में अर्द्धसूत्री विभाजन से अगुणित बीजाणु बनते है जो अंकुरित होकर अगुणित नया पादप बनाते है।
ब्रायोफाइटा के प्रकार
ब्रायोफाइटा को तीन वर्गों में बाँटा गया है:
हिपैटिसी या हिपैटिकॉप्सिडा (Hepaticopsida)
इस वर्ग के पौधों का शरीर यकृत के समान हरे रंग का होता है। इसलिए इसे लिवरवर्ट्स भी कहते हैं। पौधों के शरीर को सूकाय कहते हैं। वह चपटा होता है। सूकाय में जड़, तना, पत्तियाँ नहीं होती है। इसकी निचली सतह के अनेक एककोशिकीय मूलांग निकले होते हैं। मूलांग का कार्य स्थिरता प्रदान करना तथा भूमि से पानी एवं खनिज लवणों का अवशोषण करना है।
जैसे : रिक्सिया तथा मार्केन्शिया आदि।

ऐंथोसिरोटी, या ऐंथोसिरोटॉप्सिडा (Anthocerotopsida) और मार्केन्टीऑफायटा
इसमें पौधे बहुत ही साधारण और पृष्ठाधरी रूप से विभेदित (dorsiventrally differentiated) होते हैं, पर मध्यशिरा (mid rib) नहीं होती। इन पौधों का शरीर सूकायक होता है। इनके बीजाणुद्भिद् में सीटा अनुपस्थित होता है। इस उपवर्ग में एक ही गण ऐंथेसिरोटेलीज है, जिसमें पाँच या छह वंश और लगभग 300 जातियाँ हैं। इनमें ऐंथोसिरोस (Anthoceros) और नोटोथिलस (Notothylas) प्रमुख वंश हैं। ये पौधे संसार के कई भागों में पाए जाते हैं। भारत में यह हिमालय की तराई तथा पर्वत पर और कुछ जातियाँ नीचे मैदान में भी पाई जाती हैं।
जैसे : एन्थोसिरास में।

मसाइ (Musci) या ब्रायॉप्सिडा (Bryopsida)
इसमें उच्च उच्च श्रेणी के ब्रायोफाइट्स आते हैं। ये ठण्डे एवं नम स्थानों पर तथा पुरानी दीवारों पर समूहों में पाए जाते हैं। इसमें तना तथा पत्ती जैसी रचना पाई जाती है। मूल की जगह पर बहुकोशिकीय मूलांग होते हैं। मॉस का पौधा युग्मकोद्भिद् होता है। इसका बीजाणुद्भिद् आंशिक रूप से युग्मकोद्भिद् पर निर्भर रहता है।
जैसे : मॉस में।

स्फैगनम नामक मॉस का उपयोग कटे हुए पौधों के अंगों को नम रखने के लिए किया जाता है। मॉस को स्थल वनस्पति का पुरोगामी कहा जाता है। इसका आशय यह है कि मॉस लाइकेन के साथ सतह पर एक पर्त बनाते हैं तथा मृत्यु के बाद सतह पर ह्यमस की परत जम जाती है, जिस पर अन्य पौधे उगते हैं।


ब्रायोफाइटा का महत्व
1. शाकाहारी स्तनधारी कुछ ब्रायोफाइट्स पौधे का प्रयोग भोजन के रूप में करते है
2. स्फेगमन व अन्य जाति के ब्रायोफाइटा को ईंधन के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।
3. इनमें पानी रोकने की क्षमता होती है इसलिए पैकिंग व सजीवो के स्थानान्तरण में उपयोग किया जाता है। साथ ही जल अवशोषण की क्षमता अधिक होने की वजह से ये बाढ़ रोकने में मदद करते हैं
4. ये अनुक्रमण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
5. पूर्तिरोधी अर्थात् ऐण्टिसेप्टिक होने के कारण स्फैगनम का उपयोग सर्जिकल ड्रेसिंग के लिए किया जाता है। स्फैगनम के पौधों से स्फैगनाल नामक प्रतिजैविक प्राप्त किया जाता है।
6. ब्रायोफाइट्स दुनिया के विभिन्न हिस्सों के जनजातीय लोगों के बीच लोकप्रिय उपाय हैं। आदिवासी लोग इन पौधों का उपयोग अपने दैनिक जीवन में विभिन्न बीमारियों को ठीक करने के लिए करते हैं।
7. ब्रायोफाइट्स का उपयोग अफ्रीका, अमेरिका, यूरोप, पोलैंड, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, तुर्की, जापान, दक्षिण, उत्तर और पूर्वी भारत, चीन, ताइवान के विभिन्न आदिवासी समुदायों द्वारा यकृत विकारों, त्वचा रोगों, हृदय रोगों, ज्वरनाशक, रोगाणुरोधी, घाव भरने और कई अन्य बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है।
8. इन उपयोगों के अलावा कुछ ब्रायोफाइट्स में विभिन्न कैंसर सेल लाइनों के खिलाफ एंटीट्यूमर गतिविधियां (antitumor activities) का गुण होता है जो कि बहुत ही महत्वपुर्ण है और कैंसर जैसे रोग के इलाज के लिय इस पर और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
ब्रायोफाइटा से जुड़े हुए कुछ प्रश्न और उनके जवाब
प्रश्न – ब्रायोफाइटा का अर्थ क्या है?
उत्तर – ब्रायोफाइटा के अन्तर्गत वे सभी पौधें आते हैं जिनमें वास्तविक संवहन ऊतक (vascular tissue) नहीं होते, जैसे मोसेस (mosses), हॉर्नवर्ट (hornworts) और लिवरवर्ट (liverworts) आदि। ब्रायोफाइटा (Bryophyta) वनस्पति जगत का एक बड़ा वर्ग है और यह एम्ब्रियोफाइटा का सबसे साधारण व आद्य समूह है। एंजियोस्पर्म के बाद ब्रायोफाइट्स भूमि पौधों का दूसरा सबसे बड़ा समूह है। पौधों के वर्गीकरण में ब्रायोफाइटा का स्थान शैवाल (Algae) और टेरिडोफाइटा (Pteridophyta) के बीच में आता है। यह पृथ्वी पर लगभग हर जगह पाया जाता है परन्तु इसका मानव जीवन में खास उपयोग नही है l ब्रायोफाइटा प्रथम स्थलीय पौधे हैं, जो शैवाल से विकसित हुए हैं। डासोनियाँ ब्रायोफाइटा का सबसे बड़ा पौधा है जिसकी ऊँचाई 40 से 70 सेमी. है।
प्रश्न – ब्रायोफाइटा का आर्थिक महत्व क्या है?
उत्तर – ब्रायोफाइटा वर्ग के पोधों में जल अवशोषण (water absorption) की क्षमता अधिक होने की वजह से ये बाढ़ (flood) रोकने में मदद करते हैं l इस वर्ग के पौधे मृदा अपरदन (soil erosion) को रोकने में भी सहायता होते हैं। स्फेगमन (Sphagnum) व अन्य जाति के ब्रायोफाइटा को ईंधन के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। पूर्तिरोधी अर्थात् ऐण्टिसेप्टिक होने के कारण स्फैगनम का उपयोग सर्जिकल ड्रेसिंग (surgical dressing) के लिए किया जाता है। स्फैगनम के पौधों से स्फैगनाल नामक प्रतिजैविक प्राप्त किया जाता है। आदिवासी लोग इन पौधों का उपयोग अपने दैनिक जीवन में विभिन्न बीमारियों को ठीक करने के लिए करते हैं। कुछ ब्रायोफाइट्स में विभिन्न कैंसर सेल लाइनों के खिलाफ एंटीट्यूमर गतिविधियां (antitumor activities) का गुण होता है जो कि बहुत ही महत्वपुर्ण है और कैंसर जैसे रोग के इलाज के लिय किया जाता है l
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बायोफायटा