इस आर्टिकल में हम जानेगे की कोशिकांग क्या होते है ? अंगक (Organelle) क्या होते है ? कोशिकांग के प्रकार कौन कौनसे है ? कोशिका अंगक क्या है ? कोशिकांग कितने होते है ?
कोशिकांग (Cell Organelles) क्या होते हैं?
जिस प्रकार शरीर के विभिन्न अंग अलग अलग कार्य करते हैं, उसी तरह कोशिका के भीतर स्थित संरचनाएँ विशिष्ट कार्य करती हैं। इन्हीं संरचनाओं को कोशिकांग या अंगक या कोशिका अंगक (Organelle) कहते हैं।
उदाहरण के लिये, माइटोकांड्रिया या सूत्रकणिका कोशिका का ‘शक्तिगृह’ (power house) कहलाता है क्योंकि इसी में कोशिका की अधिकांश रासायनिक ऊर्जा उत्पन्न होती है।
कोशिकाद्रव्य में स्थित कोशिकांग कोशिकाओं के निर्णायक कार्य करते हैं। इन सभी कोशिकांगों का आवरण एक समान होता है। जैसे– अन्तर्द्रव्यी जालिका, गॉल्जीकॉय परॉक्सीसोम, ग्लाइऑक्सीसोम आदि। परन्तु कुछ दूसरे कोशिकांगों का आवृत्त फॉस्फोलिपिड का नहीं बना होता है। जैसे– राइबोसोम ।
कोशिका द्रव्य में पाई जाने वाली झिल्ली युक्त छोटी-छोटी संरचनाओं को कोशिका अंगक कहा जाता है । केंद्रक कोशिका का सबसे बड़ा कोशिकांग है।

(1) केंद्रिक (Nucleolus)
(2) केंद्रक (Nucleus)
(3) राइबोसोम (Ribosome)
(4) पुटिका (Vesicle)
(5) खुरदरी अंतर्द्रव्यी जालिका (Rough endoplasmic reticulum)
(6) गॉल्जी काय (Golgi body)
(7) कोशिकापंजर (Cytoskeleton)
(8) चिकनी अंतर्द्रव्यी जालिका (Smooth endoplasmic reticulum)
(9) माइटोकोंड्रिओन (Mitochondrion)
(10) धानिका (Vacuole)
(11) साइटोसोल (Cytosol)
(12) लयनकाय (Lysosome)
(13) तारककाय (Centrosome)
(14) कोशिका भित्ति (Cell membrane)
कोशिकांग के प्रकार कौनसे है (Types of Cell Organelles)
कोशिकांग के निम्न प्रकार है अर्थात विभिन्न कोशिकांग निम्नलिखित हैं:
माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria)
माइटोकॉण्ड्रिया की खोज सन् 1900 में अल्टमान नामक वैज्ञानिक ने की थी। इसे कोशिका का ऊर्जा गृह/शक्ति गृह (Power House) भी कहा जाता हैं। माइटोकॉण्ड्रिया दोहरी झिल्ली के आवरण से घिरी हुई रचनाएँ होती हैं। ये कोशिकाद्रव्य में छोटे-छोटे कणों, गोलों या छड़ों के रूप में पाए जाते हैं। इसमें बाहरी झिल्ली सपाट तथा अन्दर वाली झिल्ली मैट्रिक्स की ओर ऊँगली समान नलिकाओं (पादपों में) अथवा क्रिस्टी (जन्तुओं में) जैसे रचनाएँ बनाती हैं। इसे कोशिका का बिजलीघर कहा जाता है, चूँकि सभी आवश्यक रासायनिक क्रियाओं को करने के लिए माइटोकॉण्ड्रिया ATP के रूप में ऊर्जा प्रदान करते हैं।इसमें DNA एवं राइबोसोम पाए जाते हैं। राइबोसोम (Ribosome) राइबोसोम की खोज सन् 1955 में पैलाडे नामक वैज्ञानिक ने की थी। राइबोसोम राइबोन्यूक्लिक अम्ल (R.N.A.) तथा प्रोटीन के बने होते हैं।
राइबोसोम (Ribosomes)
राइबोसोम की खोज सन् 1955 में पैलाडे नामक वैज्ञानिक ने की थी। यह गोलाकार, दो उपइकाइयों के बने, झिल्ली विहीन राइबोन्यूक्लिओप्रोटीन के सूक्ष्म कण होते हैं, जो हरितलवक, केन्द्रक तथा कोशिकाद्रव्य में (अन्त:प्रद्रव्यो जालिका पर राइबोफोरोन प्रोटीन द्वारा जुड़ा) पाए जाते हैं।राइबोसोम राइबोन्यूक्लिक अम्ल (R.N.A.) तथा प्रोटीन के बने होते हैं। राइबोसोम गोलाकार, 140-160 A व्यास वाले सघन सूक्ष्म कण होते हैं। यह सभी प्रकार के जीवों में पाए जाते है। राइबोसोम प्रोटीन संश्लेषण का केन्द्र होते हैं। यह एमीनो अम्ल का निर्माण करता है। इसे प्रोटीन की फैक्ट्री कहा जाता Mg की कम सान्द्रता पर ये दो उप-इकाइयों में बँट जाते हैं।
अन्तःप्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum)
अन्तःप्रद्रव्यी जालिका की खोज सन् 1945 में पोर्टर तथा उनके सहयोगियों ने की थी।अन्तःप्रद्रव्यी जालिका झिल्ली युक्त नलिकाओं का एक बहुत बड़ा तन्त्र होता है। यह दोहरी झिल्ली से घिरी होती है। इसे कोशिका का कंकाल तन्त्र कहलाता है क्योकी यह कोशिका को ढाँचा तथा मजबूती प्रदान करता है । इस पर राइबोसोम लगे होते हैं, जो प्रोटीन संश्लेषण का कार्य करते हैं। अन्त:प्रद्रव्यी जालिका का प्रमुख कार्य उन सभी वसाओं व प्रोटीनों का संश्लेषण करना है, जो विभिन्न कोशिका झिल्ली अथवा केन्द्रक झिल्ली का निर्माण करते हैं। चिकनी अन्त:प्रद्रव्यी जालिका (smooth ER) पर राइबोसोम नहीं पाए जाते हैं। ये लिपिड व स्टीरॉल का संश्लेषण करती हैं।
गॉल्जीकाय (Golai Body)
गॉल्जीकाय की खोज सन् 1898 में केमिलो गॉल्जी नामक वैज्ञानिक ने की थी। गॉल्जोकाय झिल्ली युक्त पुटिका है, जो एक-दूसरे के ऊपर समानान्तर रूप से रहती है। इन झिल्लियों का सम्पर्क अन्तःप्रद्रव्यो जालिका को झिल्लियो से होता है और इसलिए जटिल कोशिकीय झिल्ली तन्त्र के दूसरे भाग को बनाती हैं। ये केन्द्रक के पास स्थित रहती हैं। कोशिका भित्ति के लिए हेमी सेल्युलोस का निर्माण तथा स्राव गॉल्जीकाय से होता है। गॉल्जीकाय को लाइपोकॉण्ड्यिा या डिक्टियोसोम भी कहा जाता है। गॉल्जीकाय को कोशिका को ट्रैफिक पुलिस भी कहा जाता है। ये कोशिका पट्ट, कोशिका भित्ति, शुक्राणु के एक्रोसोम, लयनकाय तथा हॉरमोन के संश्लेषण का कार्य करती है।
लाइसोसोम(लयनकाय) (Lysosome)
सन् 1955में लाइसोसोम की खोज डी दुवे(De Duve)ने की थी। इसमें विभिन्न हाइड्रोलिटिक एन्जाइम्स भरे होते हैं। यह मुख्यतया जन्तु कोशिकाओं में पाई जाने वाली गोल इकहरी झिल्लियों से घिरी थैलियाँ है, जिसमें 50 हाइड्रोलिटिक एन्जाइम पाए जाते हैं, जो लगभग 5 pH पर कार्य करते हैं। यह कोशिका का अपशिष्ट निपटाने वाला तन्त्र है। लाइसोसोम में उपस्थित पाचनकारी एन्जाइम कार्बनिक पदार्थ को तोड़ देते हैं। लाइसोसोम को आत्महत्या की थैली भी कहा जाता है।
तारककाय(सेन्ट्रोसोम) (Centrosome)
प्राय: ये जन्तु कोशिका में पाए जाते हैं। इसके अलावा कुछ शैवालों तथा कवकों में दो जोड़े सेन्ट्रियोल्स की बनी एक रचना होती है इसलिए इसे डिप्लोसोम भी कहा जाता है। प्रत्येक सेन्ट्रियोल्स सूक्ष्मनलिकाओं से निर्मित तीन तन्तुओं के नौ समूहों का बना होता है दो जोड़े सेन्ट्रियोल्स सेन्ट्रोस्फीयर से घिरे होते हैं। इस सम्पूर्ण रचना को सेन्ट्रोसोम कहा जाता है। कोशिका विभाजन के समय सेन्ट्रोसोम दो जोड़े सेन्ट्रियोल्स में विभाजित हो जाता है, जो दो विपरीत ध्रुवों पर चले जाते हैं।
रिक्तिका (रसधानियाँ)(Vacuoles)
ये इकहरी झिल्ली (टोनोप्लास्ट) से घिरी तथा तरल पदार्थों से भरी रचनाएँ होती हैं। पादप कोशिका में, यह बड़े आकार में, जबकि जन्तु कोशिका में ये अनेक और बहुत ही छोटे आकार में होती है। इसे कोशिका का भण्डार घर कहा जाता है, जिसमें खनिज लवण, शर्करा, कार्बनिक अम्ल, O2 एवं Co2 आदि भरे होते हैं। इसमें स्थित रसधानी रस के कारण ही कोशिकाओं की स्फीति (turgidity) बनी रहती है। इसमें एक वर्णक एन्थोसायनिन पाया जाता है।
लवक (Plastids)
सन् 1865 में लवक (Plastid) की खोज हैकेल ने की। लवक कोशिकाओं में स्थित होते हैं। इनकी भीतरी रचना में बहुत-सी झिल्ली वाली परतें होती हैं जो स्ट्रोमा में स्थित होती हैं। ये गोलकार या चपटे आकार के रंगीन अथवा रंगहीन होते हैं। लवक केवल पादप कोशिकाओं में स्थित होते हैं। लवक पुष्पों तथा फलों को आकर्षक रंग देते हैं। पुष्पों का आकर्षक रंग कीटों को आकर्षित करता है, जिससे फूलों में परागण होता है। ये तीन प्रकार के अर्थात् हरितलवक, अवर्णी लवक तथा वर्णी लवक होते हैं।