ग्रेफाइट, जिसे पुरातन रूप से प्लंबेगो कहा जाता है, ग्रेफाइट भी कार्बन का एक अत्यंत ही उपयोगी क्रिस्टलीय अपरूप है जिसके परमाणु एक हेक्सागोनल संरचना में व्यवस्थित होते हैं। यह इस रूप में स्वाभाविक रूप से होता है और मानक परिस्थितियों में कार्बन का सबसे स्थिर रूप है। उच्च दबाव और तापमान में यह हीरे में परिवर्तित हो जाता है
यह मुख्यतः भारत, श्रीलंका, साइबेरिया, इटली, संयुक्त राज्य अमेरिका, आदि में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
भारत के उड़ीसा राज्य में यह प्रचुर मात्रा में मिलता है।
ग्रेफाइट की संरचना षट्कोणीय जालक सतह के रूप में होती है।
ग्रेफाइट में मुक्त इलेक्ट्रॉन होते हैं जो सम्पूर्ण रवा-जालक (Crystal lattice) में गमन करते हैं। इसी कारण ग्रेफाइट विद्युत का सुचालक होता है।
कागज पर रगड़ने से यह उस पर काला निशान बना देता है। इस कारण इसे ‘काला सीसा’ (Black lead) भी कहते हैं। यह ताप एवं विद्युत का सुचालक होता है। अतः इसका व्यवहार इलेक्ट्रोड तथा कार्बन आर्क बनाने में किया जाता है।
ग्रेफाइट का उपयोग
1. धातुओं को गलाने के लिए प्रयुक्त होने वाले उच्च तापसह क्रुसिवल (Refractory crucibles) के निर्माण में।
2. शुष्क सेलों और विद्युत अपघटन क्रियाओं, आदि में इलेक्ट्रोड के रूप में।
3. पेंसिल (Pencil) तथा रंग बनाने में।
4. ग्रेफाइट चूर्ण का उपयोग मशीनों में शुष्क संहक (Dry lubricant) के रूप में होता है।
5. काफी उच्च दाब पर उत्प्रेरक की उपस्थिति में ग्रेफाइट को गर्म करने पर हीरा में परिवर्तित हो जाता है।
पेंसिल में प्रयुक्त होने वाला काला सीसा ग्रेफाइट होता है।
काजल
काजल कार्बन युक्त पदार्थों को हवा की अपर्याप्त मात्रा में जलाकर प्राप्त धुएं को कम्बलों पर एकत्र कर प्राप्त किया जाता है। इसमें लगभग 95% कार्बन मौजूद होता है।
इसका उपयोग प्रिटिंग की स्याही, काला रंग तथा जूते की पॉलिश बनाने में किया जाता है। यह आंखों में लगाने (अंजन के रूप में) के काम में भी लाया जाता है।