What is an organic compound and its types ?
कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं।
प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। Life सिस्टम में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें हाइड्रोजन भी रहता है।
ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं।
कार्बनिक यौगिक एवं प्रकार
मिथेन
यह एक कार्बनिक गैस है। इसे ‘मार्श गैस’ के नाम से भी जाना जाता है। प्राकृतिक रूप से यह सब्जियों के विघटन से प्राप्त की जाती है। प्रयोगशाला में यह सोडियम ऐसीटेट को सोडालाइम के साथ गर्म करके प्राप्त किया जाता है। ऐल्युमिनियम कार्बाइड पर जल की प्रतिक्रिया से व्यापारिक स्तर पर मिथेन प्राप्त किया जाता है। यह प्राकृतिक गैस का प्रमुख अवयव है। उसमें यह 90% मात्रा में मौजूद रहता है। हवा के साथ यह विस्फोटक मिश्रण बनाता है जिस कारण कोयले की खानों में प्रायः भयानक विस्फोट हुआ करते हैं। इसका उपयोग गैसीय ईंधन के रूप में, कार्बनिक यौगिकों के निर्माण में, कार्बन ब्लैक बनाने में, हाइड्रोजन के औद्योगिक उत्पादन, आदि में होता है।
एथीलिन
इसका उपयोग पॉलीथीन प्लास्टिक बनाने, मस्टर्ड गैस बनाने, निश्चेतक के रूप में, ऑक्सी एथीलिन ज्वाला उत्पन्न करने, आदि में होता है।
ऐसीटिलीन
इसका उपयोग प्रकाश उत्पन्न करने, कपूर बनाने, निश्चेतक के रूप में, धातुओं को काटने जोड़ने में, बेजीन के संश्लेषण में, कच्चे फलों को कृत्रिम रूप से पकाने, आदि में होता है। इसकी खोज अमेरिकी वैज्ञानिक विल्सन ने की थी।
क्लोरो फ्लोरो कार्बन (Chloro Fluoro Carbon)
सी.एफ.सी. का पूरा नाम क्लोरो फ्लोरो कार्बन (Chloro Fluoro Carbon) होता है। यह क्लोरीन, फ्लोरीन तथा कार्बन परमाणुओं के यौगिकों का संघटन है। यह ओजोन परत के क्षरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सी.एफ.सी. (CFC) को ‘फ्रिऑन’ (Freon) भी कहा जाता है।
इथाइल ऐल्कोहॉल
यह एक रंगहीन द्रव है जो अत्यधिक ज्वलनशील होता है। इसके पीने से मानव शरीर में उत्तेजना पैदा होती है। इस कारण इसका उपयोग मादक द्रव या शराब (Wine) के रूप में किया जाता है। यह फलों व स्टार्चयुक्त अनाजों से प्राप्त किया जाता है। औद्योगिक दृष्टि से इसका उत्पादन किण्वन विधि द्वारा किया जाता है। इसका उपयोग मोटर व हवाई जहाजों में ईंधन के रूप में, पारदर्शक साबुन बनाने में, इत्र व अन्य सुगन्धित पदार्थ बनाने में, शराब, आदि के निर्माण में किया जाता है।
मिथाइल ऐल्कोहॉल (Methyl Alcohol)
यह एक विषैला द्रव होता है। जिसकी गंध शराब की तरह होती है। इसके सेवन से व्यक्ति अंधा हो जाता है तथा अधिक मात्रा में पी लेने से मृत्यु तक भी हो सकती है। जहरीली शराब पीने वाले अधिकांश लोगों की मृत्यु इसी मिथाइल ऐल्कोहॉल के कारण होती है। इसका उपयोग पेट्रोल के साथ मिलाकर ईंधन के रूप में, कृत्रिम रंग बनाने में तथा वार्निश, आदि के विलायक के रूप में होता है।
इथिलीन ग्लाइकॉल (Ethylene Glycol)
यह एक डाइहाइड्रिक ऐल्कोहॉल है तथा अपने मीठे स्वाद के कारण इस नाम से पुकारे जाते हैं। ठंडे प्रदेशों में हिमांक कम करने के लिए इसका उपयोग कारों के रेडियेटरों में किया जाता है।
ग्लिसरौल (Glycerol)
यह प्रोपेन का ट्राइहाड्रॉक्सी व्युत्पन्न है। इसका व्यापारिक नाम ग्लिसरीन (Glycerine) है। यह मुक्त अवस्था में शक्कर के किण्वन घोल (Fermented sugar solution) तथा रक्त (Blood) में अल्प मात्रा में पाया जाता है। संयुक्त अवस्था में यह वसा तथा वनस्पति तेलों में उच्च कार्बनिक अम्लों के ईस्टर (ग्लिसराइड) के रूप में पाया जाता है। सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल की उपस्थिति में यह सान्द्र नाइट्रिक अम्ल के साथ अभिक्रिया कर ग्लिसरौल ट्राइनाइट्रेट (ट्राइनाइटो) ग्लिसरीन या TNG बनता है। TNG एक शक्तिशाली विस्फोटक है जिसका उपयोग डाइनामाइट (Dynamite) एवं अन्य विस्फोटक बनाने में होता है। ग्लिसरौल का उपयोग पारदर्शक साबुन, जूतों की पॉलिश, छापे की स्याही, शृंगार की सामग्रियां बनाने, अनेक कार्बनिक यौगिकों के बनाने में, शक्तिवर्द्धक दवा बनाने, स्नेहक के रूप में, परिरक्षक के रूप में प्रतिहिमीभूत (Antifreeze), आदि के रूप में होता है।
डाईथाइल ईथर (Diethyl Ether)
ईथर श्रेणी के सदस्यों में डाईथाइल ईथर सबसे महत्त्वपूर्ण है। इसे सिर्फ ईथर भी कहा जाता है। इसका उपयोग निश्चेतक (Anaesthetic agent) के रूप में होता है। यह क्लोरोफॉर्म से अच्छा निश्चेतक माना जाता है।
क्लोरोफॉर्म
इसकी खोज सर्वप्रथम 1831 में लीबिग ने की। श्वास के साथ इसका वाष्प लेने से बेहोशी होती है। यही कारण है, कि इसका उपयोग निश्चेतक के रूप में होता हैं।
आयोडोफॉर्म
यह उर्ध्वपातित होता है। यह एक तीव्र कीटाणुनाशक (Bactericidal) पदार्थ है। अत: जीवाणुनाशक (Antiseptic) की तरह इसका उपयोग दवा में होता है।
पायरीन
कार्बन टेट्राक्लोराइड (CCL) को पायरीन के नाम से जाना जाता है जो बिजली से लगी आग बुझाने के काम आता है।
यूरिया (Urea)
यूरिया को सर्वप्रथम 1773 में मूत्र से प्राप्त किया गया था। वोहलर (Wohler) ने 1828 में । इसे अमोनियम सायनेट से प्रयोगशाला में संश्लेषित किया था। यह एक प्रकार का कार्बनिक यौगिक था, जिसे प्रयोगशाला में संश्लेषित किया गया। यूरिया में 46% नाइट्रोजन की मात्रा पायी जाती है। यह एक ठोस रंगहीन, गंधहीन पदार्थ है जो जल में विलेय है। यह जीव जन्तुओं के मूत्र में उपस्थित रहता है। इसका मुख्य उपयोग उर्वरक के रूप में होता है। इसके अतिरिक्त नाइट्रोजन गैस, बेरोनल दवा बनाने में, यूरिया प्लास्टिक बनाने में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
फॉर्मेलीन (Formalin)
यह एक उत्तम परिरक्षक (Preservatives) के रूप में प्रयुक्त होता है।
फॉर्मिक अम्ल
यह लाल चींटी (Red ants) तथा मधुमक्खी में पाया जाता है। सर्वप्रथम यह लाल चींटी को जल के साथ स्रावित करके बनाया गया था, इसी कारण इसे फॉर्मिक अम्ल कहा गया क्योंकि लैटिन (Latin) भाषा में लाल चींटी का नाम फॉर्मिकस (Formicus) है। इसका उपयोग रोगाणुनाशी के रूप में, गठिया रोग की दवा के रूप में, रबड़ उद्योग, चमड़ा उद्योग, कपड़ा उद्योग, आदि में होता है।
ऐसीटिक अम्ल (Acetic Acid)
यह अनेक फलों के रसों में मुक्त अवस्था में पाया जाता है। यह विशेष रूप से सिरके (Vinegar) में पाया जाता है। इसे व्यापारिक स्तर पर पाइरोलिग्यिस अम्ल (Pyrolignious acid) से प्राप्त किया जाता है। सेलुलोज ऐसीटेट के रूप में इसका उपयोग फोटोग्राफिक फिल्म तथा रेयान (Rayon) बनाने । में होता है। इसका 4-6% तनु घोल ‘सिरका’ (Vinegar) कहलाता है।
ऑक्जैलिक अम्ल
यह पोटैशियम लवण के रूप में प्रायः वनस्पतियों में पाया जाता है। पोटैशियम हाइड्रोजन लवण के रूप में यह ऑक्जैलिस (Oxalis) तथा रूमेक्स (Rumex) परिवार के पौधों में पाया जाता है। कैल्सियम ऑक्जैलेट (Calcium oxalate) के रूप में यह प्रायः पौधों के कोशिकाओं (Cells) में पाया जाता है। थोड़ी मात्रा में यह मूत्र में भी पाया जाता है। मानव गुर्दे (Kidney) में कैल्सियम ऑक्जैलेट के एकत्रित होने के कारण ही पथरी (Stone) की बीमारी पैदा होती है। फेरस ऑक्जैलेट के रूप में इसका उपयोग फोटोग्राफी में होता है। इससे कपड़े में लगे स्याही के धब्बे दूर किये जाते हैं।
एसीटोऐसटिक अम्ल
यह एक रंगहीन द्रव है। यह अपघटित होकर एसीटोन व कार्बन डाइऑक्साइड में परिवर्तित हो जाती हैं। मधुमेह के रोगियों के मूत्र में इसकी अधिकता पायी जाती है।
साइट्रिक अम्ल
यह एक मोनोहाइड्रोक्सी अम्ल है जो जल में हाइड्रोजन बंधों के कारण अधिक विलेय परन्तु कार्बनिक विलायकों में अविलेय होता है। यह खट्टे दूध में उपस्थित रहता है। मांसपेशियों में इसी अम्ल के एकत्रित होने के कारण थकावट का अनुभव होता है।
टार्टरिक अम्ल (Tartaric Acid)
यह डाइहाइड्रॉक्सी डाइकोर्बेक्सिलिक अम्ल है जो इमली तथा अंगूर में उपस्थित रहता है। इसका उपयोग बैकिंग पाउडर बनाने में किया जाता है।
बेंजीन (Benzene)
यह सभी ऐरोमैटिक यौगिकों का जन्मदाता माना जाता है। इसका उपयोग घोलक के रूप में, ऊनी कपड़ों की शुष्क धुलाई में, पेट्रोल के साथ मिलाकर मोटर ईंधन के रूप में, अनेक एरोमैटिक यौगिक के निर्माण में, विस्फोटकों के निर्माण, आदि में होता है।
नाइट्रोबेंजीन
इसे मिरबेन का तेल (Oil of Mirbance) भी कहा जाता हैं, इसका उपयोग ट्राइनाइट्रोबेंजीन (TNB) नामक विस्फोटक के निर्माण में होता है।
ऐनिलीन
इसका उपयोग रबड़ उद्योग में, औषधियों के निर्माण में तथा अनेक रंजकों (Dyes) के उत्पादन में होता है।
फिनॉल (Phenol)
इसे कार्बोलिक अम्ल (Carbolic acid) भी कहा जाता है। इसका उपयोग पिक्रिक अम्ल जा (विस्फोटक), फिनॉल्फथैलीन, बेकेलाइट, सैलोल, एस्प्रीन, सैलिसिलिक अम्ल, आदि के निर्माण में होता है।
बेन्जल्डिहाइड
इसका उपयोग स्वादिष्ट मसाला बनाने व रासायनिक क्रियाओं में किया जाता है।
बेन्जोइक अम्ल (Benzoic Acid)
इसका प्रयोग खाद्य पदार्थों के संरक्षण में किया जाता है।
सैलिसिलिक अम्ल (Salicylic Acid)
इसका उपयोग दर्द निवारक दवाओं के निर्माण में होता है।
टॉलूईन (Toluene)
इसका उपयोग टी.एन.टी. (TNT) विस्फोटक के निर्माण में, घोलक के रूप में, शुष्क धुलाई (Dry cleaning) में, सैकरीन (Saccharin) एवं क्लोरामिन-टी (Chloramine-T) नामक दवाओं के निर्माण में तथा पेट्रोल एवं बेंजीन के साथ प्रतिहिमीभूत (Antifreeze) के रूप में होता है।
सैकरीन (Sachrin)
चीनी से 550 गुना मीठा होता है जिसका प्रयोग शर्बतों में तथा मधुमेह (डायबिटीज) के रोगियों के लिए चीनी की जगह किया जाता है। इसका भोज्य मान (Caloric value) कुछ भी नहीं होता है।
नैप्थैलीन (Naphthalene)
यह एक पॉलीन्यूक्लियर हाइड्रोकार्बन है जिसकी गोलियां कीड़ों को कपड़े से दूर रखने में उपयोगी होती है।
कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrates)
यह वनस्पतियों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। ये कई प्रकार के होते हैं, जैसे—मोनोसैकराइड, डाइसैकराइड, ट्राइसैकराइड, ऑलिगों सैकराइड। ये तुरन्त ऊर्जा प्रदान करने वाले कार्बनिक यौगिक होते हैं। ग्लूकोज, शर्करा, स्टार्च, आदि कार्बोहाइड्रेट के प्रमुख उदाहरण हैं।
नियोप्रीन (Neoprene)
यह 2-क्लोरोब्यूटाडाइन (2-Chirobutadiene) के बहुलीकरण से बनता है इसका उपयोग विद्युत रोधी पदार्थ (Insulating material), विद्युत तार, कनवेयर बेल्ट (Conveyor belt), खनिज तेल ले जाने वाले पाइप बनाने में किया जाता है।
थाईकॉल
यह दूसरा कृत्रिम रबर है जो डाइक्लोरो इथेन (Dichloro Ethane) को पॉलीसल्फाइड (Polysulphide) के अभिक्रिया से बनाया जाता है इसका उपयोग खनिज तेल ले जाने वाले पाइप बनाने में, विलायक जमा करने वाला टैंक (Solvent storage tank), आदि बनाने में किया जाता है। थाईकॉल रबर को ऑक्सीजन मुक्त करने वाले रसायनों के साथ मिलाकर रॉकेट इंजनों में ठोस ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है।
बैकेलाइट (Bakelite)
यह फिनॉल तथा फॉर्मेल्डिहाइड को सोडियम हाइड्रॉक्साइड की उपस्थिति में गर्म करके प्राप्त किया जाता है। इसका उपयोग रेडियो, टेलीविजन, आदि के केस, बाल्टी, आदि बनाने में किया जाता है l
पॉलीथीन (Polythene)
यह एक थर्मोप्लास्टिक है जो एथिलीन के बहुलीकरण से प्राप्त किया जाता है। इसका उपयोग पाइप, तार के ऊपर आवरण, पैकिंग थैलियां, आदि बनाने में किया जाता है।
रैक्सिन (Rexin)
यह एक कृत्रिम चमड़ा है। इसका निर्माण सेल्यूलोज नामक वनस्पति से होता है। अच्छे रैक्सिन मोटे केनवास पर पाइरोक्सिलिन का लेप देकर बनाया जाता है।
टेफ्लॉन (Tefion)
एथिलीन के चारों हाइड्रोजन परमाणुओं को फ्लोरीन द्वारा प्रतिस्थापित करने पर टेट्राफ्लोरो एथिलीन बनता है जिसके बहुत से अणु बहुलीकृत होकर टेफ्लॉन नामक प्लास्टिक का निर्माण करते हैं, यह एक अदहनशील पदार्थ है। यह एक अत्यंत उपयोगी प्लास्टिक है।
नियोप्रीन (Neoprene)
यह एक संश्लिष्ट रबड़ है। प्राकृतिक रबड़ की तरह यह जल्दी जलता नहीं है। इसका उपयोग विद्युत केबल में विद्युत अवरोध पदार्थ के रूप में होता है।
आंसु गैस (Tear Gas)
आंसु गैस का प्रयोग कभी-कभी अनियंत्रित भीड़ को तीतर-बीतर करने के लिए किया जाता है। इस गैस के मानव नेत्र के सम्पर्क में आने से आंखों में जलन पैदा होती है एवं आंसु टपकने लगते हैं। एल्फा क्लोरो एसीटोफिनॉन, एक्रोलिन, आदि कुछ प्रमुख आंसु गैस है। इसे ग्रीनस में भरकर प्रयोग किया जाता है।
मस्टर्ड गैस (Mustard Gas)
यह एक विषैली गैस है, जिसका प्रयोग प्रथम विश्व युद्ध के समय रासायनिक हथियार के रूप में किया गया था। जब एथिलीन की अभिक्रिया सल्फर मोनोक्लोराइड के साथ करायी जाती है, तो मस्टर्ड गैस प्राप्त होती है। इसमें सरसों तेल (Mustard oil) की तरह झांस (Smell) होती है जिस कारण इसका यह नाम पड़ा। इसकी वाष्प त्वचा पर फफोला पैदा करती है तथा फेफड़ों को अत्यधिक प्रभावित करती है। इसकी वाष्प रबड़ को भी पार कर जाती है।
ल्यूइसाइट (Lewisite)
मस्टर्ड गैस की तरह यह भी एक अत्यंत ही जहरीली गैस है जिसका उपयोग द्वितीय विश्व युद्ध में रासायनिक हथियार (Chemical weapons) के रूप में किया गया था।
क्लोरोपिक्रिन (Chloropicrin)
यह एक विषैली गैस है जिसका प्रयोग युद्ध काल में किया जाता है।
मिथाइल आइसोसायनेट (Methyl Isocynate)
यह एक विषैली गैस है। भोपाल में कीटनाशक दवा बनाने वाली कम्पनी यूनियन कार्बाइड कारखाने से इसी गैस का रिसाव दुर्घटनावश हुआ था जिससे काफी संख्या में लोग प्रभावित हुए थे।
मार्श गैस
मिथेन को मार्श गैस के नाम से जाना जाता है। यह तालाबों के रूके हुए जल और दलदली स्थानों पर बुलबुलों के रूप में निकलता है। दलदली स्थानों पर नीचे दबी हुई वनस्पति और जैव पदार्थों के जीवाणु विच्छेदन से इसकी उत्पत्ति होती है।
क्लैथरेट (Clathret)
यह समुद्र की तलहटी में भारी मात्रा में जमा ईंधन है जो मूल रूप से पानी के अणुओं में फंसी मिथेन गैस है। इसका उपयोग रेफ्रिजरेटरों में प्रशीतक, वातानुकूलित संयंत्रों, इलेक्ट्रॉनिक उद्योग, ऑप्टिकल उद्योग तथा फार्मेसी उद्योग में व्यापक रूप से होता है।
गोबर गैस (Gobar Gas): गीले गोबर के सड़ने से ज्वलनशील मिथेन गैस बनती है जो वायु की उपस्थिति में सुगमता से जलती है।
द्रवीभूत प्राकृतिक गैस (Liquified Natural Gas): द्रवित पेट्रोलियम गैस (LPG) की तरह ही यह प्राकृतिक गैसों का द्रवित रूप है। इसमें मुख्यतया मिथेन रहती है अर्थात् इसका मुख्य संघटक मिथेन है।
एल.एस.डी. (L.S.D.): इसका पूरा नाम लाइसर्जिक अम्ल डाइथाइलेमाइड है। यह एक भ्रम उत्पन्न करने वाली दवा है।
एस्पीरिन (Aspirin): एसीटाइल सैलिसिलिक अम्ल को ‘एस्पीरिन’ कहा जाता है। यह एक ज्वरनाशी तथा पीड़ानाशी दवा है।
पैरल्डिहाइडः इसका उपयोग नींद लाने वाली दवा के रूप में होता है।
यूरोट्रोपीन: इसका उपयोग मूत्र रोग की दवा के रूप में होता है।
क्लोरेटोन: इसका उपयोग पहाड़ी यात्रा या समुद्री यात्रा में चक्कर आने से रोकने की दवा के रूप में होता है।
गेमेक्सेन: इसका रासायनिक नाम बेंजीन हेक्साक्लोराइड प्राकृतिक स्रोत (Benzen hexachloride या B.H.C.) है। यह एक प्रबल कीटाणुनाशक है।
क्लोरल: यह एक तैलीय व रंगहीन द्रव है। इसका रासायनिक नाम ट्राइक्लोरोऐसीटल्डिहाइड है। इसका मुख्य उपयोग डी.डी.टी. (D.D.T.) बनाने में किया जाता है।
डी.डी.टी. (D.D.T.): इसका पूरा नाम डाइक्लोरो डाइफिनाइल टाइक्लोरोइथेन है। यह एक प्रमख कीटाणुनाशक (Germicide) है। इसे क्लोरल से बनाया जाता है।