Hydrogen element and its properties
हाइड्रोजन आवर्त सारणी का प्रथम तत्व है। यह अन्य सभी तत्वों से हल्का होता है।
सूर्य और तारों का आधार भाग हाइड्रोजन का बना है।
हाइड्रोजन को भविष्य का ईधन कहा जाता है। इसके नाभिक में सिर्फ एक प्रोटॉन (Proton) होता है।
इसकी खोज 1766 ई. में हेनरी कैवेडिस ने की।
हाइड्रोजन सभी अम्लों का अनिवार्य अंग है।
हाइड्रोजन निर्माण की विधि
1. लाल तप्त लोहे पर भाप प्रवाहित करने पर हाइड्रोजन गैस प्राप्त होती है।
2. हाइड्रोलिथ की जल से प्रतिक्रिया करने पर हाइड्रोजन गैस प्राप्त होती है।
3. सोडियम की जल के साथ प्रतिक्रिया करने पर हाइड्रोजन गैस प्राप्त होती है।
4. तेलों का हाइड्रोजनीकरण (Hydrogenation of Oils) : उच्च दाब पर निकेल उत्प्रेरक की उपस्थिति में हाइड्रोजन वनस्पति तेलों (Vegetable oils) से संयोग करके उन्हें वनस्पति घी में परिवर्तित कर देता है, इस प्रक्रिया को तेलों का ‘हाइड्रोजनीकरण’ कहते हैं।
हाइड्रोजन के उपयोग
1. प्रायः अन्य गैसों के साथ मिश्रित कर ईंधन के रूप में।
2. हैबर विधि से अमोनिया के उत्पादन में होता है।
3. वनस्पति घी के निर्माण में।
4. गैसोलिन (Gasolene) के उत्पादन में।
5. ऑक्सीजन-हाइड्रोजन लौ (ताप 2,800°C) का उपयोग धातुओं को काटने तथा जोड़ने में होता है।
6. हल्की गैस होने के कारण बैलून में भरने में होता है, किन्तु ज्वलनशील होने के कारण आजकल इसकी जगह हीलियम या हीलियम-हाइड्रोजन मिश्रण (He 85% + H215%) का व्यवहार होता है।
7. द्रव हाइड्रोजन रॉकेट ईंधन के रूप में प्रयुक्त होता है।
हाइड्रोजन के समस्थानिक
हाइड्रोजन के तीन समस्थानिक होते हैं, ये है:
1. प्रोटियम (1H1) ।
2. ड्यूटेरियम (1H2 या D)।
3. ट्राइटियम (1H3 या T)।
प्रोटियम (Protium): प्रोटियम की परमाणु संख्या एक तथा द्रव्यमान संख्या भी एक होता है।
ड्यूटेरियम (Deuterium): ड्यूटेरियम को भारी हाइड्रोजन कहा जाता है। इसकी परमाणु संख्या 1 तथा द्रव्यमान संख्या 2 होती है। ड्यूटेरियम का उपयोग कार्बनिक अभिक्रियाओं की क्रियाविधि (Mechanism) समझने में तथा नाभिकीय अभिक्रियाओं (Nuclear reactions) में बमबारी के लिए होता है।
ट्राइटियम (Tritium): यह हाइड्रोजन का एक दुर्लभ समस्थानिक है। इसकी परमाणु संख्या 1 तथा द्रव्यमान संख्या 3 होती है।
भारी जल (Heavy Water)
ड्यूटेरियम के ऑक्साइड को भारी जल कहा जाता है क्योंकि इसमें ड्यूटेरियम (D) होता है जो हाइड्रोजन का एक भारी समस्थानिक है।
इसकी खोज सन् 1932 में यूरे तथा वाशबर्न ने की थी। भारी जल को भारी कहा जाता है क्योंकि इसका घनत्व साधारण जल से अधिक होता है। भारी जल का उपयोग ड्यूटेरियम के अनेक यौगिकों के निर्माण में तथा यूरेनियम के नाभिकीय विखण्डन में तीव्रगामी न्यूट्रॉनों को मंद करने के लिए न्यूट्रॉन मंदक (Neutron moderator) के रूप में होता है।
हाइड्रोजन परॉक्साइड (Hydrogen Peroxide)
हाइड्रोजन परॉक्साइड की खोज सन् 1818 में श्रीनार्ड ने की।
यह अपने ऑक्सीकारक गुणों के कारण विरंजक का कार्य करता है।
यह रेशम, ऊन, बाल, तिनके , हाथी दांत, आदि कोमल वस्तुओं का विरंजन करने में प्रयुक्त होता है। इसका उपयोग बालों के ब्लीचिंग (Bleeching) में होता है
इसका उपयोग पुराने तैल चित्रों (Oil paintings) को चमकदार बनाने तथा उसके रंग को पुन: उभारने के लिए किया जाता है। यह जर्मनाशी और प्रतिरोधी के रूप में घाव धोने, गरारे करने, दांत और कान साफ करने के काम आता है।
यह दूध, शराब, आदि का परिरक्षण करने में प्रयुक्त होता है। यह रॉकेट, पनडुब्बियों और टॉरपीडों में ईंधन के रूप में प्रयुक्त होता है क्योंकि इससे ऑक्सीजन प्राप्त होती है।