पराबैंगनी विकिरण (Ultra-violet Radiation)
इस विकिरण का पता रिटर (Ritter) ने लगाया था। ये सूर्य, आर्क, विद्युत स्पार्क, विसर्जन नलिका, आदि से प्राप्त होती हैं। इनकी भेदन क्षमता एक्स-किरणों से कम होती है। इनमें फोटोग्राफिक प्लेट पर रासायनिक क्रिया, प्रतिदीप्ति उत्पन्न करने तथा प्रकाश-विद्युत प्रभाव के गुण होते हैं।
खोज
इनकी खोज इस प्रेक्षण से बहुत कुछ जुङी हुई हैं, कि रजत नीरेय लवण (सिल्वर क्लोराइड) धूप पङने पर काले पङ जाते हैं। 1801 में जोहन्न विल्हैम रिटर ने एक विशिष्ट प्रेक्षण किया, कि बैंगनी प्रकाश के परे (ऊपर) अप्रत्यक्ष किरणें, रजत नीरेय के लवण में भीगे कागज को काला कर देतीं है। उसने उन्हें डी-ऑक्सिडाइजिंग किरणें कहा जिससे कि उनकी रसायनीय क्रियाओं पर बल दिया जा सके साथ ही इन्हें वर्णक्रम के दूसरे सिरे पर उपस्थित ऊष्म किरणों से पृथक पहचाना जा सके। कालांतर में एक सरल शब्द रासायनिक किरणें प्रयोग हुआ। जो कि उन्नीसवीं शताब्दी तक चला, जब जाकर दोनों के ही नाम बदले और पराबैंगनीएवं अधोरक्त’ कहलाए।
उपयोग
इनका संसूचन (Detection) प्रकाश-विद्युत प्रभाव, प्रतिदीप्त पर्दा अथवा फोटोग्राफिक प्लेट द्वारा किया जाता है। इनका उपयोग सिकाई करने, प्रकाश-विद्युत प्रभाव को उत्पन्न करने, हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट करने, आदि में किया जाता है।