गामा-किरणें (γ-किरण)
गामा-किरणों को इनके अन्वेषक के नाम पर ‘बैकुरल किरणें’ भी कहते हैं। ये अत्यन्त लघु तरंग दैर्ध्य की विद्युत-चुम्बकीय तरंगें होती है।
ये उच्च परमाणु द्रव्यमान के रेडियोधर्मी पदार्थों, जैसे यूरेनियम, रेडियम, थोरियम. प्लूटोनियम, आदि के परमाणुओं के नाभिकों के विघटन की क्रिया से उत्सर्जित होती है। इसकी भेदन क्षमता अल्फा तथा बीटा किरणों के मुकाबले अधिक होता है ये किरणें गैस को आयनीकृत कर देती हैं।
इनकी आवृत्ति बहुत अधिक होने के कारण ये अपने साथ बहुत अधिक ऊर्जा ले जाती हैं। इनकी भेदन क्षमता इतनी अधिक होती है, कि ये 30 सेमी. मोटी लोहे की चादर को भेद कर निकल जाती हैं।
ये फोटोग्राफिक प्लेटों पर रासायनिक क्रिया करती हैं। ये सोडियम आयोडाइड तथा अन्य प्रस्फुरक पदार्थों की पर्त वाले पर्दे (Fluorescent screen) पर प्रस्फुर (चमक) उत्पन्न करती है। इन प्रस्फुरों के द्वारा अथवा फोटोग्राफिक प्लेट पर प्रभाव से इन किरणों की पहचान की जाती है। इनका उपयोग नाभिकीय अभिक्रिया तथा कृत्रिम रेडियोधर्मिता में किया जाता है।
उपयोग
- गामा किरणे, ब्रह्माण्ड में होने वाली अति उच्च ऊर्जा वाली परिघटनाओं के बारे में जानकारी देता है।
- गामा किरणों के द्वारा आनविक परिवर्तन किया जा सकता है। इसी प्रक्रिया द्वारा अर्ध-रत्नों (semi-precious stones) के गुणों को बदला जाता है।
- संवेदक (सेन्सर) – स्तर (levels), घनत्व तथा मोटाई मापने के लिये।
- जीवाणुओं को मारने के लिये – इसे गामा किरणन कहते हैं। गामा किरणन द्वारा चिकित्सा उपकरणों का रोगाणुनाशन (sterilization) किया जाता है जो रासायनिक विधि तथा अन्य विधियों से की जाने वाले रोगाणुनाशन का विकल्प बनकर उभरी है।
- गामा किरणों के द्वारा भोज्य पदार्थों से उन जीवाणुओं को मार दिया जाता है जो उनका क्षय करते हैं।
- फल और शब्जियों का अंकुरण रोकने के लिये, या अंकुरण की गति कम करने के लिये या अंकुरण में देरी करने के लिए।
- कैंसर की चिकित्सा में (गामा किरणों के कारण कैंसर भी हो सकता है।)