What is Monera Kingdom ?
इसके अन्तर्गत सभी प्रोकैरियोटिक जीव आते हैं। इस जगत में जीवाणु (बैक्टीरिया), एक्टिनोमाइसिटीज, आर्कीबैक्टीरिया और और सायनोबैक्टीरिया (नील-हरित शैवाल) आते हैं। बैक्टीरिया सर्वाधिक प्राचीन जीव हैं। ये विभिन्न पर्यावरण मृदा, जल, वायु, पादप तथा जन्तु में व्याप्त होते हैं।
जीवाणु विभिन्न आकृतियों में मिलते हैं; जैसे – विब्रियो (कोमा), स्पाइरिलम (सर्पिलाकार)।
जीवाणु (Bacteria) – बैक्टीरिया
जीवाणुओं का अभिरंजन (Staining of Bacteria)
ग्राम अभिरंजन की क्रिया में जीवाणुओं को क्रिस्टल वायलेट एवं आयोडीन के घोल में अभिरंजन करने पर सभी बैंगनी हो जाते हैं। इसके पश्चात् एसीटोन या एल्कोहॉल से साफ करने पर ग्राम धनात्मक जीवाणुओं में बैंगनी रंग बना रहता है, जबकि ग्राम ऋणात्मक जीवाणु रंगहीन हो जाते हैं। इसके पश्चात सेफरेनीन या कार्बोल फ्यूसीन से अभिरंजन देने पर ग्राम धनात्मक जीवाणु बैंगनी ही रहते हैं, जबकि ग्राम ऋणात्मक गुलाबी लाल हो जाते हैं।
क्रिश्चिन ग्राम ने अभिरंजन के आधार पर जीवाणुओं को दो समूह ग्राम धनात्मक (Gram positive) व ग्राम ऋणात्मक (Gram negative) में रखा।
ग्राम धनात्मक तथा ग्राम ऋणात्मक जीवाणुओं में अन्तर
Difference between Gram Positive and Gram Negative Bacteria
जीवाणुओं की संरचना (Structure of Bacteria)
जीवाणुओं में फ्लेजेलीन नामक प्रोटीन से बनी कशाभिकाएँ होती हैं। ग्राम ऋणात्मक जीवाणुओं में रोम अथवा फिम्ब्री पाये जाते हैं।
जीवाणुओं की कोशिका भित्ति म्यूरीन, पेप्टाइडोग्लाइकन या म्यूकोपेप्टाइड की बनी होती है। ग्राम धनात्मक जीवाणु की कोशिका भित्ति में टिकॉइक अम्ल पाया जाता है।
कोशिका भित्ति के अन्दर जीवद्रव्य होता है, जो फॉस्फोलिपिड एवं प्रोटीन की बनी जीवद्रव्य कला से घिरा रहता है। जीवद्रव्य कला अन्तवलित होकर मीसोसोम बनाती है। जीवद्रव्य कला में इलेक्ट्रॉन अभिगमन तन्त्र (Electron Transport System-ETS) तथा ऑक्सीकीय फॉस्फोरिलीकरण के एन्जाइम पाये जाते हैं।
जीवाणुओं में वास्तविक केन्द्रक का अभाव होता है और सामान्य गुणसूत्र नहीं होते। वलयाकार, द्विरज्जुकी DNA होता है परन्तु इसके साथ हिस्टोन प्रोटीन जुड़ी हुई नहीं होती, इस पूर्ण समूह को केन्द्रकाभ (nucleoid) या जीनोफोर (genophore) कहते हैं।
कुछ जीवाणुओं; जैसे-ई.कोलाई में प्लाज्मिड पाया जाता है। यह लैंगिक जनन में सहायक (F-कारक), प्रतिरोधक शक्ति प्रदान करने (R-कारक) तथा कोलिसन्स संश्लेषण की क्षमता (Col-कारक) रखता है। जब प्लाज्मिड, केन्द्रकीय DNA से जुड़ा होता है, तब इपिसोम (Episome) कहलाता है।
जीवाणु एवं पोषण (Nutrition)
पोषण के आधार पर जीवाणु परपोषी एवं स्वपोषित होते हैं
परपोषी (Heterotrophic)
इनमें पर्णहरिम नहीं होता, अत: ये अन्य जीवित या मृत जीवों पर निर्भर होते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं जैसे – माइकोबैक्टीरियम, क्लॉस्ट्रिडियम एवं स्ट्रेप्टोकोकस ।
1. परजीवी, जो जीवित पौधों तथा जन्तुओं से अपना भोजन लेते है,
2. मृतोजीवी, जो मृत कार्बनिक पदार्थों से अपना भोजन लेते है; जैसे-बेसिलस माइकोइडिस।
3. सहजीवी, जो दूसरे जन्तु या पौधों के साथ रहकर एक दूसरे को लाभ पहुँचाते हैं; जैसे – राइजोबियम।
स्वपोषी (Autotrophic)
ये CO2, H2S व अन्य पदार्थों से अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं। ये प्रकाश-संश्लेषी एवं रसायन-संश्लेषी होते हैं।
जीवाणुओं में जनन प्रक्रिया (Reproduction system in Bacteria)
कायिक जनन विखण्डन एवं मुकुलन द्वारा होता है।
अलैंगिक जनन, अन्त:बीजाणुओं; जैसे-क्लॉस्ट्रिडियम एवं बैसिलस में, चलबीजाणुओं द्वारा; जैसे – राइजोबियम में तथा कोनिडिया (conidia) द्वारा जैसे – स्ट्रेप्टोमाइसिस में होता है।
जीवाणुओं में लैंगिक जनन नहीं होता, परन्तु आनुवंशिक पुनर्योजन (Genetic Recombination) परन्तु होता है।
1. रूपान्तरण (Transformation). सर्वप्रथम ग्रिफिथ ने 1928 में रूपान्तरण की खोज की तथा एवरी, मैकलियोड और मैककार्टी ने 1944 में इसका विस्तृत अध्ययन किया। इस क्रिया में एक जीवाणु कोशिका का DNA दूसरी जीवाणु कोशिका में प्रवेश कर जाता है।
2. संयुग्मन (Conjugation) लैडरबर्ग एवं टैटम 1946 ने ई. कोलाई में इसकी खोज की, जबकि वॉलमैन एवं जैकोब 1956 ने इसका विस्तृत अध्ययन किया। संयुग्मन में दाता (= नर) का DNA (आनुवंशिक पदार्थ) ग्राही (= मादा) में संयुग्मन नलिका द्वारा चला जाता है। दाता कोशिका में लैंगिक कारक (sex factor) या उर्वरता कारक (fertility factor) होता है, जो लैंगिक रोमों के निर्माण के लिए उत्तरदायी होता है। F – कारक के मुख्य गुणसूत्र से संलग्न होने पर दाता कोशिका को Hfr (High frequency recombination) कहते हैं।
3. पारक्रमण (Transduction) जिण्डर एवं लैडरबर्ग ने 1952 में इसको खोज की। इसमें एक जीवाणु के गुण जीवाणुभक्षी (Bacteriophage) विषाणु के DNA द्वारा दूसरे जीवाणु में स्थानान्तरित होते रहते हैं, संक्रमण के समय जीवाणुभोजी विषाणु अपना DNA जीवाणु कोशिका में प्रविष्ट करा देता है और जीवाणु कोशिका में ही विषाणु के DNA का गुणन होता है तथा जीवाणु के DNA का कुछ भाग जीवाणुभोजी विषाणु के DNA से संयुक्त हो जाता है। जीवाणु भित्ति के फटने पर विषाणु स्वतन्त्र हो जाते हैं और नयी जीवाणु कोशिका पर आक्रमण करते हैं।
जीवाणुओं का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance of Bacteria)
लाभप्रद क्रियाएँ (Useful Activities)
नाइट्रोजन स्थिरीकारी जीवाणु पृथ्वी में स्वतन्त्र रूप से; जैसे-एजोटोबैक्टर तथा क्लॉस्ट्रिडियम या सहजीवी के रूप में; जैसे-लेग्युमिनोसी कुल के पौधों की जड़ों में, राइजोबियम लेग्युमिनोसेरम, सेस्बेनिया के तने की गाँठों में एरोराइजोबियम, ऑर्डीसिया की पत्ती की गाँठो में माइकोबैक्टीरियम तथा कैजुराइना एवं रूबस पौधों की जड़ों में, फ्रेन्क्रिया आदि में रहते हैं।
नाइट्रीकारी जीवाणु नाइट्रोसोमोनास एवं नाइट्रोबैक्टर क्रमश: अमोनिया को नाइट्राइट व नाइट्राइट को नाइट्रेट में बदलते हैं।
अमोनीकारी जीवाणु; जैसे बैसिलस जटिल प्रोटीन को सरल अमीनो अम्लों में परिवर्तित करते हैं।
सल्फर जीवाणु; जैसे थायोबैसिलस प्रोटीन पदार्थों के सड़ने से प्राप्त HIS को H,SO, में बदल देते हैं, जो कुछ लवणों से क्रिया करके सल्फेट बनाता है। दूध में उपस्थित जीवाणु लैक्टोस शर्करा को लैक्टिक अम्ल में परिवर्तित कर देते हैं। लेक्टोबैसिलस लैक्टिस तथा ल्यूकोनॉस्टॉक सिट्रोवोरम पनीर बनाने तथा स्ट्रेप्टोकोकस थमोफिलस व लैक्टोबैसिलस वल्गेरिस योगहर्ट बनाने में प्रयोग होते हैं।
एसिटोबैक्टर एसिटी सिरका बनाने में, बैसिलस मैगाथीरियम तम्बाकू की पत्तियों को स्वाद तथा सुगन्ध देने में माइकोकोकस कन्डीडेंस चाय की पत्तियों को स्वाद व सुगन्ध प्रदान करने, माइक्रोकोकस ग्लूटैमिकस लाइसीन बनाने तथा लेक्टोबैसिलस डेलबुक्री लैक्टिक अम्ल बनाने में प्रयोग होते हैं।
हानिकारक क्रियाएँ (Harmful Activities)
अनेक विनाइट्रीकारी जीवाणु; जैसे-बैसिलस डीनाइट्रीफिकेन्स, थायोबैसिलस डीनाइट्रीफिकेन्स मृदा में उपस्थित नाइट्रेट तथा अमोनिया के लवणों को स्वतन्त्र नाइट्रोजन में बदल देते हैं।
अनेक जीवाणु; जैसे-स्टेफिलोकोकस, साल्मोनेला आदि खाद्य विषाक्ता उत्पन्न करते हैं। DPT वेक्सीन डिफ्थीरिया, परटुसिस या काली खाँसी तथा टिटनेस की रोकथाम के लिए जबकि BCG वेक्सीन ट्यूबरकुलोसिस की रोकथाम के लिए दी जाती है।