How Electric Bulb works ?
विद्युत बल्ब का आविष्कार टॉमस एल्वा एडीसन ने किया था।
इसमें टंगस्टन धातु का एक पतला कुण्डलीनुमा तन्तु (फिलामेण्ट) लगा होता है। इस धातु का ऑक्सीकरण रोकने के लिए बल्ब के अन्दर निर्वात भर दिया जाता है। इसका आवरण पतले कांच का बना होता है। कभी-कभी बल्ब के अन्दर पूर्णतः निर्वात न करके उसमें नाइट्रोजन या आर्गन (अक्रिय) गैस भर दी जाती है।
बल्ब में अक्रिय गैस इसलिए भरते हैं क्योंकि निर्वात में उच्चताप पर टंगस्टन व धातु का वाष्पीकरण हो जाता है तथा यह वाष्पीकृत होकर बल्ब की दीवारों पर चिपक जाता है।
टंगस्टन धातु का प्रयोग इसलिए किया जाता है क्योंकि इसका गलनांक अत्यधिक (लगभग 3500°C) होता है। धारा प्रवाहित किए जाने पर तन्तु का ताप 1,500°C से 2,500°C तक हो जाता है और बल्ब काला पड़ जाता है l इसे ‘ब्लैकनिंग‘ कहते हैं। इस प्रक्रिया के बाद तन्तु कमजोर होकर टूट जाता है।
साधारण बल्ब में दी गई विद्युत ऊर्जा का केवल 5 से 10% भाग ही प्रकाश ऊर्जा में परिवर्तित होता है।