तना पौधे का वह भाग है जो कि भूमि एवं जल के विपरीत तथा प्रकाश (Light) की ओर वृद्धि करता है। तना प्रांकुर (Plumule) से विकसित होता है और शाखाओं, पतियों, फूल एवं फल धारण करता है।
तना पौधे का आरोही भाग है, जो भूमि के विपरीत प्रकाश की ओर गति करता है। (Negatively geotropic but positively phototropic). तने का आकार बेलनाकार, चपटा अथवा कोणीय (Angular) होता है। तने की अग्र सिरे पर कलिकाएँ (Buds) पायी जाती हैं, जिनसे तना वृद्धि करता है।

तने की विशेषताएं (Characteristics of stem):
- तना पौधे को दृढ़ता प्रदान करता है, जो तना में उपस्थित जाइलम तथा दृढ़ोत्तक (soloronchyma) के कारण होता है।
- यह शाखाओं, पत्तियों एवं पुष्पों को जन्म देता है।
- यह जड़ों द्वारा अवशोपित जल और खनिज लवणों को अन्य भागों तक तथा पत्तियों में संश्लेपित भोजन को जड़ सहित अन्य भागों तक पहुँचाता है।
- तनों में निश्चित पर्वसन्धियाँ (nodes) तथा पर्व (inter-nodes) होते है। शाखाएँ एवं पत्तियाँ सामान्यतया पर्वसन्धियों से ही निकलता है।
- तना जड़ों की भाँति खाद्य संग्रह भी करती है। जैसे-आलू, हल्दी, अदरक, गन्ना आदि। तना धनात्मक प्रकाशानुवर्ती तथा ऋणात्मक गुरुत्वानुवव्रती होता है ।
एकबीजपत्री तथा द्विबीजपत्री तने में अन्तर
एकबीजपत्री तना | द्विबीजपत्री तना |
इसमें कैम्बियम नहीं पाया जाता। फलतः द्वितीयक वृद्धि का अभाव होता है। | इसमें कैम्बियम पाया जाता है, इसलिए द्वितीयक वृद्धि भी पाई जाती है। |
मज्जा (pith) अनुपस्थित होता है। | मज्जा उपस्थित होता है। |
इसकी एपीडर्मिस पर रोम नहीं पाए जाते। | इसकी एपीडर्मिस पर रोम पाए जाते हैं। |
इसकी हाइपोडर्मिस स्क्लेरेन्काइमा की बनी होती हैं। | इसकी हाइपोडर्मिस कोलेन्काइमा की बनी होती है। |
इसमें संवहन बण्डल बन्द प्रकार के होते हैं। | इसमें संवहन बण्डल खुलै प्रकार के होते हैं। |
इसमें मज्जा किरणे नहीं पाई जाती हैं। | इसमें मज्जा किरणें पाई जाती हैं। |
तने के विभिन्न प्रकार (Type of Plant Stem)
भूमि की स्थिति के अनुसार तने के तीन प्रकार होते है जो निम्न है :
1. भूमिगत तना (Underground Stem)
भूमिगत तना पौधे के तने का वह भाग जो भूमि के अंदर पाया जाता है । भूमिगत तने में पर्व सन्धियाँ, पर्ण कलिकाएँ तथा शल्क पत्र पाये जाते हैं। प्रतिकूल परिस्थितियों में भूमिगत तने भोजन संग्रह करने के कारण मोटा एवं मांसल हो जाता है।
जैसे- हल्दी, अदरक, केला, फर्न, आलू, प्याज, लहसुन, कचालू, जिमीकन्द, अरबी आदि।
भूमिगत तने का रूपान्तरण (Modifications of underground stem)
भूमिगत तने के चार प्रकार होते हैं जो निम्न है :
(i) प्रकन्द (Rhizorne):
यह मोटा, फैला हुआ भूमिगत तना होता है। इसमें कक्षस्थ तथा अग्रस्थ कलिकाएँ भी पायी जाती हैं। यह तना शाखारहित या शाखायुक्त हो सकता है। कभी-कभी इसमें अपस्थानिक जड़ (Adventitious roots) भी विकसित हो जाती है। इनमें स्पष्ट पर्व, पर्व सन्धियाँ तथा शल्क पत्र पाये जाते हैं। इस प्रकार का भूमिगत तना हल्दी, अदरक, केला, फर्न आदि पौधों में पाया जाता है।
(ii) स्तम्भ कन्द (stem tuber):
यह एक प्रकार का भूमिगत तना है। यह भोजन संग्रह करने के कारण शीर्ष पर फ्ल जाता है। इस प्रकार के तने की सतह पर अनेक गड्ढ़े होते हैं, जिन्हें आंखें (eyes) कहते हैं। प्रत्येक आंख एक शल्क पत्र होता है, जो पर्व-सन्धि की स्थिति को दशतिा है तथा प्रसुप्त कलिकाएँ होती हैं। इन्हीं प्रसुप्त कलिकाओं से वायवीय (Aerial) शाखाएँ निकलती हैं जिनके अगले सिरे पर अग्रस्थ कलिका होती है जो कि अनुकूल परिस्थितियों में वृद्धि करके नए पौधे को जन्म देते हैं। इस प्रकार का तना आलू में पाया जाता है।
(iii) शल्क कन्द (Bulb):
इस प्रकार का भूमिगत तना बहुत से छोटे-छोटे शल्क पत्रों (scaly leaves) से मिलकर बना होता है। यह शल्क पत्र जल तथा भोजन संग्रह करने के कारण मांसल (fleshy) हो जाते हैं। इस प्रकार के भूमिगत तने की बाहरी परत शुष्क (dry) होती है। यह तना संकेन्द्रीय क्रम में व्यवस्थित शल्क पत्र लिये हुए पाये जाते हैं। प्याज (Onion) तथा लहसुन (Garlic) इस प्रकार के भूमिगत तने का उत्तम उदाहरण है।
(iv) घनकन्द (Corm):
इस प्रकार का भूमिगत तन प्रकन्द (Rhizome) का संघनित रूप है। यह भूमि के नीचे उर्ध्व दिशा में वृद्धि करता है। इसमें अधिक मात्रा में भोजन संचित हो जाता है। शल्क पत्रों के कक्षा में कलिकाएँ पायी जाती हैं जबकि इसके आधार से अपस्थानिक जड़ें निकलती हैं। कचालू एवं जिमीकन्द में इस प्रकार का भूमिगत तना देखने को मिलता है।
2. अर्द्धवायवीय तना (Sub Aerial Stem):
जब तने का कुछ भाग भूमि के अन्दर तथा कुछ भाग भूमि के बाहर वायु में पाया जाता है, तब इस प्रकार के तने की अर्द्धवायवीय तना कहते हैं। जैसे – दूब घास, मर्सीलिया, पैसीफ्लोरा, अरुई, जलकुम्भी, समुद्री सोख, गुलदाऊदी, पिपरमिन्ट आदि।
अर्द्धवायवीय तने में कायिक जनन के लिए कलिकाएँ पायी जाती हैं, जिनसे पार्श्व शाखाओं (Lateral branches) की उत्पत्ति होती है।
अर्द्धवायवीय तने का रूपान्तरण (Modification of sub aerial stem):
अर्द्धवायवीय तने के चार प्रकार होते हैं जो निम्न है :
(i) उपरिभूस्तरी (Runner)-
यह भूमि की सतह के समानान्तर फैला हुआ अर्द्धवायवीय तना है। इस प्रकार के तने में लम्बे एवं पतले पर्व (Inter nodes) पाये जाते हैं। पर्वसन्धियों से ऊपर की ओर शाखाएँ एवं तना तथा भूमि के अन्दर अपस्थानिक जड़ें निकलती हैं दूब घास, मर्सीलिया आदि में उपरिभूस्तरी तना पाया जाता है।
(ii) भूस्तरी (Stolon):
इस प्रकार का अर्द्धवायवीय तना भूमि के अन्दर क्षैतिज दिशा में वृद्धि करता है। इस प्रकार के तने पर पर्व (Internode) तथा पर्व सन्धियाँ (Nodes) पाये जाते हैं। पर्व सन्धियों से नीचे की ओर अपस्थानिक जड़ें तथा ऊपर की ओर शाखाएँ विकसित होती हैं। अरुई तथा पैसीफ्लोरा में इस प्रकार का अर्द्धवायवीय तना पाया जाता है।
(iii) भूस्तारिका (offset):
इस प्रकार का अर्द्ध वायवीय तना उपरिभूस्तरी (Runner) की तरह ही होता है, परन्तु इनके पर्व (nodes) मोटे तथा छोटे होते हैं। पर्व सन्धियों से ऊपर पतियाँ एक स्वतंत्र पौधे की भाँति होती है। जलकुम्भी भूस्तारिका का अच्छा उदाहरण है।
(iv) अन्तः भूस्तरी (suckers):
इस प्रकार के अर्द्धवायवीय तने में भूस्तरी (stolon) तने की तरह एक पार्श्व शाखा होती है, परन्तु यह ऊपर की ओर तिरछा बढ़ता है और एक नए पौधे को जन्म देता है। यह भूस्तरी (stolon) की तुलना में छोटा होता है। इस प्रकार का अर्द्धवायवीय तना गुलदाऊदी, पिपरमिण्ट आदि में देखने को मिलता है।
3. वायवीय तना (Aerial stem):
जब सम्पूर्ण तना भूमि के ऊपर स्थित होता है, तो ऐसे तने को वायवीय तना कहते हैं। इस प्रकार के तने में शाखाएँ, पत्तियाँ, पर्व, पर्वसन्धियाँ, कलिकाएँ, फल, फूल सभी पाये जाते हैं। उदाहरण- गुलाब, अंगूर, नागफनी, रस्कस, कोकोलोवा आदि।
वायवीय तने का रूपांतरण (Modification of Aerial Stem):
वायवीय तने के पांच प्रकार होते हैं जो निम्न है :
(i) कटक स्तम्भ (stem thorn):
इस प्रकार के तने में कक्षस्थ कलिकाएँ काँटे (thorn) के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं। इन काँटों पर पत्ती, शाखा एवं पुष्प विकसित होते हैं। नींबू, वोगेनविलिया आदि पौधों में कटक स्तम्भ पाये जाते हैं।
(ii) स्तम्भ प्रतान (stem tendril):
इस प्रकार के तने में पत्तियों के कक्ष से निकली शाखा बनाने वाली कलिका एक कुण्डलित, तन्तु बना लेती है जो कमजोर तने वाले पौधों के आरोहण में सहायता करती है। यह तन्तु (Filament) ही स्तम्भ प्रतान कहलाता है। अंगूर तथा कुकुरबिटेसी कुल के पौधों में स्तम्भ प्रतान पाया जाता है।
(iii) पर्णकाय स्तम्भ (Phyloclade):
यह एक हरा, चपटा तथा कभी-कभी गोल-सा तना होता है जो कि पत्तियों की भाँति कार्य करता है। इसकी पत्तियाँ कॉटे रूपी संरचना में परिवर्तित हो जाती हैं। यह रूपान्तरण पौधों से होने वाले जल हानि को रोकता है। पर्णकाय स्तम्भ अनिश्चित वृद्धि वाले शाखा से विकसित होता है। नागफनी (Opuntia) तथा केजुराइना (Casurina) पर्णकाय स्तम्भ का उत्तम उदाहरण है।
(iv) पर्णाभ पर्त (Cladode):
कुछ पौधों की पर्त सन्धियाँ से छोटी, हरी, बेलनाकार अथवा चपटी शाखाएँ निकलती हैं। इस प्रकार की शाखाएँ पत्तियों के कक्ष से निकलती हैं, जो स्वयं शल्क पत्र (scaly leaves) में रूपांतरित हो जाती हैं। ऐसा रूपांतरण पौधों में वाष्पोत्सर्जन की दर को कम करने के उद्देश्य से होता है। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया हरे तने एवं उसकी शाखाओं के द्वारा सम्पादित होती है। तनों के इस प्रकार के रूपान्तरण को पर्णाभ पर्व (Cladode) कहते हैं। सतावर (Asparagus), रस्कस (Ruscus) पणभि पर्व का सुन्दर उदाहरण हैं।
(v) पत्र प्रकलिका (Bulbil):
कुछ पौधों की कक्षस्थ एवं पुष्प कलिकाएँ विशेष छोटे आकार की रचना में रूपांतरित हो जाती हैं, जिन्हें पत्र-प्रकलिका (Bulbil) कहते हैं। ये पत्र-प्रकलिका अपने मातृ पौधे (Mother plant) से अलग होकर मिट्टी में गिर जाती हैं तथा अनुकूल परिस्थितियों में विकसित होकर नए पौधों को जन्म देती हैं। अलोय (Aloe), अगेव (Agave) आदि पौधों में पत्र-प्रकलिका देखने को मिलता है।