What are Layers of Atmosphere ?
वायुमण्डल
पृथ्वी के चारों ओर सैकड़ो किमी की मोटाई में लपेटने वाले गैसीय आवरण को वायुमण्डल कहते हैं। वायुमण्डल विभिन्न गैसों का मिश्रण है जो पृथ्वी को चारो ओर से घेरे हुए है।
वायुमंडल पृथ्वी पर जीवित जीवन के लिए जिम्मेदार कई गैसों का मिश्रण हैl इसमें भारी मात्रा में ठोस और द्रव के कण होते हैं, जिन्हें सामूहिक रूप से एरोसोल के रूप में जाना जाता है। शुद्ध शुष्क हवा में मुख्य रूप से नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, आर्गन, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन, हीलियम और ओजोन होते हैं। इसके अलावा, जल वाष्प, धूल के कण, धुआं, लवण आदि भी वायुमंडल में मौजूद होते हैं।
वायुमंडल के अतिरिक्त पृथ्वी का स्थलमंडल ठोस पदार्थों से बना और जलमंडल जल से बना हैं।
वायुमण्डल की परतें
वायुमण्डल के संघटन एवं गुणों के अनुसार उसे निम्नलिखित क्षेत्रों में विभाजित किया गया है जिन्हें ‘वायुमण्डल की परतें’ कहते हैं:
क्षोभमण्डल (Troposphere)
यह सबसे पहला भाग है, जिसमें मौसम सम्बन्धी सभी परिवर्तन होते हैं। इसकी मोटाई ध्रुवों पर 8 किमी. तथा भूमध्यरेखा पर 18 किमी. होती है। इस भाग में वायुमण्डल का ताप ऊंचाई बढ़ने के साथ घटता है।
समतापमण्डल (Stratosphere)
क्षोभमण्डल के बाद यह भाग आता है, जो 50 किमी. की ऊंचाई तक फैला होता है। इस भाग में वायुमण्डलीय ताप लगभग एकसमान (Constant) रहता है। इसीलिए इसे ‘समताप मण्डल’ कहते हैं। इसी भाग में ओजोन परत पाई जाती है। ओजोन परत 20 किमी. से 50 किमी. की ऊंचाई के मध्य होती है। इसकी सर्वाधिक मोटाई लगभग 25-30 किमी. पर होती है ।
आयनमण्डल (lonosphere)
यह भाग 50 किमी. से लगभग 1,000 किमी. तक फैला हुआ है। इसमें अधिकांश आयनित गैसें होती है। इसमें ताप ऊंचाई के साथ बढ़ता है।
आयनमण्डल को भी तीन परतों में बांटा गया है:
- D-परत (D-layer): (50-90 किमी.), इसमें इलेक्ट्रॉन-घनत्व कम होता है और यह केवल निम्न आवृत्ति की रेडियो तरंगों को परावर्तित करता है।
- E-परत (E-layer): यह 90-150 किमी. तक का भाग है। इसे ‘हैवीसाइड केनेली’ (Heaviside Kennelly) परत भी कहते हैं। यह परत मीडियम आवृत्ति को रेडियों तरंगों को परिवर्तित करती है l
- F-परत (F-layer): यह 150 से 1,000 किमी. तक फैली हुई है। इसे ‘ऐप्लिटन परत‘ (Appleton layer) भी कहते हैं। इसमें इलेक्ट्रॉन घनत्व सबसे अधिक होता है। यह परत रेडियो प्रसारण के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।
बहि:मण्डल (Exosphere)
लगभग 400 किमी. की ऊंचाई से आगे वाले भाग को ‘बहि:मण्डल‘ कहते हैं।
कुछ नियम
- यदि वायुदाबमापी में पारा अचानक चढ़ जाए तो समझना चाहिए कि मौसम स्वच्छ रहेगा।
- यदि वायुदाबमापी का पारा अचानक गिर जाए (अर्थात् वायुदाब कम हो जाए) तो समझना चाहिए कि तेज आधी/तूफान/वर्षा आने की सम्भावना रहती है, क्योंकि जब आंधी या वर्षा आने वाली होती है, तो वायुमण्डल का दाब तुरन्त घट जाता है।
- वे रेडियों तरंगें, जिनकी तरंग दैर्ध्य 8 मिमी, से 20 मी. तक होती है, टेलीविजन प्रसारण में काम आती है। ये तरंगें आयनमण्डल से परावर्तित नहीं होती है। ये अन्तरिक्ष में चली जाती हैं। अतः इन्हें परावर्तित करने के लिए कृत्रिम उपग्रहों की आवश्यकता होती है।