जड़ (Root) मूलांकुर (radicle) से निर्मित विभिन्न शाखाओं में फैलकर, भूमि के अन्दर प्रकाश से दूर (negatively phototropic), जल की तलाश में, गुरुत्व की ओर वृद्धि करता है। जड़ें मृदा से जल एवं विभिन्न प्रकार के खनिज लवणों का अवशोषण करते हैं।
जड़ पौधे का वह भाग है जो बीजों के अंकुरण के समय मूलांकर (Radicle) से विकसित होता है और प्रकाश के विपरीत (negatively phototropic) लेकिन जल एवं भूमि की तरफ बढ़ता है |
जड़ें मृदा से जल एवं विभिन्न प्रकार के खनिज लवणों का अवशोषण करते हैं।
मूलांकुर से विकसित प्रथम जड़ प्राथमिक जड़, जबकि सभी शाखाएँ द्वितीयक जड़ कहलाते हैं। जड़ो में एककोशिकीय मूलरोम पाए जाते हैं।
जड़ों में सन्धियाँ, पर्वसन्धियाँ, पत्तियाँ आदि नहीं पाई जाती है। जडें नकारात्मक प्रकाशानुवर्ती और धनात्मक गुरुत्वानुवर्ती होती हैं।
जड़ों के प्रकार (Types of Roots)
सामान्यतः जड़ें दो प्रकार की होती हैं-
मूसला जड़ (Tap Root )
अपस्थानिक जड़ (Adventitious Root)

मूसला जड़ (Tap Root)
मूसला जड़ वह जड़ है, जिसमें मूलांकुर (Radicle) विकसित होकर एक मुख्य या प्राथमिक जड़ (Primary root) का निर्माण करता है, जो अन्य शाखाओं से मोटी होती है तथा अधिक गहराई तक जाती है। इससे कई शाखाएँ निकलती हैं, जिन्हें द्वितीयक जड़ (Secondary root) कहते हैं।
द्वितीयक जड़ों से निकलने वाली शाखाओं को तृतीयक जड़ (Tertiary root) कहते हैं।
इस प्रकार बनी प्राथमिक जड़ तथा इसकी शाखाओं को मूसला जड़ तन्त्र (Tap root system) कहते हैं।
ऐसी जड़ें द्विबीजपत्री पौधों में पायी जाती हैं तथा भूमि में बहुत गहराई तक वृद्धि करके पौधे को मजबूती से खड़ा रखती हैं। यह जड़, चना, मटर, गाजर, मूली, सरसों, आम, नीम इत्यादि पौधों में पायी जाती है।
मूसला जड़ (Tap Root) के प्रकार
1. तर्कुरूप (Fusiform)
इस प्रकार की जड़ें बीच से मोटी और किनारों पर पतली होती है जैसे-मूली।
2. कुम्भी रूप (Napiform)
ये जड़ें शीर्ष पर मोटी और फूली हुई होती है तथा नीचे की ओर पतली होती है जैसे – शलजम (Turnip), चुकन्दर (Beet)
3. शंकु रूप (Conical)
इस प्रकारी की मूसला जड़े आधार की ओर मोटी तथा नीचे की ओर क्रमशः पतली होती हैं। जैसे-गाजर।
4. श्वसन मूल (Pneumatophores (न्यूमेटाफ़ोर) root) – राइजोफोरा (Rhizophora), सुन्दरी (Sundari) आदि पौधे जो दलदली स्थानों पर उगते हैं, में भूमिगत मुख्य जड़ों से विशेष प्रकार की जड़ें निकलती हैं, जिसे न्यूमेटाफोर कहते हैं। ये खूंटी के आकार की होती हैं, जो ऊपर वायु में निकल आती हैं। इनके ऊपर अनेक छोटे-छोटे छिद्र होते हैं जिन्हें न्यूमेथोडस (Pneumathodes) कहते हैं।
अपस्थानिक जड़ (Adventitious root or Fibrous root system)
कुछ पौधों में अकुंरण के कुछ समय बाद मूलांकुर (Redicle) की वृद्धि रुक जाती है और प्रांकुर के आधार या तने की निचली पर्वसन्धियों से रेशे के रूप में जड़ें विकसित हो जाती हैं, उन्हें ही अपस्थानिक या रेशेदार जड़ (Fibrous root) कहते हैं। इस प्रकार से बने जड़ गुच्छ को अपस्थानिक जड़ तन्त्र (Adventitious root system) कहते हैं।
अपस्थानिक जड़ मूलांकुर की वृद्धि एक जाने के कारण जड़े शाखाओ, तनों के आधारीय भागों तथा पत्तियों में निकलती है। यह प्रायः एकबीजपत्री (monocot plants) पौधों में पाई जाती है जैसे-धान, गेहूँ, मक्का, ज्वार, बाजरा, गन्ना इत्यादि।
कुछ द्विबीजपत्री पादकों जैसे बरगद, पान, अमरबेल इत्यादि में भी अपस्थानिक जड़ें पायी जाती हैं। ये जड़ें भूमि में गहराई तक न जाकर केवल ऊपरी सतह तक फैली होती हैं।

विभिन्न प्रकार की अपस्थानिक जड़ें
भोजन संग्रह, पौधों को यांत्रिक सहारा (Mechanical support) प्रदान करने अथवा अन्य विशिष्ट कार्यों को करने के उद्देश्य से अपस्थानिक जड़ें अनेक प्रकार से रूपांतरित हो जाती हैं।

मूसला तथा अपस्थानिक जड़ों में अन्तर (Difference between Tap root and Adventitious roots)
मूसला जड़ (Tap root) | अपस्थानिक जड़ |
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मूसला जड़ की प्राथमिक जड़ समाप्त नहीं होती तथा यह क्रमश: पतली होती जाती है। | अपस्थानिक जड़ों की प्राथमिक जड़ बनने के तुरन्त बाद समाप्त हो जाती है और प्ररोह के अन्तिम भाग से अनेक रेशेदार जड़ें निकलती हैं। |
यह भूमि के अन्दर गहराई तक जाती है । | यह भूमि की ऊपरी सतह पर ही स्थित होती है । |
यह बीज के मूलांकुर से पैदा होती है। | यह पौधे के प्ररोह भाग (वायवीय भाग) से पैदा होती है। |
इसकी प्राथमिक जड़ से अनेक शाखाएँ निकलती हैं। उदाहरण- मटर, चना, अरहर इत्यादि की जड़ें। | इसकी प्राथमिक जड़ विलुप्त हो जाती हैं। उदाहरण-गेहूँ, जौ, धान, मक्का इत्यादि की जड़ें । |
जड़ की विशेषताएँ (Characteristics of root)
जड़ पौधों के अक्ष का अवरोही (Descending) भाग है, जो मूलांकुर (Radicle) से विकसित होता है।
जड़ सदैव प्रकाश से दूर भूमि में वृद्धि करती है।
भूमि में रहने के कारण ही जड़ों का रंग सफेद अथवा मटमैला होता है।
जड़ों पर तनों के समान पर्व (Nodes) एवं पर्व सन्धियाँ (Internodes) नहीं पायी जाती है।
जड़ों पर पत्र एवं पुष्प कलिकाएँ भी नहीं होती हैं। अतः ये पतियाँ, पुष्प एवं फल धारण नहीं करती हैं।
जड़ें सामान्यतः धनात्मक गुरुत्वानुवर्ती (Positive geotropic) तथा ऋणात्मक प्रकाशानुवर्ती (Negative phototropic) होती हैं।
जड़ का सिरा मूल गोप (Root cap) द्वारा सुरक्षित रहता है।
जड पर एककोशिकीय रोम (Unicellular hairs) होते हैं।
जड़ों के कार्य (Functions of Roots)
जड़ें मूल रोमों की सहायता से जल एवं खनिज लवणों का अवशोषण करते है।
(जलोद्भिद् में मूल रोमों का अभाव होता है) पिस्टिया व लेमना पौधों में मूल गोप की जगह मूल पॉकेट (root pocket) पाया जाता है।
मूल रोम (Root hairs) तथा जड़ों के कोमल भाग जल और घुलित खनिज लवण का अवशोषण करते हैं।
यह पौधों को भूमि में स्थिर रखती है।
कुछ जड़ें अपने अंदर भोज्य पदार्थों का संग्रह करते हैं प्रतिकूल परिस्थितियों में इन संचित भोज्य पदार्थों का पौधों द्वारा उपयोग किया जाता है।
एकबीजपत्री तथा द्विबीजपत्री जड़ में अन्तर
एकबीजपत्री जड़
इसमें द्वितीयक वृद्धि नहीं पाई जाती है।
इसमें पिथ पूर्ण विकसित होता है।
परिरम्भ से केवल पार्थ मूलों का निर्माण करती है।
इनके संवहन पूल की संख्या सामान्यतया छ: से अधिक होती है।
इसमें कैम्बियम का अभाव होता है। ।
द्विबीजपत्री जड़
इसमें द्वितीयक वृद्धि पाई जाती है।
इसमें पिथ अल्प विकसित होता है।
परिरम्भ पार्श्व मूलों तथा द्वितीयक विभज्योतक दोनों का निर्माण करती है।
इनके संवहन पूल की संख्या सामान्यतया छः से कम होती है।
इसमें कैम्बियम पाया जाता है।
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