जल का असामान्य प्रसार
प्रायः सभी द्रव गर्म किए जाने पर आयतन में बढ़ते हैं परन्तु जल 0°C से 4°C तक गर्म करने पर आयतन में घटता है तथा 4°C के पश्चात् बढ़ना प्रारम्भ करता है। इसका अर्थ यह है. कि 4° पर जल का घनत्व सबसे अधिक होता है।
दैनिक जीवन में इसके कई प्रभाव दिखाई देते हैं. कुछ निम्नलिखित हैं:
ठण्डे देशों में तालाबों के जम जाने पर भी उनमें मछलियां जीवित रहती हैं: ठण्डे देशों में जाड़े के दिनों में वायु का ताप 0° से भी कम हो जाता है। अतः वहां के तालाबों में जल जमने लगता है।
वायु का ताप गिरने पर पहले तालाबों की सतह का जल ठण्डा होता है। अत: यह भारी होकर नीचे बैठता रहता है तथा नीचे का हल्का जल ऊपर आता रहता है। यह प्रक्रिया तब तक चली रहती है जब तक कि पूरे तालाब का जल 4°C तक नहीं गिरा जाता।
जब सतह के जल का ताप 4°C से नीचे गिरने लगता है. तो इसका घनत्व कम होने लगता है। अतः अब यह नीचे नहीं जाता तथा 0°C तक ठण्डा होकर बर्फ के रूप में सतह पर ही जमने लगता है। अत: जल के जमने की क्रिया ऊपर से नीचे की ओर होती है (नीचे से ऊपर की ओर नहीं) बर्फ की इस पर्त के नीचे अब भी 4°C का जल रहता है।
चूंकि बर्फ ऊष्मा का कुचालक होता है, अत: नीचे के 4°C वाले जल की ऊष्मा को बाहर नहीं जाने देता। अत: नीचे वाला जल 4°C पर ही बना रहता है और इस प्रकार वह जमने से बच जाता है। इस जल में मछलिया तथा अन्य जीव जीवित रहते हैं।
अत्यधिक ठण्ड में जल के पाइप कभी-कभी फट जाते हैं: ठण्डे स्थानों पर जाड़े के दिनों में पाइपों में बहने वाले जल का ताप 4°C से नीचे गिर जाने पर जल के आयतन में वृद्धि होती है परन्तु धातु का पाइप सिकुड़ता है। इन विपरीत दशाओं के कारण पाइपों की दीवारों पर इतना अधिक दाब पड़ता है, कि वे फट जाते हैं।