What is Fungi Kingdom ?
कवक जगत के अन्तर्गत एक या बहुकेन्द्रकीय जीव आते हैं, जो अवशोषण द्वारा गैर प्रकाश-संश्लेषक पोषण करते हैं साथ ही ऊतक विभेदन का अभाव होता है।
विशेषताएँ :
1. कवक में विषमपोषी पोषण होता है क्योंकि इनमें पूर्णहरिम का अभाव होता है।
2. ये परजीवी, सहजीवी अथवा मृतोपजीवी होते हैं।
3. यह अवशोषण के माध्यम से पोषण करते हैं। भोजन का पाचन शरीर के बाहर होता है तथा पोषक तत्व सीधे अवशोषित किए जाते हैं।
4. इनकी कोशिका भित्ति रेशेदार पदार्थ काइटिन को बनी होती है। यह नाइट्रोजन युक्त पॉलीसेकैराइड है, जिसकी संरचना सेलुलोज के समान होती है।
5. कवक में संचित कार्बोहाइड्रेट ग्लाइकोजन होता है न कि मण्ड (starch) यह बीजाणुओं के द्वारा प्रजनन करते हैं।
6. कवक विश्वव्यापी है और ये वायु ,जल , मिट्टी में तथा जन्तु एवं पादपों पर पाए जाते है । ये जीव नम तथा गरम स्थानों पर सरलता से उग जाते है ।

भोजन के स्रोत के आधार पर कवक तीन प्रकार के होते है –
मृतोपजीवी कवक
ये कवक अपना भोजन मृत कार्बनिक पदार्थों जैसे ब्रेड, सड़े हुए फल एवं सब्जियों, गोबर इत्यादि से प्राप्त करते है । इनमें पोषण अवशोषणी या परासरणीय विधि से होता है ।
परजीवी कवक
ये अपना भोजन जीवित जीवों जैसे पादप, जंतु एवं मनुष्यों से प्राप्त करते है । ये कवक रोग उत्पन्न करते है । परजीवी कवक अपना पोषण चूसकांगों के द्वारा प्राप्त करते है ।
सहजीवी
इसके अंतर्गत ऐसे प्रकार के कवक आते है जो अपने साथ विकसित होने वाले पौधे के लिए सहायक होते है एवं ये एक दूसरे को विकसित एवं भरण पोषण के लिए मदद करते है एवं लाभ पहुचाते है| लाइकेन इसका अच्छा उदहारण है|
कवक की सरंचना (Structure of Fungi)
कवक के शरीर को माइसिलियम (कवक जाल) कहते है । माइसिलियम एक जालनुमा संरचना है जो कई सारे कवक तंतुओं के मिलने से बनती है । कवक तंतु को कवक की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई कहते है ।
कवक तंतु के चारों ओर कोशिका भित्ति पाई जाती है जो काइटिन की बनी होती है । काइटिन के साथ कुछ मात्रा में सेल्युलोज, प्रोटीन एवं लिपिड पाए जाते है ।
कवकों में जनन (Reproduction in Fungi)
कवकों में कायिक जनन , अलैंगिक जनन व लैंगिक जनन पाया जाता है ।
कायिक जनन – यह निम्न प्रकार का होता है –
खण्डन (फ्रेग्मेंटेशन)
जब माइसिलियम किसी भी कारण से छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाता है तो प्रत्येक टुकड़ा एक नये कवक तंतु या पूर्ण कवक का निर्माण कर लेता है, इसे ही खण्डन कहते है ।
मुकुलन विधि
जब कवक में कलिका के समान उभार बनता है तो यह कलिका मातृ कवक से अलग होकर एक नये कवक के रूप में कार्य करने लगती है । इस प्रक्रिया में मातृकोशिका का अस्तित्व समाप्त नहीं होता है । उदाहरण – सेक्रोमाइसीज (यीस्ट)
विखण्डन (fission)
जब कवक कोशिका बीच में से दो भागों में विभक्त हो जाती है , साथ ही इनका केन्द्रक दो भागों में बंट जाता है । तो इसे विखण्डन कहते है । उदाहरण – साइजोसेक्रोमाइसीज
अलैंगिक जनन
यह प्रक्रिया विभिन्न प्रकार के बीजाणुओं जैसे स्पोरेंजियोस्पोर , चल बीजाणु (जूस्पोर) , अचल बीजाणु (Aplanospore) तथा कोनेडिया द्वारा होता है । कोनेडिया का निर्माण सीधे कवक तंतु पर बहिर्जात रूप से होता है । प्रत्येक कोनेडिया अंकुरित होकर एक नये कवक तंतु का निर्माण करता है ।
लैंगिक जनन
यह जनन निषिक्तांड(ऊस्पोर) , ऐस्कस बीजाणु तथा बेसिडियम बीजाणु द्वारा होता है । विभिन्न बीजाणु सुस्पष्ट संरचनाओं में उत्पन्न होते है , जिन्हें फलनकाय कहते है ।
कवक जगत के विभिन्न वर्ग
फाईकोमाईसिटिज
इस प्रकार के कवक गीले एवं आद्र स्थानों पर पाए जाते है| जैसे- सदी हुई लकड़ी, अथवा सीलन युक्त स्थान आदि| इनमे अलेंगिक जनन प्रक्रिया द्वारा जनन होता है, एवं युग्मको के मिलने से युग्माणु निर्मित होते है |
एस्कोमाईसिटिज (Ascomycetes Fungi)
इस प्रकार के कवक एक कोशिकी या बहुकोश्किय दोनों ही हो सकते है| इन्हें थैली कवक भी कहा जाता है| न्यूरोसपेरा इसका अच्छा उदहारण है, जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार के रासायनिक प्रयोगों के अंतर्गत किया जाता है| इनमे भी अलेंगिक जनन पाया जाता है |
बेसीडियोमाईसिटिज (Basidiomycete Fungi)
ये कवक विभिन्न प्रकार के पौधो पर परजीवियों के रूप में विकसित होते है, इनमे अलेंगिक बीजाणु नहीं पाए जाते| इनके साधरण उदहारण मशरूम, पफबॉल आदि है| इनमे द्विकेंद्र्क सरंचना का निर्माण होता है, जिससे आगे चलकर बेसिडियम का निर्माण होता है |
ड्यूटीरोमासिटिज (Deuteromycota Fungi)
इस प्रजाति को अपूर्ण कवक की सूचि में रखा गया है, क्योकि इसकी लेंगिक प्रावस्था के आलावा और कुछ ज्ञात नहीं हो पाया है |
लाइकेन (Lichen)
लाइकेन को कवक के सहजीवी के रूप में जाना जाता है, क्योकि यह कवक के विकसित होने में सहायता करता है |
कवकों का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance of Fungi)
1. मशरूम नामक कवक का उपयोग सब्जी के रूप में व्यापक रूप से होता है।
2. पनीर उद्योग में एस्परजिलस नामक कवक का उपयोग होता है।
3. यीस्ट नामक कवक में किण्वन का गुण होता है, जिसके कारण इसका उपयोग एल्कोहॉल, शराब, बीयर आदि बनाने में होता है।
4. नाइट्रिक अम्ल का निर्माण एस्परजिलस नामक कवक से होता है।
5. जिबरेलिन्स हॉर्मोन्स, फ्यूजेरियम मोनिलीफॉर्म नामक कवक से प्राप्त होता है।
6. बेकरी उद्योग में सैकेरोमाइसिस सेरीविसी, कवक का उपयोग डबलरोटी बनाने में होता है।
7. कवक अपमार्जन का कार्य करते है जो विभिन्न प्रकार के मृत अवशेषों को नष्ट करने का कार्य करने के लिए जाने जाते है|
8. कई प्रकार के कवक सब्जी बनाने के लिए काम में लिए जाते है|
9. कवक से प्रतिरोधी दवाइयों का निर्माण किया जाता है जो मनुष्य के प्राण बचाने में सहायक होते है|