What is Wind Energy ?
पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों की तुलना में भूमध्यरेखीय क्षेत्रों में सूर्य की किरणें अधिक सीधी पड़ती हैं अत: वहां की वायु शीघ्र ही गरम होकर ऊपर उठ जाती है। उसके खाली स्थान को भरने के लिए ध्रुवीय क्षेत्रों की अपेक्षाकृत ठण्डी वायु भूमध्य क्षेत्र की ओर प्रवाहित होने लगती है। वायु के इस प्रवाह में पृथ्वी के घूर्णन (Rotation) तथा स्थानीय परिस्थितियों के कारण लगातार बाधा पड़ती रहती है। जब सभी बल एक ही दिशा में कार्य करते हैं तो पवन की चाल तेज हो जाती है, यह इतनी अधिक (लगभग 800 किमी./ घण्टा) हो जाती है, कि पवन विनाशकारी टॉरनेडो (Tornado—बवण्डर) में परिवर्तित हो जाता है। परन्तु जब ये बल विपरीत दिशाओं में कार्य करते हैं तो मन्द पवन (जिसकी चाल 5 से 10 किमी./घण्टा होती हैं) बहती है। इस प्रकार जब वायु का विशाल द्रव्यमान (m) पवन के रूप में चाल (v) से गति करता है, तो उसमें गतिज ऊर्जा —m होती है। इसे ही ‘पवन ऊर्जा‘ कहते हैं।
पवन ऊर्जा के उपयोग
1. वायु ऊर्जा का उपयोग अनाज पीसने की चक्कियों को चलाने के लिए किया जाता है।
2. पवन चक्की या वायु प्रेषणी (Windmill): वायु ऊर्जा को सर्वप्रथम उपयोग में लाने का श्रेय लांगली नामक वैज्ञानिक को है। उसने दिखाया कि बहती हुई हवा के मार्ग में अगर कोई क्षेत्र रखा जाय तो उस पर एक बल लगेगा जो हवा के वेग के वर्ग का समानुपाती तथा क्षेत्र के क्षेत्रफल का समानुपाती होगा। इसी सिद्धान्त पर वायु प्रेषणियां (Windmills) बनाई गई हैं। डेनमार्क में वायु प्रेषणी द्वारा ऊर्जा उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है। वायु ऊर्जा का उपयोग पवन चक्की द्वारा जल-पम्प चलाकर, पृथ्वी के अन्दर से पानी खींचने में किया जाता है। गुजरात के ओखा नामक स्थान पर 1 MW (मेगावाट) शक्ति की पवन चक्की लगी हुई है।
3. वायु ऊर्जा का उपयोग पालदार नावों को नदियों तथा समुद्र में चलाने के लिए किया जाता है। इस प्रकार की नावों द्वारा व्यक्तियों तथा सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है।
4. वायु ऊर्जा द्वारा विद्युत उत्पादन भी किया जाता है। गुजरात के पोरबन्दर में ‘लांबा’ नामक स्थान पर पवन ऊर्जा से 50 टरबाइनें चलाई जाती हैं जिनकी क्षमता 2 अरब (2x 106) यूनिट बिजली उत्पन्न करने की है।