इस आर्टिकल में हम जानेगें: अनावृतबीजी (Gymnosperms – जिम्नोस्पर्म) पोधे क्या होते है ?, अनावृतबीजी पोधों की विशेषताएँ, लक्षण और उदहारण क्या है ?, अनावृतबीजी पोधों का आर्थिक महत्त्व क्या है ?, आवृतबीजी (Angiosperm – एंजियोस्पर्म) पोधे क्या होते है ?, आवृतबीजी पोधों की विशेषताएँ, लक्षण और उदाहरण क्या है ? आवृतबीजी पोधों का आर्थिक महत्त्व क्या है ? और अनावृतबीजी और आवृतबीजी पोधों के अंतर क्या है ?
अनावृतबीजी और आवृतबीजी पौधों की दो मुख्य श्रेणियां हैं। दोनों बीज वाले (seed bearing) पौधे हैं जिनमें कुछ समानताएं हैं। अनावृतबीजी आवृतबीजी विकसित होने के 200 मिलियन से अधिक वर्षों से पहले ही पृथ्बी पर इनकी उपस्थिती थी l इन दोनों के बीच मुख्य अंतर इनकी विविधता (diversity) है।
अनावृतबीजी (Gymnosperms – जिम्नोस्पर्म) पोधे क्या होते है ?
अनावृतबीजी समूह के पौधों में बीज किसी प्रकार की संरचना से ढके हुए नहीं होते हैं अर्थात् बीज नग्न (खुला हुआ एवं अण्डाशय का अभाव) होता है। जैसा कि नाम से पता चलता है कि अनावृतबीजी पादप जगत के संवहनी पौधे हैं जो नग्न बीज धारण करते हैं। इनकी बहुत ही कम प्रजाति पृथ्वी पर पाई जाती है इसका मुख्य कारण इनके बीजों के संरक्षण का अभाव है। बीज निकलने पर वो खुले और असुरक्षित होते हैं। इन बीजों को जल्दी से जमीन में उतर कर पनपने की आवश्यकता होती है ताकि ख़राब मौसम, जानवरों या अन्य कारणों से इनको क्षति न पहुचे l
अनावृतबीजी पोधों की विशेषताएँ और लक्षण
यह पौधा सदाबहार, काष्ठीय तथा लम्बा होता है। ये मरुद्भिद् स्वभाव के होते हैं, जिनमें रन्ध्र पत्ती में घुसे होते हैं तथा बाह्य त्वचा पर क्यूटिकल की पर्त चढ़ी होती है। अनावृतबीजी के अन्तर्गत शंकुधारी पौधे रखे गये हैं, जिसमें चीड़, फर, स्पूस आदि आते हैं।
भारत में विशेषकर मैदानी भागों में साइकेड नामक पौधे पाए जाते हैं। इस वर्ग के पौधे काष्ठीय, लम्बे एवं बहुवर्षीय होते हैं। इसमें वायु परागण होता है तथा बहुभ्रूणता पाई जाती है, जिसमें मूलांकुर तथा प्राकुंर (plumule) के साथ ही एक या एक से अधिक बीजपत्र बनते हैं।
अनावृतबीजी पोधों के उदाहरण
जिम्नोस्पर्म की बहुत कम प्रजातियाँ हैं, इन पौधों के कुछ उदाहरण सरू (cypress), गनेटम (Gnetum), पाइन (pine), स्प्रूस (spruce), रेडवुड (redwood), जिन्कगो (Ginkgo), साइकैड्स (Cycads), जुनिपर (Juniper), फ़िर (Fir) और वेलवित्चिया (Welwitschia) हैं।
अनावृतबीजी पोधों का आर्थिक महत्त्व
- साइकस के तनों से मण्ड निकालकर खाने वाला साबूदाना बनाया जाता है। इसलिए साइकस को सागोपाम भी कहा जाता है।
- चीड़ के पेड़ से तारपीन का तेल, देवदार की लकड़ी से सिड्रस का तेल तथा जूनीपेरस की लकड़ी से सिड्रस काष्ठ तेल का उत्पादन होता है।
- जूनीपेरस की लकड़ी का उपयोग पेन्सिल तथा पैन होल्डर बनाने में होता है। एबीज तथा पीसिया की लकड़ी को माचिस की डिब्बियाँ तथा उसके काष्ठ लुग्दी से कागज तैयार किया जाता है। 3
- चीड़ के पेड़ से रेजिन का उत्पादन होता है।
- इफेड्रीन दवा, जो इफेड्रा से प्राप्त होता है, का उपयोग दमा की बीमारियों के इलाज हेतु किया जाता है।
आवृतबीजी (Angiosperm – एंजियोस्पर्म) क्या है
जैसा कि नाम से पता चलता है, आवृतबीजी संवहनी पौधे हैं, जो फलों या परिपक्व अंडाशय में बीज देते हैं। आवृतबीजी फूल बनाता है जो प्रजनन अंगों और फलों (reproductive organs and fruits ) को carry करता है । ये पौधे स्थलीय आवास के लिए अधिक अनुकूल हैं और इनका बहुत व्यापक रुप से फैले हुए है, अभी तक इनकी लगभग 250000 प्रजातियों की पहचान की जा चुकी है
आवृतबीजी पोधों की विशेषताएँ और लक्षण
ये पुष्प युक्त पौधे होते हैं, जिसमें बीज सदैव फलों के अन्दर होता है। इस वर्ग के पौधों में जड़, तना, पत्ती, फूल और फल लगते हैं। ये शाक, झाड़िया या वृक्ष तीनों ही रूप में मिलते हैं। आवृतबीजी में परागकण तथा बीजाण्ड विशिष्ट रचना के रूप में विकसित होते हैं, जिन्हें पुष्प कहा जाता है, जबकि अनावृतबीजी में बीजाण्ड अनावृत होते हैं।
आवृतबीजी पोधों के उदाहरण
आम, सेब, केला, आड़ू, चेरी, नारंगी और नाशपाती सहित फलों के पेड़ अक्सर फल देने से पहले फूल दिखाते हैं और परागण प्रक्रिया आमतौर पर मधुमक्खियों के जरिये संपन्न करते है । चावल, मक्का और गेहूं सहित अनाज भी एंजियोस्पर्म के उदाहरण हैं। इन पौधों में परागण प्रक्रिया पवन द्वारा की जाती है। एंजियोस्पर्म के अन्य उदाहरणों में गुलाब, लिली, ब्रोकोली, केल, पेटुनीया, बैंगन, टमाटर, मिर्च और गन्ना शामिल हैं।
आवृतबीजी पोधों के प्रकार
आवृतबीजी को दो वर्गों एकबीजपत्री तथा द्विबीजपत्री में बाँटा गया है।
एकबीजपत्री और द्विबीजपत्री पौधों में अन्तर
एकबीजपत्री | द्विबीजपत्री |
बीज में बीजपत्रों की संख्या एक होती है। | इसमें दो बीजपत्र होते हैं। |
पुष्प प्रायः त्रितयी (timerous) अर्थात् पुष्पांग प्रायः तीन के जोड़े में होते हैं। | पुष्प प्रायः चतुर्तयी एवं पंचतयी होती हैं अर्थात् इसमें पुष्पांग 4 – 5 के जोड़े होता है। |
प्रायः अपस्थानिक जड़ें तथा इनमें संवहन पूल प्राय 8-32 होती हैं। | इसमें प्रायः मूसला जड़ें तथा इनमें संवहन पूल 2-6 होती हैं। |
तने में संवहन पूल (vascular bundles) बिखरे हुए होते हैं। | इसमें संवहन पूल घेरे में व्यवस्थित होती है तथा संवहन पूलों में कैम्बियम की पट्टी उपस्थित होती है। |
पत्तियों में शिराएँ एक-दूसरे के समानान्तर होती हैं। | इसमें शिरा-विन्यास जालिकावत् शिराओं का जाल होता है। |
आवृतबीजियों का आर्थिक महत्त्व
- हेविया ब्रेसिलिएन्सिस एवं फाइकस इलास्टिका से रबर प्राप्त होती है। कोको तथा चॉकलेट थियोब्रोया कोको के बीजों से प्राप्त होती है। इलायची इलेटेरिया कोडेमोमम का फल है।
- (Economic Importance of Angiosperms) कोयर नामक रेशा नारियल के फल की मध्यफलभित्ति से प्राप्त होता है।
- क्रिकेट बल्ले सैलिक्स एल्बा की लकड़ी से बनाये जाते हैं।
- हॉकी के बल्ले, टेनिस व बैडमिन्टन के रैकेट तथा क्रिकेट स्टम्प मोरस एल्वात्र लकड़ी से बनाये जाते हैं।
- केसर क्रोकस सटाइवस के पुष्पों की वर्तिकार तथा वर्तिका से प्राप्त होती है। च्युइंगम, एक्रेस सैपोटो के दूधिया क्षीर से प्राप्त होती है।
अनावृतबीजी और आवृतबीजी पोधों में क्या अंतर है ?
आवृतबीजी और अनावृतबीजी के बीच मुख्य अंतर इनकी विविधता है। आवृतबीजी की विविधता अनावृतबीजी से अधिक है। उच्च विविधता क्षमता की वजह से ही आवृतबीजी पोधें स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र की एक विस्तृत विविधता के अनुकूल हैं। आवृतबीजी की एक अन्य विशेषता फूल और फलों का उत्पादन है।
आवृतबीजी | अनावृतबीजी |
आवृतबीजी पोधों में बीज फूलों के पौधों द्वारा निर्मित होता है और एक अंडाशय के भीतर संलग्न होता है | अनावृतबीजी पोधों में बीज नग्न (खुले) एवं इनमे अण्डाशय का अभाव होता है |
इन पौधों का जीवनचक्र मौसमी (seasonal) होता है | ये पौधे सदाबहार होते हैं |
इनमे ट्रिपलोइड ऊतक (triploid tissue) होते है | इनमे हैप्लोइड उत्तक होते है |
पत्तियाँ आकार में चपटी होती हैं | पत्तियां सुई के आकार की होती हैं |
यह पोधे कठोर लकड़ी के साथ होते है | यह पोधे नर्म होते है |
इनका प्रजनन जानवरों पर निर्भर रहता है | इनका प्रजनन हवा पर निर्भर करता है |
इन पोधों की प्रजनन प्रणाली Reproductive system (उभयलिंगी unisexual or bisexual) फूलों में मौजूद होती है | इन पोधों की प्रजनन प्रणाली Reproductive system शंकु (corn) में मौजूद होती है और उभयलिंगी प्रकार की होती हैं |