Biology – An Introduction
जीव विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत सजीवों का विस्तृत अध्ययन किया जाता है। अरस्तू को जीव विज्ञान का जनक (Father of Biology) कहा जाता है किन्तु जीव विज्ञान (Biology) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग लैमार्क एवं ट्रेविरेनस ने 1802 में किया था।
सजीवों एवं निर्जीवों में समान प्रकार के रासायनिक तत्व होते है, परन्तु कोशिकीय संरचना (cellular structure), उपापचय (metabolism), पोषण (Nutrition), श्वसन (respiration), वृद्धि एवं विकास (growth and development), अनुकूलन (adaptation), प्रजनन (Reproduction), चेतना (Consciousness) एवं संवेदनशीलता (sensitivity) आदि लक्षण सजीवों में पाये जाते हैं, जबकि निर्जीवों में ये अनुपस्थित होते हैं।
सजीवों के लक्षण (Characters of Living Beings)
1. कोशिकीय संरचना (cellular structure) – जीव एक या अनेक कोशिकाओं का बना होता है। कोशिका शरीर की रचनात्मक और क्रियात्मक इकाई कहलाती है। यह जटिल संगठन निर्जीवों में नहीं पाया जाता है।
2. उपापचय (metabolism) – यह जीवधारियों का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण है। उपापचय किसी भी जीव की कोशिका में होने वाली रासायनिक क्रियाओं का योग है। यह क्रिया दो भागों में विभक्त की जा सकती है
• उपचय (Nutrition) – यह रचनात्मक क्रिया है क्योंकि इसमें जीवद्रव्य (Protoplasm) का निर्माण होता है। यह शरीर की वृद्धि और विकास में सहायक है।
• अपचय (Catabolism) – यह विध्वंसात्मक या नाशात्मक क्रिया है क्योंकि इस क्रिया के दौरान पोषक पदार्थ टूटता है और फलस्वरूप ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
3. पोषण (respiration) – यह सभी जीवधारियों की विशेषता है क्योंकि शरीर की विभिन्न क्रियाओं को सुचारु रूप से कार्य के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह आवश्यक ऊर्जा जीवधारी भोजन के ऑक्सीकरण (भोजन से प्राप्त करते हैं।) से प्राप्त करते हैं। भोजन के ग्रहण करने से पाचन तक की प्रक्रिया को पोषण कहते हैं।
4. वृद्धि और विकास (growth and development) – प्रत्येक जीवधारी के जीवन का प्रारम्भ एक कोशिका के रूप में होता है। इस प्रारम्भिक कोशिका के विभाजन और विभाजित कोशिकाओं के पुनर्विभाजन से असंख्य कोशिकाएँ बनती हैं, जिसके फलस्वरूप विभिन्न अंग फिर अंगतन्त्र बनते है, इसी को वृद्धि कहते है, जो प्रत्येक जीव का लक्षण है (हालांकि निर्जीवों में वृद्धि होती हैं; जैसे-पत्थर का बढ़ना या रेत के टिब्बे लेकिन यहाँ वृद्धि कोशिका रहित है और कारक पारिस्थितिक है।) यहाँ बाहा ऊर्जा कार्य करती है।
5. श्वसन (adaptation) – सभी जीवों में श्वसन जीवन पर्यन्त चलने वाली क्रिया है। इसके अन्तर्गत जीव ऑक्सीजन ग्रहण करते है, जिसके द्वारा भोजन का ऑक्सीकरण होता है तथा CO2, H2O और ऊर्जा उत्पन्न होती है। जीवों में इस प्रकार ऊर्जा उत्पन्न करने वाला प्रक्रम श्वसन कहलाता है।
C6H12O6 + 6O2 ——-> 6CO2 + 6H2O+ 673 किलो कैलोरी
6. चेतना एवं संवदेनशीलता (Consciousness & (sensitivity) – यह सजीवों का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण है। सभी जीवों में वातावरण में होने वाले परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता होती है और वह स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक परिवर्तन करने में सक्षम होते हैं; जैसे – गर्मी, सर्दी का अनुभव, काँटे के चुभने या अम्ल गिरने पर अंग को अलग हटाना, यह गुण उत्तेजनशीलता भी कहलाता है।
7. अनुकूलन (adaptation) – जीवधारियों में बाह्य वातावरण के अनुसार शारीरिक रचना और स्वभाव को बदलने की क्षमता होती है; जैसे-मछली का जल में अनुकूलन, मेंढक का जल और थल दोनों में अनुकूलना
8. प्रजनन या जनन (Reproduction) – यह जीवों का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण लक्षण है। प्रत्येक जीव अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए जनन करता है और अपने जैसी सन्तान उत्पन्न करता है, जिससे उसके वंश में वृद्धि होती है; जैसे-पौधे से बीज उत्पन्न होते है और बीज उगकर वैसे ही पौधे बनाते हैं। इसी प्रकार स्तनी बच्चों को जन्म देते है।
9. जीवन – मृत्यु चक्र (Life & Death cycle) – प्रत्येक जीवधारी की एक निश्चित आयु होती है। एककोशिकीय जीव विभिन्न चरणों को पूर्ण करके मृत्यु को प्राप्त होता है। जीव विज्ञान की दो मुख्य शाखाएँ वनस्पति विज्ञान पादपों का अध्ययन) और प्राणि विज्ञान (जन्तुओं का अध्ययन) हैं।
वनस्पति विज्ञान का जनक थियोफ्रेस्टस को कहा जाता है, जिन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक हिस्टोरिया प्लान्टेरम में 500 प्रकार के पौधों का वर्णन किया है।
जन्तु विज्ञान का जनक अरस्तू को कहा जाता है, जिन्होंने अपनी पुस्तक हिस्टोरिया एनिमेलियम में 500 जन्तुओं की रचना, स्वभाव, वर्गीकरण जनन आदि का विस्तृत वर्णन किया है।
जीव विज्ञान: अपवाद
स्तनधारियों की परिपक्व लाल रुधिराणु (RBCs) ऊँट तथा लामास को छोड़कर, अकेन्द्रकी (enucleated) होती हैं। ऑस्ट्रिच, इमु तथा किवी पक्षी हैं, परन्तु उड़ नहीं सकते।
सरीसर्पों (reptiles) में 3½ कोषीय हृदय होता है, लेकिन क्रोकोडाइल व एलीगेटर में 4 कोषीय हृदय होता है।
पक्षियों में मूत्राशय नहीं होता परन्तु ऑस्ट्रिच में एक मूत्राशय पाया जाता है।
डकबिल्ड प्लेटीपस तथा काँटेदार चींटी खोर अण्डे देने वाले स्तनधारी हैं।
स्तनधारियों में सामान्यतया 7 ग्रीवा कशेरुकाएँ होती हैं, परन्तु सी काऊ में 8 कशेरुकाएँ होती हैं।
कस्कटा (Cuscuta) एक द्विबीजपत्री पूर्ण स्तम्भ परजीवी है, परन्तु इसमें बीजपत्रों का अभाव होता हैं।
कुल-लोरेन्थेसी के सदस्यों में छ: बीजपत्र पाये जाते हैं।
कैलोफाइलम, कोरिम्बियम एवं इरिन्जियम के अतिरिक्त सभी द्विबीजपत्री पौधों की पत्तियों में जालिकारूपी (reticulate) शिरा विन्यास पाया जाता है।
स्माइलेक्स, कोलोकेशिया, एलोकेशिया तथा डायोस्कोरिया के अतिरिक्त सभी एकबीजपत्री पौधों की पत्तियों में समानान्तर (parallel) शिरा विन्यास पाया जाता है। कुछ एकबीजपत्री पौधों; जैसे-ड्रेसिना, यक्का, एगेव में असामान्य द्वितीयक वृद्धि (abnormal secondary growth) पायी जाती है।